Sunday, November 17, 2024
Homeविविध विषयअन्य'मुझे तो नहीं लगता सचिन को क्रिकेट बहुत पसंद है' - तेंदुलकर की माँ...

‘मुझे तो नहीं लगता सचिन को क्रिकेट बहुत पसंद है’ – तेंदुलकर की माँ ने क्यों और कब कहा था ऐसा

"सभी लड़के बल्ले और गेंद को सँभालते हैं। लड़कियाँ गुड़िया सँभालती हैं। मुझे नहीं लगता कि इस लड़के को क्रिकेट में कोई दिलचस्पी है। लेकिन ठीक है, खेलने दो, कम से कम गर्मियों के 2 महीने शांतिपूर्ण बीतेंगे।"

सचिन तेंदुलकर की माँ रजनीताई से मीनाताई नाइक का संवाद

एक लंबे अर्से के बाद रजनीताई से मिलकर बहुत ख़ुशी हुई। मुझे याद है कि पहली बार मैंने सचिन को देखा था, जब वह 8 दिन बाद अस्पताल से सीधे साहित्य सहवास में आया था। इससे पहले, तेंदुलकर दादर में रह रहे थे। इसलिए जब रजनीताई और सर (रमेश तेंदुलकर, सचिन के पिता) साहित्य सहवास में आए तो वे दादर में चाबी भूल गए और रजनीताई बच्चे को गोद में लेकर गलियारे में इंतज़ार कर रही थीं। हम लोग तेंदुलकर के बगल में रह रहे थे। मैंने गलियारे में कुछ शोर सुना और देखा कि रजनीताई गलियारे में दुबकी हुई है। मैंने उन्हें अपने घर बुलाया, सचिन को अपनी गोद में बिठाया। सर को कुछ समय बाद दादर से चाबी मिली। तब तक रजनीताई और बच्चा हमारे साथ थे। सर हमेशा इस घटना को याद करते थे। वास्तव में आज हमारी बातचीत की शुरुआत भी इसी मधुर स्मृति से हुई।

जब सचिन 4 या 5 साल का था, तब वह अपने से बड़े बच्चों को पकड़ लेता था। वह बहुत स्वस्थ, चुस्त और मज़बूत बच्चा था। रजनीताई ने उसके घुँघराले बालों को लंबे समय तक बढ़ने दिया था। एक बार जब मैंने सचिन से पूछा कि यह लंबे बालों में कौन है। तो उसने जवाब दिया, “मैं सरदारजी का बेटा हूँ” (मैं सरदारजीछा पोर ऐह)। सचिन लगभग 15 या 16 साल का था जब हम अपने कलानगर घर लौट आए थे। केवल कलानगर के बच्चों के लिए एक कलविहार क्लब था। लेकिन सचिन कैरम या शतरंज या कभी-कभी टेबल टेनिस खेलने के लिए कलविहार क्लब आता था। 1998 में, मैंने एक बच्चों के नाटक की रचना की थी, इसमें हमें एक क्रिकेट बैट की आवश्यकता थी। बच्चों का थिएटर हमेशा कम बजट पर चलता है। इसलिए मैंने सचिन को अपना पुराना बल्ला देने को कहा। अगले दिन सर तीन बल्लों के साथ आए और कहा कि सचिन ने इन बल्लों पर हस्ताक्षर किए हैं, इनमें से कोई भी चुन लीजिए। हमने अपने खेल के लिए उसमें से एक ले लिया और बाक़ी दोनों को वापस कर दिया। वह बल्ला आज भी हमारे पास है, जो कि भारत रत्न प्राप्त सचिन की मधुर स्मृति से जुड़ा हुआ है। अब याद करते हैं वो बातचीत जो हमारे बीच हुई।

प्रश्न: आप LIC में कब थीं? किस शाखा में?

