आगरा के ताजमहल के बारे में तो सभी को पता है, जिसे मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था। लेकिन, उससे 5 दशक पहले ही अकबर के सेनापति और कवि अब्दुर रहीम खान-ए-खाना ने दिल्ली में अपनी बीवी माह बनु की याद में एक मकबरे का निर्माण करवाया था।
ये पहला ऐसा मुग़ल मकबरा था, जिसे किसी महिला की याद में बनवाया गया हो। जब रहीम की 1627 में मौत हो गई तो उसे भी यहीं उसकी बीवी के बगल में इसी मकबरे में दफनाया गया, जिसकी अब मरम्मत हुई है। ठीक उसी तरह, जैसे ताजमहल में मुमताज की कब्र के बगल में शाहजहाँ की कब्र है।
पिछले 6 वर्षों से रहीम के मकबरे में मरम्मत का कामकाज चल रहा था, जिसके बाद उसे इस सप्ताह खोल दिया गया है। भारत में राष्ट्रीय महत्व के किसी मकबरे को संरक्षित करने के लिए शायद ये सबसे लंबा मरम्मत कार्य चला होगा। रहीम के इस मकबरे के बारे में कहा जाता है कि ताजमहल की संरचना भी इससे ही प्रभावित थी, लेकिन जनता इससे दूर ही रही।
2014 में इंटरग्लोब फाउंडेशन ने आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (AKTC) के साथ मिल कर ‘रहीम के मकबरे के संरक्षण’ को अपना समर्थन दिया। ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के साथ विमर्श के बाद इसके संरक्षण की रूपरेखा तैयार की गई। AKTC के CEO रतीश नंदा का कहना है कि उस समय ये मकबरा तुरंत ध्वस्त होने की स्थिति में था। इसके गुम्बद से लेकर अंदर और बाहर की संरचनाओं की मरम्मत की गई।
रहीम से जुड़े साहित्यों और रिसर्च के हिसाब से इसे तैयार करने के क्रम में इसके आसपास के इलाके को भी उसी हिसाब से तैयार किया गया। रहीम की युद्धकला, उनकी भक्ति और उनके लिखे साहित्यों के अध्ययन और उस पर रिसर्च के लिए एक टीम तैयार की गई। लगभग 3000 मिस्त्री, मजदूरों और डिजाइनरों ने 1.75 लाख घंटे इसकी मरम्मत पर खर्च किए, तब जाकर अब ये जनता के लिए खुल पाया है।
AKTC चाहता था कि इसके पूरे गुम्बद को संगमरमर का बनाया जाए, ताकि मुगलकालीन शोभा को आज के जमाने में देखी जा सके, लेकिन ASI ने आंशिक रूप से ही मार्बल के इस्तेमाल को मंजूरी दी। रहीम ने एक वाटर सप्लाई सिस्टम भी तैयार किया था। हिंदुत्व को लेकर उनकी समझ भी अच्छी थी। ऐसे में उनके इंजीनियर होने और हिन्दू धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा को भी ध्यान में रखा गया है, ऐसा मरम्मत का कामकाज देखने वालों का कहना है।
रहीम, मुग़ल बादशाह अकबर के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे। बैरम खान की मौत के बाद उसकी दूसरी पत्नी से अकबर ने शादी कर ली। इस हिसाब से रहीम अकबर के सौतेले बेटे भी हुए। अकबर के नवरत्नों में उनका भी नाम था। रहीम के दो बेटों को जहाँगीर ने मार डाला था, क्योंकि वो उसकी ताजपोशी के पक्ष में नहीं थे। कई दोहे लिखने वाले रहीम ने बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया। संस्कृत पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
पत्नी के लिए बनाए गए मकबरे में रहीम भी दफन हैं। उनके दोहे आज भी लोगों की जुबां पर हैं। कहां है यह मकबरा, जानिए … @NBTDilli pic.twitter.com/IYy9PzJlrz
— Akhilesh Chandra (@achandra16) April 2, 2019
कहा जाता है कि राणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने रहीम को उसके परिवार के महिलाओं सहित धर लिया था। जब उन्हें मेवाड़ के दरबार में पेश किया गया तो प्रताप ने आदेश दिया कि इस कवि को तुरंत परिवार सहित रिहा किया जाए और उचित सम्मान दिया जाए। इसके बाद रहीम ने भी राणा प्रताप की प्रशंसा की। वही रहीम जब बूढ़े हुए तो जहाँगीर ने अपने आदमियों से उसके पास ‘खरबूजा’ भेजा। 70 साल के बाप ने रूमाल हटाया तो वहाँ खरबूजा नहीं, उसके बेटे का सिर था।