देश का अब तक का सबसे बड़ा बैंक घोटाला सामने आया है। इसे दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) और उसके सहयोगियों ने अंजाम दिया है। यह घोटाला 34,615 करोड़ रुपए का है। आरोप है कि बैंकों से जिस काम के नाम पर लोन लिए गए है, पैसा वहाँ लगाने की जगह अन्य कंपनियों को ट्रांसफर कर दिए गए। इसकी शुरुआत 2010 से हुई, जब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। 2019 तक यह धोखाधड़ी चलती रही।
इस संबंध में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) के पूर्व सीएमडी कपिल वाधवान और डायरेक्टर धीरज वाधवान समेत अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है। रिपोर्ट्स की माने तो DHFL के वाधवान ब्रदर्स ने 17 बैंकों के साथ धोखाधड़ी की है। सीबीआई ने आरोपितों के मुबंई स्थित 12 ठिकानों की तलाशी ली है। इन जगहों में वाधवान का ऑफिस और घर भी शामिल है। इससे पहले एबीजी शिपयार्ड (ABG Shipyards) का 23,000 करोड़ रुपए का फ्रॉड सामने आया था, जो सबसे बड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी थी।
CBI books DHFL and its Directors Kapil Wadhawan, Dheeraj Wadhawan and others for allegedly defrauding 17 banks of 34,615 crore.
— Arvind Gunasekar (@arvindgunasekar) June 22, 2022
The biggest bank fraud case ever registered by CBI, earlier ABG Shipyard was booked for defrauding 23,000 crore. pic.twitter.com/1Yy4DM3Ove
सीबीआई (CBI) ने इस मामले में DHFL, कपिल वाधवान, धीरज वाधवान, स्काईलार्क बिल्डकॉन प्रा. लिमिटेड, दर्शन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, सिगटिया कंस्ट्रक्शन बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, टाउनशिप डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, शिशिर रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड, सनब्लिंक रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड, सुधाकर शेट्टी और अन्य को आरोपित बनाया है।
सीबीआई के अनुसार, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी जनरल मैनेजर और ब्रांच हेड विपिन कुमार शुक्ला की 11 फरवरी, 2022 को मिली शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई है। इस मामले में सोमवार (20 जून 2022) को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शुक्ला ने अपनी शिकायत में सीबीआई को बताया था कि 2010 में बैंकों के कंसोर्टियम ने डीएचएफएल को क्रेडिट सुविधा दी थी। इस कंसोर्टियम में 17 बैंक थे। इससे पहले 2021 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने सीबीआई को डीएचएफएल के प्रमोटर्स और तत्कालीन प्रबंधन की जाँच करने के लिए लिखा था। इसमें यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले बैंकों के कंसोर्टियम को 40,623.36 करोड़ रुपए (30 जुलाई, 2020 तक) का नुकसान होने की बात कही गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार बैंकों से 42 हजार करोड़ से ज्यादा का लोन लिया गया। इसमें 34615 हजार करोड़ रुपए का लोन कंपनी ने नहीं लौटाया। अकाउंट बुक में फर्जीवाड़ा कर लोन का पैसा 65 से ज्यादा कंपनियों में भेजा दिया गया। मजबूरन बैंकों ने अलग-अलग समय पर खाते को एनपीए घोषित कर दिया। इसके बाद ऑडिट से बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं, फंड की हेराफेरी, दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा आदि का पता चला था।