ओडिशा के सिमिलिपाल अभयारण्य में लगी आग ने पर्यावरणविदों की चिंताएँ बढ़ा दी हैं। सिमिलिपाल बाघों के लिए भी लोकप्रिय है, लेकिन इसमें अक्सर लगने वाली आग ने जंगल के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिए हैं। फरवरी में इसके बायोस्फेयर रिजर्व एरिया में आग लग गई और 1 सप्ताह तक जंगल जलता रहा। हालाँकि, अब इसे नियंत्रित कर लिए जाने की बात कही जा रही है। ये उत्तरी ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित है।
सिमिलिपाल का नाम ‘सिमुल’ से आया है, जिसका अर्थ है सिल्क कॉटन के वृक्ष। ये एक राष्ट्रीय अभयारण्य और टाइगर रिजर्व है। 5569 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल का इकोसिस्टम पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित है, जिसे जून 22, 1994 में केंद्र सरकार ने बायोस्फेयर रिजर्व घोषित किया गया था। ये 94 खास किस्म के फूलों और 3000 तरह के पौधों का घर है। 264 तरह की चिड़िया, 42 किस्म के मैमल्स और 29 किस्म के रेप्टाइल्स इसे खास बनाते हैं।
स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि जंगल से लगे सीमावर्ती इलाकों में 399 फायर पॉइंट्स चिह्नित किए गए हैं। उनका कहना है कि ये पॉइंट्स गाँवों के नजदीक हैं और आग को नियंत्रित करने के लिए हर जगह प्रयास किया जा रहा है, जिससे स्थिति कंट्रोल में है। हर साल पतझड़ के बाद जब वसंत ऋतु आता है तो आग की खबरें सामने आती हैं। इससे पहले यहाँ 2015 में आग की बड़ी घटना हुई थी। गिरी हुई पत्तियों में आग पकड़ने के बाद ये जंगल में फ़ैल जाता है।
इनमें कई बार प्राकृतिक कारणों, जैसे बिजली वगैरह गिरने से ऐसा होता है। सूखी हुई पत्तियों में जरा सी चिंगारी भी आग का रूप ले लेती है। कई बार शिकारी भी जंगल के एक खास क्षेत्र में आग लगा देते हैं, ताकि उनके मनचाहे इलाके से सारे जानवर भाग कर जाएँ। पशु तस्कर अपना काम निकलने के बाद आग को बुझाने की कोशिश तक नहीं करते। महुआ चुनने के लिए भी ग्रामीण सूखी पत्तियों को जलाते हैं।
इससे उन्हें महुआ के फूल चुनने में आसानी होती है। महुआ का उपयोग मदिरा किस्म के पेय को तैयार करने में किया जाता है, जिसे पीकर ग्रामीण मदमस्त हो जाते हैं। ग्रामीणों का ये भी मानना है कि कुछ पेड़ों की शाखाएँ जलने से उनमें बाद में अच्छा विकास होता है। 1200 गाँवों और 4.5 लाख की जनसंख्या पूरे ट्रांजिशन जोन में आती है, जिनमें से 73% आदिवासी हैं। इस बार गर्मी पहले आने और गर्म हवाएँ चलने को भी इसका कारण माना जा रहा है।
Scathing analysis of the devastating #SimlipalFires in Odisha’s largest forest. A big cause: the state govt’s apathy about increased poaching & timber mafia. Contrast with Assam, where 5 years of tough actions have ended Rhino poaching & revived Kazirangahttps://t.co/D8577cyxwu
— Baijayant Jay Panda (@PandaJay) March 6, 2021
ये आग सामान्यतः प्राकृतिक रूप से हुई बारिश के बाद ही नियंत्रण में आते हैं। शिकारियों पर शिकंजा कस कर और सूखे डाल-पत्तियों को हटाना भी इस प्रक्रिया में शामिल है। इस बार पाँचों डिवीजन में 21 स्क्वाड्स बना कर आग पर नियंत्रण के लिए काम पर लगाया गया। 40 फायर टेंडर और 240 ब्लोअर लगाए गए। 250 फॉरेस्ट गार्ड्स काम पर लगे। ग्रामीणों के बीच जागरूकता अभियान की भी शुरुआत की गई है।
भाजपा नेता विजयंत जय पांडा ने भी आग की इस घटना पर दुःख जताते हुए कहा कि ओडिशा के इस सबसे बड़े जंगल में आग लगने का सबसे बड़ा कारण है कि सरकार शिकारियों और टिम्बर माफिया के बढ़ते प्रभावों को लेकर सतर्क नहीं है। उन्होंने इसके लिए असम का उदाहरण दिया, जहाँ भाजपा ने 5 वर्षों के कार्यकाल में राइनो तस्करी पर रोक लगाई और काजीरंगा को बचाया। ओडिशा में नवीन पटनाटक के नेतृत्व में बीजद की सरकार है।
मयूरभंज के राजपरिवार खानदान से ताल्लुक रखने वाली अक्षिता एम भंज देव ने इस आग की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा, “2000 हेक्टेयर आग की चपेट में है। 1000 से अधिक चिड़ियों, पशु और पेड़-पौधों की स्पीसीज खतरे में है। ये 11 दिनों से ऐसा ही चल रहा है।” उन्होंने फोटोग्राफर देबाशीष मिश्रा की तारीफ की, जो इन तस्वीरों को सामने लाकर सरकार व दुनिया का ध्यान आगाह कर रहे हैं।