रॉयटर्स को दिए गए एक हालिया साक्षात्कार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ़ कर दिया कि भारत के आर्थिक हितों को अमेरिकी प्रतिबंधों के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि वेनेज़ुएला और रूस जैसे देशों पर लगाए गए वैश्विक प्रतिबंधों का भारत पालन करना चाहता है, लेकिन उसे अपने रणनीतिक हितों और शक्ति को भी बनाए रखने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय सरकार ने अमेरिका को अपने निर्णय से अवगत करा दिया है।
अमेरिका को ताकतवर सहयोगी चाहिए या कमज़ोर?
वित्त मंत्री ने मंगलवार को समाचार एजेंसी से कहा, “हम अमेरिका के साथ अपने रिश्तों की कदर करते हैं, लेकिन हमें उतनी ही आज़ादी एक सशक्त अर्थव्यवस्था बनने की भी होनी चाहिए।” गौरतलब है कि वेनेज़ुएला के कच्चे तेल व्यापार की कमर तोड़ने के लिए अमेरिका ने जनवरी में उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। इससे उसके कुछ ग्राहक देश तो ठिठके, लेकिन प्रभावी विकल्प के अभाव में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ 4 महीने तक रूसी कंपनी रोसनेफ्ट से खरीदारी करने के बाद फिर से वेनेज़ुएला का रुख करने की तैयारी में है।
“वो मुद्दे विशेष जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं, उनको लेकर के हमने अमेरिका को यह समझाया है कि भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, और आप अपने रणनीतिक सहयोगी को शक्तिशाली चाहेंगे, न कि कमज़ोर।”
ईरान पर प्रतिबंध पहले ही सिरदर्द
भारत पहले ही अमेरिकी प्रतिबंधों की आर्थिक कीमत चुका रहा है। गिरती अर्थव्यवस्था के बीच पिछले एक साल से ईरान से सस्ता मिल रहा क्रूड भी भारत ने खरीदना कम कर दिया है। पहले ईरान भारत को तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक था, अब वह पहले दस से भी बाहर है। तिस पर से सऊदी अरब के अरामको तेल संयंत्रों पर हुए हमलों के बाद अचानक से आई दामों में तेज़ी ने भारत के लिए और परेशानी बढ़ा दी थी। ऐसे में अब वेनेज़ुएला प्रतिबंध को और झेलना भारत के लिए मुश्किल लग रहा है।