जवाब: – मैं सांताक्रूज शाखा में विदेश विभाग में थी। मैंने अपनी सेवानिवृत्ति तक वहीं सेवा की। मुझे 1992, 1993 और 1994 के दौरान तीन साल तक चलने में कठिनाई हुई। मैं इस अवधि के दौरान छुट्टी पर थी। श्री वी डब्ल्यू पटकी ने मुझे योगक्षेम में स्थानांतरित करने की पेशकश की थी। मैंने कहा नहीं। रिक्शे के ज़रिए सांताक्रूज तक पहुँचना संभव था।

प्रश्न: क्या आपके सहकर्मी अभी भी आपके संपर्क में हैं?

जवाब: – बेशक, वे मुझसे मिलने आते हैं। मैं बाहर नहीं जा सकती ये बात वो जानते हैं इसलिए वो ख़ुद ही मिलने आ जाते हैं। जब मैं LIC के साथ काम कर रही थी, तो सचिन अक्सर कहता था: “आयी (माँ), अपनी नौकरी छोड़ दो।” मेरा काम करना उसे पसंद नहीं था। लेकिन हमारे डॉक्टर ने उसे मना लिया। उन्होंने कहा, “आप अपनी माँ को कैसा देखना पसंद करेंगे? क्या आप चाहेंगे कि वह घर पर बिस्तर पर पड़ी हो या लँगड़ाकर काम कर रही हों? क्या तुम्हारी माँ बाहर जाती है? नहीं। क्या यह बेहतर नहीं है कि वह कार्यालय जाती रहें? सचिन ने कहा, ”आयी को कम से कम खाना तो बनाना चाहिए।” डॉक्टर ने कहा कि क्या यह बेहतर है कि वह घर पर आटा गूँथे। इस पर सचिन आश्वस्त थे।

प्रश्न: क्या आप कभी सचिन को अपने LIC ऑफिस ले गईं थी?

जवाब: – कई बार। शनिवार को नैनी अपने बेटे से मिलने जाती थी। तो मैं सचिन को कहाँ छोड़ सकती थी। मैं फिर उसे अपने कार्यालय ले जाती। वो वहाँ खेलेगा। फिर उसने टेस्ट मैच खेलना शुरू किया। उसने रिकॉर्ड बनाना और तोड़ना शुरू कर दिया। मेरी सेवानिवृत्ति हो गई। फिर मेरे साथियों ने ज़ोर देकर कहा कि मैं उसे एक बार कार्यालय ले आऊँ। वे उनसे मिलना चाहते थे। उन्होंने उसे एक बच्चे के रूप में देखा था। मैंने सचिन से पूछा, क्या तुम एक दिन मेरे ऑफ़िस आओगे? इसके बाद सचिन और अंजलि मेरे ऑफ़िस आए। उन्होंने कहा कि इसे प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन, मुझे नहीं पता कि चपरासी ने सचिन की कार और आसपास के भवनों से LIC कर्मचारियों, आस-पास के टेलीफोन एक्सचेंज के कर्मचारियों, LIC क्वार्टरों के निवासियों को कैसे इकट्ठा किया। फोटो खींचे गए।

प्रश्न: आपको सचिन की प्रतिभा का एहसास पहली बार कब हुआ?

जवाब: – सचिन एक बहुत शरारती बच्चा था। वह जिस साहित्य सहवास में खेलता था, उस परिसर में एक आम का पेड़ था। सचिन सहित सभी बच्चे कच्चे आमों को खा जाते थे। सचिन पेड़ पर चढ़ जाता और दूसरे बच्चे आम पकड़ने के लिए नीचे खड़े हो जाते। एक दिन जब सचिन पेड़ पर चढ़ गया था तो चौकीदार आया और चिल्लाने लगा। सभी बच्चे भाग गए। सचिन पेड़ पर चढ़ा हुआ था। जैसे ही चौकीदार ने पीछे मुड़कर देखा, सचिन नीचे कूद गया। प्रियोलकर अज्जी विपरीत बालकनी से सारा नज़ारा देख रहीं थी और उन्होंने मुझसे कहा, “इस लड़के का ख़्याल रखो।” उस रात हम सभी चिंतित थे। हमने सोचा कि ऐसे बच्चे के साथ क्या किया जाए। परिवार के सभी सदस्यों ने इस पर चर्चा की और अजीत ने कहा, “सचिन अच्छा क्रिकेट खेलते हैं, उनकी क्रिकेटिंग प्रतिभा को परिसर की चार दीवारों में बेकार नहीं जाना चाहिए, आइए हम उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए भेजें।” इस पर मैंने कहा, “सभी लड़के बल्ले और गेंद को सँभालते हैं। लड़कियाँ गुड़िया सँभालती हैं। मुझे नहीं लगता कि इस लड़के को क्रिकेट में कोई दिलचस्पी है।” अजीत ने कहा, “नहीं, वह वास्तव में बहुत अच्छा खेलता है।” तो मैंने कहा ठीक है। कम से कम गर्मियों के दो महीने शांतिपूर्ण रहेंगे। इसके बाद अजीत उसे क्रिकेट प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए ले जाने लगे। तब सचिन के कोच और शिक्षक रमाकांत आचरेकर ने सचिन की प्रतिभा को पहचाना और सचिन का प्रशिक्षण एक बच्चे के रूप में शुरू हो गया।

प्रश्न: क्या उन दिनों में आपके कोई ख़ास सपने थे? क्या आप चाहती थीं कि सचिन अपने पिता की तरह प्रोफ़ेसर बनें?

जवाब: – हर माँ को लगता है कि उसके बच्चे को किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पर पहुँचना चाहिए जिसे वो चुने। मुझे भी ऐसा ही लगा।

प्रश्न: सचिन को सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार भारत रत्न का मिला है। क्या आपको कभी लगा कि उन्हें यह पुरस्कार मिलेगा?

जवाब: – पिछले साल, लता मंगेशकर ने कहा था कि सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए। उस समय मेरे दिल में भी यह ख़्याल आया। इस साल एक चैनल पर एक साक्षात्कार में उन्होंने (लता) फिर से वही बात दोहराई। बाद में, पुरस्कार की घोषणा की गई। सचिन को भारत रत्न दिए जाने से मैं बहुत ख़ुश थी।

प्रश्न: सचिन के मन में आपके लिए अपार सम्मान है। उन्होंने अपना पुरस्कार आपको समर्पित किया है। हमें ऐसी किसी घटना के बारे में बताएँ जो आपके प्रति उनके सम्मान को दर्शाती हो।

जवाब: – सचिन पहली या दूसरी कक्षा में था और स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग थी। मैं भी गई। उसकी कक्षा की एक लड़की शैफ़ाली ने मुझ पर टिप्पणी करते हुए कहा, “सचिन की माँ कितनी अजीब दिखती है।” फिर अगले दिन मुझे स्कूल से एक संदेश मिला जिसमें मुझे शिक्षक से मिलने के लिए बुलाया गया था। मैं गई और शिक्षक ने शिक़ायत करते हुए कहा, “सचिन ने शैफ़ाली को सीने में मारा और शैफ़ाली रो रही थी।” शेफाली की माँ भी उसके साथ स्कूल आई थी। मैंने कहा मैं सचिन से पूछ कर पता लगाऊँगी। मैंने उससे पूछा, तब सचिन ने बताया कि शैफ़ाली ने आपके बारे में क्या कहा था। और उसने कहा कि इसीलिए उसने (सचिन) उसे (शैफ़ाली) मारा था। शैफ़ाली ने उस वक़्त एक शब्द भी नहीं कहा और वो चुप रही। मैंने शिक्षक से कहा कि मुझे कोई आपत्ति नहीं है कि शैफ़ाली ने मेरे बारे में क्या कहा था। लेकिन सचिन को बहुत गुस्सा आया। और इसलिए उसने उसे मारा। फिर हमने दोनों को मनाया। सचिन एक बच्चे की तरह थे। कई सालों के बाद जब दोनों बड़े हो गए, शैफ़ाली ने सचिन को एक बार सीढ़ियों पर रोक दिया और उससे पूछा कि क्या वह उसे पहचानते हैं, जिन्होंने उसके सीने में मारा था। सचिन ने कहा कि ‘नहीं’, और शैफ़ाली ने सचिन को पूरी कहानी सुनाई। दोनों हँस पड़े। वैसे, शैफ़ाली प्रसिद्ध पत्रकार और उपन्यासकार अरुण साधु की बेटी हैं। फ़िलहाल, अब शैफ़ाली एबीपी माज़ा के लिए काम कर रही हैं।

