मेवाड़ के महाराणा सांगा ने मुग़ल आक्रांता बाबर को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन इस्लाम के प्रसार के नाम पर आए आक्रांताओं ने बर्बरता की सारी सीमाएँ लाँघते हुए दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। सिसोदिया कुल के महाराणा सांगा का जिन लोगों ने उस समय साथ दिया, उनमें मालवा के मेदिनी राय (या राव) परिहार भी थे। चंदेरी उनकी राजधानी थी। राणा सांगा की मदद से उन्होंने मालवा के सुल्तान को हरा कर अपना राज़ स्थापित किया था। उनकी ही महारानी थी मणिमाला, जिनके जौहर की गाथा आज भी गाई जाती है।
मेदिनी राय परिहार राजपूतों के उस संयुक्त गठबंधन में शामिल थे, जिसने खानवा के युद्ध में बाबर की फौज को टक्कर दी थी। उन्होंने बाईं तरफ से सेना का नेतृत्व किया था और बाबर की दाईं तरफ की फौज को टक्कर दी थी। मालवा के युद्ध में राजपूतों की विजय से दिल्ली में बैठे इस्लामी आक्रांता खुश नहीं थे क्योंकि उन्हें इसका अंदाज़ा नहीं था। इस कारण तत्कालीन लोदी सल्तनत और मेवाड़ के बीच खासा बढ़ गया था। मेदिनी राय ने मेवाड़ की तरफ से कई युद्ध लड़े और लोदी सल्तनत के खिलाफ कई बार जीत दिलाई।
इन्हीं युद्धों का परिणाम था कि आगरा के पास स्थित ‘पिलिआ खार’ तक राणा सांगा का प्रभाव पहुँच गया था। दिल्ली में सल्तनत बदली और बाबर ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। मेदिनी राय के बारे में बता दें कि अंत समय में जब बाबर ने उनकी राजधानी चंदेरी को घेर रखा था और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने युद्ध में बलिदान देने का मार्ग चुना। अंत समय तक वो मातृभूमि और राणा के लिए वफादार रहे। बाबर का कहना था कि मेदिनी राय चंदेरी उसे सौंप दें और खुद शमसाबाद में रहें।
परिहार/प्रतिहार राजपूतों के बारे में बता दें कि सातवीं सदी में जब मध्य-पूर्व और मध्य एशिया में अरबों का प्रभाव बढ़ रहा था, तब इन्हीं के कारण भारत में सिंध से आगे आक्रांता नहीं घुस पाए। मेदिनी राय से पहले कन्नौज के प्रतिहार लोकप्रिय और शक्तिशाली हुआ करते थे। उसके बाद ग्वालियर-नरवर, चंदेरी और नागौर-ऊँचाहार के प्रतिहार प्रभाव में आए। वो 27 जनवरी, 1528 की रात थी जब चंदेरी में वो जौहर हुआ था। कहा जाता है कि 1600 क्षत्राणियों के साथ-साथ रानी मणिमाला ने जौहर किया था।
महल के भीतर ही एक कुंड बना हुआ था, जहाँ धधकती आग में ये वीरांगनाएँ कूदी थीं। आज भले ही इसके 494 वर्ष हो गए, लेकिन आज भी ये जगह उस घटना की याद दिलाती है। बाबर की चौथी बीवी दिलावर बेगम इस जौहर को देख कर बेहोश ही हो गई थीं। वहाँ इस जौहर को सम्मान देने के लिए एक स्मारक का निर्माण भी करवाया गया है, जहाँ हर साल उस बलिदान को याद करने के लिए 29 जनवरी को कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि नई और अगली पीढ़ियाँ अपने इतिहास के गौरव को महसूस कर सके।
इतिहास के पन्नों में दर्ज राजपूत वीरांगनाओं का बलिदान
— Vishvas Kailash Sarang (@VishvasSarang) January 29, 2022
वर्ष 1528 चंदेरी किले में आज ही के दिन महारानी मणिमाला सहित हज़ारों राजपूत वीरांगनाओं ने मान-सम्मान और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान दे कर जौहर किया था।
राजपूत वीरांगनाओं को शत्-शत् नमन। #Chanderijauhar pic.twitter.com/f3y1QvtMR3
27 जनवरी, 1528 को रात जब ख़त्म हो रही थी तभी बाबर की फ़ौज ने चंदेरी पर हमला बोल दिया था। तोपों के साथ बाबर वहाँ पहुँचा था। उसने मेदिनी राय को पत्र भिजवाया और समझौते की पेशकश की, लेकिन मेदिनी राय ने शत्रु के सामना समर्पण से इनकार कर दिया। अगले दिन वो वीरगति को प्राप्त हो गए और इसकी सूचना मिलते ही रानी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर किया। किले के दरवाजे पर युद्ध से इतना खून पसरा हुआ था कि उसे ‘खूनी दरवाजा’ कहा जाने लगा था।
बाबर भी जौहर की सूचना के बाद अपनी खून से सनी तलवार लेकर महल में दाखिल हुआ था, लेकिन वहाँ का जौहर देख कर वो भी घबरा गया। कहते हैं कि 15 कोस तक धधकती ज्वालाएँ नजर आ रही थीं। प्रजा उस माहौल में भागी-भागी किले की तरफ आई। आज उस कुंड के पास कुछ नागफनी के पौधे लगे हुए हैं। चंदेरी मध्य प्रदेश के अशोकनगर में पड़ता है। बाबर ने मृत राजपूत सैनिकों के सिर काट-काट कर एक टीला खड़ा किया और लोगों में खौफ पैदा करने के लिए उस पर अपना झंडा गाड़ दिया था।