15 अगस्त 1947 को हर भारतवासी आज़ादी के जश्न के रूप में मनाता है। 1765 की इलाहाबाद संधि से ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में जो शासन स्थापित हुआ था, उसकी समाप्ति 15 अगस्त 1947 को हुई थी। भारत के इस गौरवपूर्ण क्षण के गवाह न सिर्फ़ देशवासी बने बल्कि देश और दुनिया के लोग भी इसका गवाह बने।
ऐसे में वो क्षण भुलाए नहीं भूलता जब 15 अगस्त 1947 को एक तरफ लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया जा रहा था, तो दूसरी तरफ़ लंदन के इंडिया हाउस में लाल कुमार नृपेंद्र नाथ शाहदेव ने तिरंगा फहराया था। बता दें कि शाहदेव भारतीय स्काउटिंग टीम के कप्तान थे। उस समय इंडिया हाउस में कार्यक्रम आयोजित कर यूनियन जैक की जगह भारतीय तिरंगा फहराया गया था, और इसकी अध्यक्षता अनुग्रह नारायण सिंह ने की थी।
ख़बर के अनुसार, कुमार नृपेंद्र नाथ शाहदेव जुलाई 1947 में संयुक्त भारत की स्काउटिंग टीम लेकर फ्रांस के मॉयजोन में आयोजित छठी विश्व जंबूरी में भाग लेने गए थे। पूरी टीम कोलकाता से स्ट्रेथमोर जहाज़ से समुद्र के रास्ते फ्रांस गई थी। वहाँ विश्व जंबूरी में स्काउटिंग के सर्वश्रेष्ठ सम्मान बुशमैन थॉग्स से शाहदेव को सम्मानित किया गया था।
शाहदेव, ब्रिटिश भारत की स्काउटिंग टीम के अंतिम व स्वतंत्र भारत के पहले कप्तान थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर फ्रांस से लौटकर टीम दिल्ली पहुँची थी। वहाँ नेहरू ने स्काउटरों को स्वतंत्रता वाहकों की टोली की संज्ञा दी थी।
एनएन शाहदेव के पुत्र कुमार एएन शाहदेव के अनुसार, देश के बंटवारे का असर विश्व जंबूरी में भाग लेने फ्रांस गई संयुक्त भारत की टीम पर भी पड़ा था। देश में बंटवारे की स्थिति से टीम के सदस्य सदमे में थे। उनके बीच भारत-पाकिस्तान के नाम से टीम बाँटने पर विवाद हो गया।
इस विवाद की सुलह के लिए जो कमिटी बनाई गई उसमें कुमार एनएन शाहदेव को सदस्य बनाया गया। इसके बाद शांतिपूर्ण तरीके से संयुक्त भारत की टीम भारत और पाकिस्तान के नाम से बाँटी गई। फ्रांस जाने वाली संयुक्त भारत की टीम के आधे सदस्य भारत वापस नहीं आए। हुआ यह कि बंटवारे के बाद बनी पाकिस्तान की टीम के सदस्य फ्रांस से सीधे कराची चले गए।