प्रश्न: सचिन बहुत विचारशील हैं, विचार में परिपक्व हैं। आपने उसे ऐसा करने के लिए कैसे प्रशिक्षित किया? उनके व्यवहार के लिए कभी कोई उनकी आलोचना नहीं करता। उनकी सफलता उसके सिर नहीं चढ़ी, ऐसा कैसे है?

जवाब: – कोई भी माँ यह नहीं जानती कि जब उसका बच्चा बड़ा होगा तो उसका व्यवहार कैसा होगा। वह अपने सभी बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार करती है। सचिन भी अपने भाई-बहनों की तरह ही बड़े हुए थे। और वह अपने पूरे परिवार से प्यार करते हैं। सचिन ने अपना स्कूल बदला और दादर के शरदश्रम विद्या मंदिर गए। वहाँ उसे बसें बदलनी पड़ती थी। लेकिन वह इसके लिए तैयार था। सचिन के चाचा दादर में रहते हैं। बसें बदलने की समस्या को जानकर उनके चाचा परेशान रहने लगे, इसके लिए उन्होंने सचिन को साथ रहने के लिए कहा, जिसे सचिन ने मान लिया। सचिन आज भी अपने चाचा और चाची से मिलने जाता है। वह अपनी चाची से अपने पसंदीदा व्यंजनों की फ़रमाइश भी करता है। सचिन अपने सभी भाई-बहनों से बहुत प्यार करता है। जब वो छोटा था तो नितिन और सविता के बीच में सोता था।

प्रश्न: सचिन की नैनी, लक्ष्मीबाई, 10-12 साल तक आपके साथ थीं। सचिन उनसे प्यार करते थे?

जवाब: – ओह! हाँ! जब सचिन बड़े हुए, तो उन्होंने कहीं और काम करना शुरू कर दिया। वह सचिन को देखने आती थीं। साहित्य सहवास की महिलाओं ने मुझसे बताया कि सचिन उन्हें हज़ार रुपए देता है, उसे समझाओ। इस पर मैंने कहा कि वह कमाता है, इसलिए वह उन्हें पैसा देना चाहता है, तो उसे देने दो। मैं उसे क्यों रोकूँ? उन्होंने सचिन के लिए बहुत कुछ किया है।”

प्रश्न: क्या सचिन बहुत बड़े भक्त हैं?

जवाब: – मैं आपको एक कहानी सुनाऊँगी। मेरे पेट का ऑपरेशन होना था। मैं अस्पताल में भर्ती हो रही था और लिफ़्ट से जा रही थी। लिफ़्ट में साईं बाबा की तस्वीर थी। मैंने लापरवाही से कहा, “अगर मैं उस ऑपरेशन से बच गई, तो मैं आपसे मिलने आउँगी।” इसके बाद, “मैं लिफ़्ट से जब बाहर आई तो वहाँ एक गणपति की तस्वीर थी। मैंने फिर वही बात कही। तब मेरा ऑपरेशन किया गया था। अगले दिन सुबह सचिन सिद्धि विनायक मंदिर गए। उन्होंने पास के एक साईं बाबा मंदिर का भी दौरा किया। वह एक बार मुझे हेलीकॉप्टर में शिरडी ले गया था।”

प्रश्न: आपने सचिन के पूरे करियर के दौरान एक भी मैच नहीं देखा। फिर आपने 200वाँ टेस्ट मैच देखा। भीड़ बहुत थी। तब आपने कैसा महसूस किया?

