बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक निर्णय देते हुए कहा है कि भगवा ध्वज फहराना दलित उत्पीड़न के अंतर्गत अपराध नहीं है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज किए गए एक मामले में आरोपित को जमानत देते हुए अदालत ने यह अहम फ़ैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि इस क़ानून के तहत ऐसा करना कोई अपराध नहीं है। जस्टिस आईए महंती और जस्टिस एएम बदर की खंडपीठ ने शशिकांत महाजन नामक व्यक्ति को जमानत देते हुए ये बातें कहीं, जिसके ख़िलाफ़ पुलिस में भगवा ध्वज लहराने को लेकर मामला दर्ज किया गया था।
पिछले साल इसी मामले में विशेष अदालत ने महाजन की अग्रिम जमानत याचिका खारिज़ कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था। जुलाई 2018 में हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ़्तारी से राहत प्रदान की। महाजन का पहले से ही मानना था कि उपर्युक्त क़ानून के तहत उनके द्वारा किया गया कार्य किसी भी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। उनके ख़िलाफ़ महज भगवा ध्वज लहराने और नारे लगाने को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
महाजन और कई अन्य लोगों के ख़िलाफ़ ठाणे के कल्याण में मामला दर्ज किया गया था। ये सभी भीमा-कोरेगाँव हिंसा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। भीमा-कोरेगाँव में 2 जनवरी 2018 को हिंसा हुई थी। भीमा कोरेगाँव की पृष्ठभूमि यह है कि यहाँ दो सदी पहले पेशवा और अंग्रेजों के बीच एक युद्ध हुआ था, जिसके बाद मराठा साम्राज्य का विजय रथ रुक गया था। पेशवा की तरफ से बाजीराव द्वितीय ने मराठा सेना का नेतृत्व किया था। राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की इस लड़ाई को कई लोग जातीय चश्मे से देखते हैं और इसी की बरसी मनाते समय 2018 में हिंसा भड़क गई थी।
Hoisting saffron flag no offence under Atrocities Act: HC https://t.co/LAPGQZlQ46
— TOI India (@TOIIndiaNews) July 1, 2019
भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले में वामपंथियों व नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले कई कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया था। महाजन भी इस हिंसा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। हालाँकि, पुलिस ने अदालत में दलील दी कि इस अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। महाजन ने ‘जय भवानी’, ‘जय महादेव’ और ‘जय शिवराय’ जैसे नारे लगाए थे।