डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू कैबिनेट में उद्योग मंत्री की अहम ज़िम्मेदारी दी गई थी – यह तो हम सभी जानते हैं। लेकिन, कॉन्ग्रेस पार्टी से मतभेदों के कारण ‘एक राष्ट्र, एक विधान’ के लिए अभियान चलाने वाले डॉक्टर मुखर्जी ने पार्टी छोड़ दी। फिर जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष रहे मुखर्जी की मृत्यु जम्मू कश्मीर में हुई। उसी जम्मू कश्मीर में- जिसे भारत का बिना शर्त अभिन्न अंग बनाने के लिए वह प्रयासरत थे। वे जम्मू कश्मीर गए, वहाँ उन्हें हिरासत में ले लिया गया। हिरासत में ही उनकी तबियत ख़राब हुई और उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन, उनकी मृत्यु की सूचना को उनके भाई तक पहुँचाने वाला एक ऐसा शख़्स था, जिसकी पहचान अनजान होकर रह गई।
जब डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु हुई, तब उनके बड़े भाई के पास एक कॉल आया। उनके भाई एक जज थे। वैसे डॉक्टर मुखर्जी के पिता भी कलकत्ता हाइकोर्ट में जज थे। ख़ुद डॉक्टर मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके थे और उन्हें दक्ष शिक्षाविद माना जाता था। डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु के बाद उनके भाई जस्टिस मुखर्जी के पास एक फोन कॉल आया था। फोन कॉल पर कौन था, किसी को नहीं पता। अनजान शख़्स ने जस्टिस मुखर्जी को बताया कि वह जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की तरफ़ से बोल रहा है। उसी अनजान शख़्स ने जस्टिस मुखर्जी को उनके भाई डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु की सूचना दी।
लेकिन, इसके बाद उसने जस्टिस मुखर्जी से ऐसा सवाल पूछा, जिससे वो अचानक से चौंक गए। उसने पूछा कि डॉक्टर मुखर्जी के पार्थिव शरीर के साथ क्या करना है? उसने अपनी पहचान बताने से साफ़ इनकार कर दिया। आज रविवार (जून 23, 2019) को जब देश डॉक्टर मुखर्जी की पुण्यतिथि मना रहा है, यह सवाल फिर से उठता है कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की तरफ़ से डॉक्टर मुखर्जी के परिवार को कॉल करने वाला व्यक्ति कौन था और उसका श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु से क्या वास्ता था? बाद में डॉक्टर मुखर्जी के भाई जस्टिस मुखर्जी को उनकी मृत्यु की आधिकारिक सूचना पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधान चंद्र रॉय से मिली।
विधान चंद्र रॉय, जिन्होंने देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिख कर डॉक्टर मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की जाँच कराने की माँग की थी। लेकिन, भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज बयान देते हुए कहा कि जनता की माँगों के बावजूद नेहरू ने डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु की जाँच नहीं कराई। क्या आपको पता है कि जब डॉक्टर मुखर्जी का पार्थिव शरीर कश्मीर से कोलकाता लाया जा रहा था, उससे पहले शेख अब्दुल्ला ने उनके पार्थिव शरीर पर कश्मीरी शॉल डाला था? शेख अब्दुल्ला सहित उनकी कैबिनेट के अनेक मंत्रियों ने पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण किया था। अब्दुल्ला ने एक माला बेगम अब्दुल्ला की तरफ़ से भी पेश किया था।
बताया जाता है कि डॉक्टर मुखर्जी लगभग 10 से भी अधिक दिनों से बीमार चल रहे थे। उनके पार्थिव शरीर को कोलकाता तक लाने के लिए भारत सरकार ने वायुसेना के स्पेशल प्लेन की व्यवस्था की थी। एक सक्रिय सांसद के रूप में पहचाने जाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने भी उनकी प्रशंसा की। एक और बात ध्यान देने लायक है कि उनकी मृत्यु से पहले उनके भाई जस्टिस मुखर्जी के पास उनके नाम से एक टेलीग्राम आया था, जिसमें लिखा था कि वे ठीक हैं और बुखार एवं दर्द इत्यादि भी कम हो गया है। बताया गया कि ये टेलीग्राम उनकी तरफ़ से जेल से ही आया था।