ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है लिंगराज मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। भुवनेश्वर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। राक्षसों से युद्ध के बाद थकी और प्यासी माता पार्वती को जल उपलब्ध कराने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव ने एक कूप का रूप धारण किया था और सभी नदियों को यहीं बुला लिया था।
1400 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
180 फुट ऊँचे लिंगराज मंदिर का निर्माण सोमवंशी शासकों द्वारा कराया गया था। बाद में गंग वंश के शासकों ने भी लिंगराज मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। हालाँकि मंदिर का वर्तमान स्वरूप सन् 1090 से सन् 1104 के दौरान हुआ लेकिन मंदिर के कुछ हिस्से 1400 वर्ष पुराने हैं। छठवीं शताब्दी के उपलब्ध लेखों से यह ज्ञात होता है कि लिंगराज मंदिर का निर्माण ललाटेंदु केशरी ने सन् 615 से सन् 657 के बीच करवाया था।
मंदिर के विषय में एक धार्मिक मान्यता है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो राक्षसों से माता पार्वती का भीषण युद्ध हुआ। माता पार्वती ने इन दोनों राक्षसों का वध इसी स्थान पर किया लेकिन युद्ध के कारण माता पार्वती को प्यास लगी। ऐसी स्थिति में माता पार्वती की सहायता करने के लिए भगवान शिव ने कूप का रूप धारण कर लिया और सभी नदियों को योगदान देने के लिए वहीं बुला लिया। इसके बाद से इस स्थान पर भगवान शिव कीर्तिवास के रूप में पूजे जाने लगे। बाद में भगवान शिव को हरिहर या भुवनेश्वर के रूप में जाना गया। मंदिर में भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु की मूर्तियाँ भी विराजित हैं।
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है एक महान शिवलिंग, जो स्वयंभू माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित 8 फुट मोटे शिवलिंग में देश के विभिन्न कोनों में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अंश समाहित हैं। यही कारण है कि यहाँ भगवान शिव को लिंगराज कहा जाता है।
लिंगराज मंदिर की वास्तुकला
लिंगराज मंदिर कलिंग वास्तुकला का सर्वोच्च उदाहरण है। मंदिर की नक्काशी को देखकर कोई भी यह सोच सकता है कि क्या एक व्यक्ति इतनी सुंदर और सूक्ष्म कलाकृतियाँ अपने हाथों से बना सकता है? मंदिर का निर्माण देउल शैली में किया गया है। मंदिर के चार घटक हैं, विमान (जहाँ गर्भगृह स्थित है), जगमोहन (जो कि एक असेंबली हॉल है), नटमंदिर (उत्सव मंडप) और भोग मंडप (जहाँ प्रसाद का वितरण होता है)।
55 मीटर ऊँचा यह मंदिर लगभग ढाई लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर पवित्र बिन्दुसागर झील के किनारे स्थित है जो हिंदुओं के लिए परम पवित्र है। सबसे पहले बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, उसके बाद क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं। फिर श्रद्धालु गणेश पूजा के बाद गोपालनी देवी और शिव जी के वाहन नंदी की पूजा कर लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश करते हैं।
ओडिशा का यह लिंगराज मंदिर, पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर की तरह ही कड़े नियमों के लिए जाना जाता है। यहाँ गैर-हिंदुओं का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है लेकिन मंदिर के बाहर एक बड़ा चबूतरा है, जहाँ से गैर-हिन्दू मंदिर के अंदर के दिव्य वातावरण के दर्शन कर सकते हैं। यहाँ का महाप्रसादम भी भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। उसे मिट्टी के बर्तनों में पुजारियों द्वारा तैयार किया जाता है। पहले इसका भोग भगवान को लगाया जाता है, फिर भक्तों को बाँटा जाता है।
कैसे पहुँचे?
ओडिशा की राजधानी होने के कारण भुवनेश्वर, वायुमार्ग से सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। लिंगराज मंदिर से भुवनेश्वर हवाईअड्डे की दूरी लगभग 3 किमी है। इसके अलावा भुवनेश्वर में रेलवे मार्ग से भी देश के बड़े शहरों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर से भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 6 किमी है। सड़क मार्ग से भी भुवनेश्वर पहुँचने के मार्ग अत्यंत सुगम हैं।