मानव स्वभाव अक्सर लतों से बनता-बिगड़ता है। लोगों को, खासकर युवाओं को कई चीजों की लत लगने का खतरा बना रहता है। यही कारण है कि बच्चों के माता-पिता अक्सर इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके बच्चे किस संगत में उठते-बैठते हैं और क्या करते हैं। माँ-बाप अधिकतर अपने बच्चों की बुरी लतों को लेकर चिंतित रहते हैं। एक जमाना था कि सामान्य तौर पर पान, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, शराब वगैरह ऐसी चीजें हैं जिनकी लत लगने से युवाओं के परिवार वाले परेशान हो जाते हैं। हर बुरी लत के परिणाम के तौर पर सबसे बड़ी चिंता बच्चों के बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर रहती थी। इसके अलावा उस बुरी लत पर होने वाला खर्च परिवार के लिए परेशानी का कारण बनता था। ऐसे में लाजमी था कि माँ-बाप अपने बच्चों की संगत को लेकर सतर्क रहते हैं।
केवल संगत को लेकर माँ-बाप के सतर्क रहने की बात अब पुरानी हो गई हैं। बच्चों की बुरी लतों की सूची में अब एक ऐसी लत जुड़ गई है जिसके लिए किसी संगत की आवश्यकता नहीं है। दरअसल ये लत अक्सर संगत के अभाव में लगती है। यह बुरी लत है लगातार स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल की। खराब स्वास्थ्य का खतरा और अनावश्यक खर्च जैसी मूल समस्याएँ इस लत का भी परिणाम होती हैं।
मिलिए चूरू, राजस्थान के 20 वर्षीय अकरम से। खबर के मुताबिक अकरम पिछले पाँच दिनों से सोया नहीं है। अकरम की इस विचित्र स्थिति का कारण है उसका लगातार स्मार्टफ़ोन पर कुछ न कुछ करते रहना। अकरम को अपने फ़ोन पर गेम खेलने की और वीडियो देखने की ऐसी लत लगी है कि उसने न केवल अपना काम बंद कर दिया है, बल्कि खाना-पीना-सोना और परिवार वालों के साथ बात तक करना तक त्याग दिया है। उसकी इस हालत से डर कर परिवार ने उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया है, जहाँ उसे देखने और उसकी इस हालत को रिकॉर्ड करने के लिए उसके तमाम रिश्तेदार अपने-अपने स्मार्टफ़ोन से लैस होकर अस्पताल पहुँच रहे हैं।
प्रश्न यह है कि क्या ऐसा करने वाला अकरम अकेला भारतीय युवा है? नहीं, अकरम अकेला नहीं है। अकरम की तरह लाखों युवा हैं जिनकी इस ‘स्मार्ट’ लत का स्तर शायद अकरम की श्रेणी का न हो पर इस लेवल तक जाने की अशंक से इनकार इनकार नहीं किया जा सकता।
पिछले कई वर्षों में भारत में स्मार्टफ़ोन की संख्या न केवल बढ़ी है बल्कि प्रति स्मार्टफ़ोन डेटा के इस्तेमाल में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। ऐरिक्सन मोबिलिटी रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में प्रति स्मार्टफ़ोन डेटा का इस्तेमाल 14.6 GB प्रति महीने है जो विश्व में दूसरे स्थान पर है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 4G सब्सक्राइबर की संख्या 2020 में 68 करोड़ बढ़कर 2026 तक 83 करोड़ हो जाएगी। इसी रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वर्ष 2026 तक देश में 5G सब्सक्राइबर की संख्या 35 करोड़ होने की संभावना है जो देश में सभी मोबाइल फ़ोन की संख्या का 40 प्रतिशत होगा। ऐरिक्सन के इस सर्वे के अनुसार वर्ष 2020 में देश के सभी मोबाइल फ़ोन में स्मार्टफ़ोन की संख्या 72 प्रतिशत थी, जिसके वर्ष 2026 तक 98 प्रतिशत होने की संभावना है।
स्मार्टफ़ोन पर लगातार बढ़ रहे डेटा के इस्तेमाल का आँकड़ा आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है। वर्ष 2020 में प्रति स्मार्टफ़ोन 14.6 GB डेटा इस्तेमाल हो रहा था, जिसके वर्ष 2026 तक प्रति स्मार्टफ़ोन 40 GB तक पहुँच जाने की संभावना है। डेटा इस्तेमाल के इस तरह से बढ़ रहे आँकड़े के पीछे अनेक कारण हैं जिनमें डिजिटल पेमेंट से लेकर शिक्षा के लिए किया जाने वाला स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल प्रमुख हैं। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे पिछले पाँच वर्षों में डेटा की घटी हुई कीमतें एक प्रमुख कारण थी। मोबाइल डेटा की कीमतें कम करने के पीछे रिलायंस के टेलीकॉम ऑपरेशन जिओ का प्रमुख हाथ था। यह बात और है कि एक बड़ा सब्सक्राइबर बेस बनाने के बाद जिओ ने अपने डेटा प्लान की कीमतें बढ़ाई तब स्मार्टफ़ोन के इस्तेमाल की लत के मारे जिओ के सब्सक्राइबर ने कीमतों में इस बढ़ोतरी को स्वीकार कर लिया।
जिओ द्वारा पहली बढ़ोतरी के बाद अन्य टेलीकॉम कंपनियों ने भी डेटा की कीमतें बढ़ाई। अब एक बार फिर रिलायंस जिओ, वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल ने पिछले एक सप्ताह में अपने प्रीपेड प्लान की दरें औसत रूप से 20% से 25% तक बढ़ा दिए हैं। कंपनियों ने इस बढ़ोतरी के पीछे अलग-अलग कारण बताए हैं। जहाँ वोडाफोन आइडिया ने इस बढ़ोतरी के पीछे कंपनी द्वारा ