‘अनाथ बच्चों की माँ’ कही जाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार विजेता सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) का निधन हो गया है। उन्होंने मंगलवार (4 जनवरी 2022) को 73 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। सिंधु सपकाल को अक्सर सिंधुताई या ‘माँ’ कहकर पुकारा जाता था।
उन्होंने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों की जिंदगी सँवारने में लगा दिया। 2000 से ज्यादा अनाथ बच्चों का पालन-पोषण किया। उत्कृष्ट समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें पिछले साल पद्मश्री (Padma Shri) से सम्मानित किया था। सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था। उन्होंने मंगलवार शाम 8.10 बजे अंतिम साँस ली। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सिंधुताई का जीवन, सेवा की प्रेरक गाथा: राष्ट्रपति कोविंद
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने डॉ. सिंधुताई सपकाल के निधन पर दुख जताते हुए कहा है, “सिंधुताई का जीवन साहस, समर्पण और सेवा की प्रेरक गाथा था। वह अनाथों, आदिवासियों और हाशिए के लोगों से प्यार करती थीं और उनकी सेवा करती थीं। उनके परिवार और अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएँ है।”
President Kovindpresents Padma Shri to Dr Sindhutai Sapkal (Maai) for Social Work. She is a social worker from Maharashtra. She has dedicated her life to the cause of the poor and destitute. She has nurtured over 1500 orphaned children over a period of 45 years. pic.twitter.com/ie3cOKfo6M
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 9, 2021
सिंधुताई के जाने से आहत हूँ: पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताते हुए कहा है, “डॉ. सिंधुताई सपकाल को समाज के लिए उनकी नेक सेवा के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने हाशिए के समुदायों के बीच भी बहुत काम किया। उनके निधन से आहत हूँ। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।”
Dr. Sindhutai Sapkal will be remembered for her noble service to society. Due to her efforts, many children could lead a better quality of life. She also did a lot of work among marginalised communities. Pained by her demise. Condolences to her family and admirers. Om Shanti. pic.twitter.com/nPhMtKOeZ4
— Narendra Modi (@narendramodi) January 4, 2022
ऐसा था सिंधुताई का जीवन…
महाराष्ट्र के वर्धा में एक गरीब परिवार में सिंधुताई का जन्म हुआ था। लड़की होने के कारण लंबे समय तक भेदभाव झेलना पड़ा। सिंधुताई की जिंदगी एक ऐसे बच्चे के तौर पर शुरू हुई थी, जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी। सिंधुताई की माँ उनके स्कूल जाने के विरोध में थीं। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि बेटी पढ़े और आगे बढ़े। जब वह 12 साल की थीं, तब उनकी शादी करा दी गई थी। उनका पति उनसे करीब 20 साल बड़ा था। सिंधुताई को पति गालियाँ देता था और मारपीट भी करता था। जब वह 20 वर्ष की थी और चौथी बार गर्भवती हुईं, तो उनकी बेवफाई की अफवाहें गाँव में फैल गई। उनके पति ने इस पर विश्वास करते हुए उन्हें पीटा और मरने के लिए छोड़ दिया। खून से लथपथ अर्धचेतन अवस्था में उन्होंने पास के गोशाला में एक बच्ची को जन्म दिया। उन्होंने अपने हाथ से अपनी नाल काटी थी।
इसके बाद भी उन्होंने घर लौटने की कोशिश की, लेकिन उनकी माँ ने उन्हें अपमानित करके भगा दिया। इसके बाद जीवित रहने और अपने बच्चे को खिलाने के लिए सिंधुताई ने ट्रेनों और सड़कों पर भीख माँगना शुरू कर दिया। अपनी और अपनी बेटी की सुरक्षा के डर से उन्होंने कब्रिस्तानों और गोशालाओं में रातें बिताईं।
फिर जो भी बच्चा अनाथ मिला, उसे अपना लेती थीं सिंधुताई
सिंधुताई को प्रताड़ना ने अंदर तक हिला दिया था। अपनी बेटी के साथ रेलवे प्लेटफॉर्म पर भीख माँगकर गुजर-बसर करने के दौरान वो ऐसे कई बच्चों के संपर्क में आईं जिनका कोई नहीं था। उन बच्चों में उन्हें अपना दुख नजर आया और उन्होंने उन सभी को गोद ले लिया। उन्होंने अपने साथ इन बच्चों के लिए भी भीख माँगना शुरू कर दिया। इसके बाद तो सिलसिला चल निकला और जो भी बच्चा उन्हें अनाथ मिलता, वो उसे अपना लेतीं और उसकी देखभाल से लेकर पढ़ाई तक करवाती थीं। सिंधु ताई ने अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए ट्रेनों और सड़कों पर भीख माँगी।
मिल चुका है 700 से ज्यादा पुरस्कार
उनके इस काम के लिए उन्हें पद्मश्री समेत 700 से ज्यादा सम्मानों से नवाजा गया। पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा था कि ये पुरस्कार उनके सहयोगियों और उनके बच्चों का है। उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की थी। ताई ने कहा था, “मेरी प्रेरणा, मेरी भूख और मेरी रोटी है। मैं इस रोटी का धन्यवाद करती हूँ क्योंकि इसी के लिए लोगों ने मेरा उस समय साथ दिया, जब मेरी जेब में खाने के भी पैसे नहीं थे। यह पुरस्कार मेरे उन बच्चों के लिए हैं जिन्होंने मुझे जीने की ताकत दी।”
सम्मान से प्राप्त हुई रकम को सिंधु ताई ने बच्चों के पालन-पोषण पर खर्च करतीं। उन्हें डी वाई इंस्टीट्यूटऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की तरफ से डाॅक्टरेट की उपाधि दी गई थी। उनके जीवन पर मराठी फिल्म मी सिंधुताई सपकाल बनी है, जो साल 2010 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था।