पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के कश्मीर पर बिगड़ते जा रहे बोल असल में बदहाल अर्थव्यवस्था और एक देश के तौर पर नाकामी की ओर बढ़ रहे हालातों से ध्यान भटकाने की कोशिश हैं। पिछले अगस्त में सत्ता संभालने वाले ‘तालिबान खान’ इमरान का ‘नया पाकिस्तान’ आर्थिक मोर्चे पर गिरती विकास दर (3.3%) और मुँह फैलाती जा रही महंगाई के दो पाटों में पिस रहा है। डॉलर की कीमत (150 रुपए)आसमान पर है और एक कर्ज की क़िस्त चुकाने के लिए उसे दूसरा कर्ज लेना पड़ रहा है।
पारम्परिक रूप से पाकिस्तान चीन, अमेरिका और सऊदी की तिकड़ी के सहारे खड़ा रहता था। लेकिन पिछले कुछ समय में समीकरण बदले हैं। डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद से चाहे उनके इस्लामोफोबिया के चलते या फिर चाहे इस सच के अनुभव से कि इतने साल में पाकिस्तान ने अमेरिका से पैसा लेकर आतंक का खात्मा नहीं किया, बल्कि उसे बढ़ावा ही दिया है, अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध बहुत हद तक ठंडे पड़ गए हैं। पाकिस्तान को नया कर्ज या सहायता तो दूर, ट्रम्प ने लगभग हर पुराने मदद के रास्ते को रोक दिया है या पहरा बिठा दिया है।
चीन से हिंदुस्तान की दुश्मनी में जा मिला ‘दुनिया का पहला इस्लामिक स्टेट’ पाक उससे भी बहुत अधिक आर्थिक सहायता इसलिए लेने में कतरा रहा है क्योंकि वह ‘कर्ज’ के बदले अनीश्वरवादी चीन के साम्राज्य का हिस्सा नहीं बन सकता। CPEC (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) उसने इसीलिए ठंडे बस्ते में डाल दिया है और चीन के साथ वह केवल रणनीतिक रूप से हिंदुस्तान को घेरने, खुद को आतंकी के आधिकारिक ठप्पे से बचाने और गधों के निर्यात के नकद कारोबार जैसी चीजों तक सीमित किए हुए है।
ले-देकर बचा सऊदी, तो उसकी सीमित सहायता पाकिस्तान के विशाल, अनुत्पादक खर्चों और 2018 के 3.9% से वित्त वर्ष 2019 में 7.3% हो रही और अगले एक साल में 13% (अनुमानित) होने जा रही महंगाई के चलते ऊँट के मुँह में जीरा साबित हो रही है। UNCTAD ट्रेड ऐंड डिवेलपमेंट रिपोर्ट 2019 के मुताबिक सऊदी ही नहीं, IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) का 6 अरब डॉलर का कर्ज भी पाकिस्तान के ज्यादा काम नहीं आना है।
घाटा, टैक्स चोरी और मुँह फाड़े सेना
पाकिस्तानी सेना देश के बजट का 17-22% लेती है। बावजूद इसके कि वह खुद 100 अरब डॉलर के आर्थिक साम्राज्य की मालिक है, जो बैंकिंग, सीमेंट, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में पसरा हुआ है। हाल ही में उसने सरकार से खनन, तेल और गैस का काम भी अपने हाथों में ले लिया है। इसके उलट पाकिस्तानी सरकारी कम्पनियाँ घाटे में गहरी डूबती जा रहीं हैं। केवल 1% के टैक्स देने वाले नागरिकों के दायरे के अलावा उसका टैक्स-जीडीपी अनुपात 11% दुनिया के न्यूनतम में से एक है।