राजस्थान के अलवर जिले के गौरव यादव ने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में शामिल हो कर देश सेवा का सपना तो लाखों युवा देखते होंगे लेकिन गौरव यादव ने न सिर्फ उस सपने को देखा बल्कि उसे अर्जित भी किया। राजस्थान के अलवर जिले के रहने वाले गौरव यादव ने अपने सपने को पूरा करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में एडमिशन को भी ठुकरा दिया था। गौरव सिर्फ ट्रेनिंग में ही आगे नहीं रहे बल्कि एनडीए की 143वें परेड में उन्हें प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
गोल्ड मेडलिस्ट गौरव शुरुआत से ही सेना में करियर बनाना चाहते थे। बचपन से ही खेल-कूद और पढ़ाई में आगे रहने वाले गौरव ने IIT एंट्रेंस टेस्ट पास कर लेने वाली बात को परिवार वालों से छिपाए रखा क्योंकि उन्हें सेना में शामिल होने के अपने सपने को पूरा करना था। गौरव ने दिल्ली के एक कॉलेज में प्रवेश ले लिया और एनडीए की तैयारी भी करने लगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, गौरव ने दो बार एनडीए प्रवेश परीक्षा पास की लेकिन दोनों ही बार सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (SSB) इंटरव्यू स्टेज को पार नहीं कर पाए। इस नाकामी से शिक्षा लेते हुए उन्होंने तीसरे मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और गौरव खड़कवासला में नेशनल डिफेंस एकेडमी का हिस्सा बन गए। बुधवार (30 नवंबर,2022) को पासिंग आउट परेड के बाद गौरव ने कहा, “मैं अपने कमरे की दीवार के सामने खड़ा होता था। इस दौरान मैं सोचता था कि मैं एसएसबी पैनल को इंटरव्यू दे रहा हूँ और उनके सवालों का जवाब दे रहा हूँ।”
गौरव यादव एक किसान परिवार से आते हैं। उनका पैतृक निवास राजस्थान के अलवर जिले के जाजौर-बास गाँव में है। गौरव के भाई विनीत भी भारतीय सेना में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक विनीत ने बताया कि एक समय ऐसा भी था, जब परिवार को गौरव के मानसिक स्थिति को लेकर चिंता होने लगी थी।
विनीत ने बताया कि जब उन्होंने अपने भाई से IIT रिजल्ट को लेकर पूछा तो, गौरव ने बताया कि एग्जाम क्लियर नहीं हो पाया। गौरव जब NDA के लिए चुने गए तब कहीं जाकर उन्होंने परिवार के लोगों को जानकारी दी कि उनका IIT एंट्रेंस क्लियर हो गया था। विनीत कहते हैं कि गौरव ने इस असाधारण उपलब्धि को हासिल कर के खुद को सही साबित कर दिया है। हमें उस पर गर्व है।
एनडीए में गौरव ने ना सिर्फ एकेडमिक फ्रंट पर शानदार प्रदर्शन किया, बल्कि मिलिट्री ट्रेनिंग में भी वह सबसे आगे रहे। परिणामस्वरूप उन्हें गोल्ड मेडल से नवाजा गया। इतना ही नहीं गौरव को परेड की कमान संभालने का अवसर भी मिला जो सोने पर सुहागा जैसा था। खुद गौरव ने भी इसकी कल्पना नहीं की थी।