जवाब: – मैं कभी किसी मैच में नहीं गई थी। मैं बहुत तनाव में रहती थी। हम टेलीविज़न पर देखते थे। इस बार सचिन ने कहा, “आयी, आप इस बार ज़रूर चलें। मैंने उन्हें आपके लिए मुंबई में यह मैच करवाने के लिए कहा है। यदि आप नहीं चलोगी तो उन्हें कैसा महसूस होगा?” इस बार मुझे एक शारीरिक समस्या हुई। मैं एक क़दम भी नहीं चल सकती थी। तब सचिन ने मेरे लिए विशेष रूप से रैंप बनवाया। लेकिन, उम्मीद के मुताबिक़ काफ़ी भीड़ थी, सचिन को मेरे लिए व्हीलचेयर भी मिल गई। मुझे शुरुआती दिनों की एक और घटना याद है, तब सचिन का चौथा टेस्ट मैच था। वो मैच पाकिस्तान में था। उस दौरान उसकी नाक पर चोट लगी थी, जिससे वो नीचे गिर गया था। उस समय मैं बहुत डर गई थी। वह तब बहुत छोटा था। लेकिन उनके सहयोगियों ने हमें आश्वस्त किया। उन्होंने कहा कि सचिन दो मिनट में उठ गए और वो खेलना चाहते थे। उस मैच में उन्होंने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन भी किया।

प्रश्न: माँ रिटायर हो गईं, पिता रिटायर हो गए। अब सचिन कम उम्र में रिटायर हो रहे हैं। आपको कैसा लग रहा है? क्या आप चिंतित हैं? अब वह अपना समय कैसे व्यतीत करेगा?

जवाब: – अब वह यात्रा के दौरे पर है। वह दिल्ली, फिर कोलकाता गया। मैंने उनसे हमारे परिवार के देवता के पास जाने के लिए कहा। इसलिए वह गोवा चला गया। अभी वह यात्रा कर रहा है।

प्रश्न: अंजलि, सचिन की पत्नी के साथ आपके क्या अनुभव हैं?

जवाब: – अंजलि एक शिक्षित, विख्यात परिवार से हैं। वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। वह विनम्र, नेकदिल और धर्मनिष्ठ हैं। वह हम सभी का बहुत अच्छे से ख़्याल रखती हैं। साथ ही बच्चों का भी पूरा ध्यान रखती हैं।

प्रश्न: अपने पोती सारा और पोते अर्जुन के बारे में कुछ बताइए?

जवाब: – सारा बहुत शांत और अच्छा व्यवहार करती है। अर्जुन हमेशा सक्रिय रहता है। जब वे छोटे थे और सचिन और अंजलि बाहर होते थे तो, सारा ही अर्जुन का ख़्याल रखती थी। जब वह 10वीं कक्षा में थी तो वह हमेशा पढ़ाई करती थी। मेरा चचेरा भाई जब उससे पूछता कि तुम इतना क्यों पढ़ती हो तो वो जवाब देती कि हर कोई मेरे पिता को जानता है। अगर मुझे ख़राब अंक मिलेंगे तो कोई क्या कहेगा? वो मम्मा से क्या कहेगी कि उसे अच्छे अंक क्यों नहीं मिले? वहीं, अर्जुन बहुत प्यारा बच्चा है। वह लोगों से प्यार करता है। जब वह छोटा था, तो उसके दोस्त खेलने के लिए घर आते थे। वह उन्हें मेरे कमरे के पास नहीं आने देता। वह कहता, कि यह आज्जी का कमरा है। यहाँ मत खेलो। तब उसके दोस्त कहते थे, तो क्या हुआ? ये तो हमारी दादी भी हैं। अर्जुन कहता, ‘लेकिन मेरी अज्जी अलग हैं। उनके पैरों में दर्द रहता है। अगर उन्हें धक्का लगा तो वो गिर जाएँगी। उनकी हड्डियाँ टूट जाएँगी। इसलिए हमें यहाँ नहीं खेलना चाहिए।

प्रश्न: क्या आपको लगता है कि अर्जुन भी बतौर क्रिकेटर अपना भविष्य बनाएँगे?

जवाब: – उसे अब खेल पसंद है। मुझे नहीं पता कि बाद में क्या होगा!

