सौरभ और स्नेहा महाराष्ट्र के पुणे में रहते हैं। इनकी 10 महीने की बेटी है। नाम है वेदिका। यह छोटी सी बच्ची स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) से जूझ रही है। यह दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है। इसके कारण शरीर की मांसपेशियाँ धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं।
इलाज नहीं मिलने पर दो साल की उम्र से पहले ही ये बीमारी वेदिका के जीवन का अंत कर सकती है। वेदिका के माता-पिता बताते हैं, “हमने इससे पहले स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) टाइप 1 के बारे में कभी नहीं सुना था। जब डॉक्टर ने हमें इस स्थिति की जाँच के लिए वेदिका का टेस्ट करने को कहा, तो मैं घबरा गई। जाँच के लिए मैंने नर्स को उसके शरीर से 10 एमएल खून निकालते देखा, तो एक माँ के रूप में मैंने महसूस किया कि इससे उसे काफी दर्द हो रहा होगा। उस दौरान उसका सारा शरीर हिल-डुल नहीं सकता था। मेरी बच्ची जोर से रो भी नहीं पा रही थी। तब मुझे अहसास हुआ कि ये कितनी घातक बीमारी है।”
क्या है स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप-1
वेदिका की ये हालत जिस स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी-टाइप 1 (SMA) नामक आनुवांशिक बीमारी की वजह से हुई है उसमें शरीर में प्रोटीन बनाने वाला एक जीन के न होने के कारण रोगी की सभी मांसपेशियाँ काम करना बंद कर देती हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो उसके शरीर की हर मांसपेशी काम करना बंद कर देगी और अंततः, उससे संचालित अंग भी। इसी वजह से इससे पीड़ित वेदिका के हाथ, पैर और धड़ पहले ही काम करना बंद कर चुके हैं।
इसी कारण से अब वेदिका न तो अपने आप उलट-पलट सकती है, न बैठ सकती है, न खड़ी हो सकती है और न ही जमीन पर घुटनों के पल चल पाती है। समय पर इलाज नहीं हुआ तो उसके रोने की आवाज भी धीरे-धीरे शांत हो जाएगी, क्योंकि उसकी वोकल कॉर्ड कमजोर हो रही है। निगलने, सांस लेने और उसके हृदय द्वारा रक्त पंप करने जैसी अनैच्छिक क्रियाएँ भी बंद हो जाएँगी, जिससे वेदिका के लिए जीना भी मुश्किल हो जाएगा। महज एक साल की वेदिका इतनी कम उम्र में उस दर्द से गुजर रही है, जिससे बड़ों का भी दिल काँप जाए।
वेदिका के माता-पिता के मुताबिक, अभी हाल ही में पहले वेदिका को साँस लेने में तकलीफ होने लगी थी। उसके फेफड़े में बलगम जमा होने के कारण उसके माता-पिता को नेबुलाइजेशन थेरेपी को देविका की दिनचर्या बनाना पड़ा। उसकी हालत ऐसी है कि उसकी साँसों की देखभाल करने के लिए उसके माता-पिता हफ्तों से सोए नहीं हैं।
क्या है इस बीमारी का इलाज
वेदिका के निष्क्रिय होते शरीर का एक मात्र इलाज जोलगेन्स्मा (Zolgensma) है, जिसे वर्तमान में दुनिया की सबसे महँगी दवा के रूप में जाना जाता है। इसकी कीमत 2.1 मिलियन डॉलर (करीब 15 करोड़ रुपए) है। यह केवल 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों या 13.5 किलोग्राम से कम वजन के बच्चों को ही दी जा सकती है।
भारत में इसी साल मुंबई की एक पाँच महीने की स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA Type 1) से ही पीड़ित बच्ची तीरा कामत को इसका इंजेक्शन दिए जाने को लेकर यह दवा चचार् में आई थी। पीएम मोदी ने तीरा के माता-पिता की अपील पर इस दवा पर लगने वाले 6.5 करोड़ रुपए का इम्पोर्ट टैक्स माफ कर दिया था।
जोलगेन्स्मा स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक जेनेटिकल बीमारी के इलाज के लिए दी जाने वाली दवा है, जिसकी कीमत करीब 15-16 करोड़ रुपए है। इस दवा को पहली बार 24 मई, 2019 को यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने स्वीकृति दी थी। इसे यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) द्वारा 9 मार्च, 2020 को स्वीकृति मिली थी। यह यूएस स्थित स्विस बायो-फार्मास्यूटिकल कंपनी, नोवार्टिस जीन थेरेपी (Novartis Gene Therapies) द्वारा बनाई जाती है।