प्रश्न: ये विश्व विजेता क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के बच्चे हैं। जन्म से ही उनके आसपास एक प्रभामंडल रहा है। फिर भी वे सचिन की तरह संतुलित हैं। आपने उनका पालन पोषण करने के लिए क्या किया है?

जवाब: – युवा होने पर ऐसा करना चाहिए। मैं अर्जुन से कहती थी कि वह स्कूल में अपने दोस्तों के साथ भोजन करे। सबके साथ मिलकर रहे। उसके बाद दूसरे लोग भी उसके साथ ऐसा ही करेंगे। अंजलि की माँ भी गरीब बच्चों के लिए काम करती हैं। वह झुग्गियों में भी जाती हैं। हमारे बच्चे वह सब देखते हैं।

प्रश्न: मुझे याद है कि आपने साहित्य सहवास छोड़ दिया था और ले मेर में रहने चली गईं थी। लेकिन सारा और अर्जुन अभी भी यहाँ खेलने आए थे। मुझे लगता है कि इसके पीछे ऐसा सोचा गया कि उन्हें सामान्य बच्चों के साथ बढ़ना चाहिए?

जवाब: – हाँ, उन्हें साहित्य सहवास में खेलना अच्छा लगता है। इसलिए अंजलि उन्हें वहाँ भेज देती हैं।

प्रश्न: मैंने सुना है कि आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं। सचिन को क्या पसंद है?

जवाब: – सचिन को मांसाहारी खाना पसंद है। उसे मेरे व्यंजन पसंद हैं। अर्जुन और सारा को भी हमारा खाना पसंद है। सारा को मछली पसंद है। जब वे छोटे थे तब सारा और अर्जुन लंदन में अंजलि के चाचा से मिलने गए थे। अंजलि की चाची ब्रिटिश हैं। उन्होंने बहुत जल्दी खाना बनाया। सारा ने कहा कि अज्जी ऐसा नहीं करती हैं। वह नारियल, प्याज का उपयोग करती है। सचिन को अजीब लगा। लेकिन, अंजलि स्थिति को बचाने में कामयाब रही। बच्चे कितने मासूम होते हैं।

प्रश्न: सचिन के भारत रत्न के बारे में जानने के बाद LIC के शीर्ष गणमान्य व्यक्ति आपसे मिलने आए थे?

जवाब: – हाँ, सचिन उस दिन घर पर थे। उन्होंने उससे कहा, ‘सचिन, तुम्हारी माँ हमारे साथ LIC में थीं। LIC एक परिवार है। आप भी हमारे परिवार का हिस्सा हैं। फिर उन्होंने सचिन के साथ फोटो खिंचवाई। मैं बहुत ख़ुश थी। 

प्रश्न: कामकाजी महिलाओं के नाम आपका क्या संदेश है?

जवाब: – सचिन के पिता कहते थे कि महिलाओं को बाहर जाकर काम करना चाहिए। अपने घर तक अपने आप को सीमित नहीं करना चाहिए। अपने क्षितिज का विस्तार करें। मैंने अपनी सेवानिवृत्ति तक काम किया। इसलिए मुझे लगता है, अगर आपके पास नौकरी है, तो भी आपको अपने बच्चों के लिए कुछ समय अलग रखना चाहिए। 

(यह साक्षात्कार पहली बार मार्च 2014 में प्रकाशित हुआ था)।

यह मूल ख़बर OpIndia English की है, जिसका अनुवाद प्रीति कमल ने किया है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Ritesh
Ritesh
Cricket enthusiast, Tendulkar fan and a traveler  !

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

महाराष्ट्र में महायुति सरकार लाने की होड़, मुख्यमंत्री बनने की रेस नहीं: एकनाथ शिंदे, बाला साहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहने का राहुल गाँधी...

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने साफ कहा, "हमारी कोई लड़ाई, कोई रेस नहीं है। ये रेस एमवीए में है। हमारे यहाँ पूरी टीम काम कर रही महायुति की सरकार लाने के लिए।"

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द...

पीएम की चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -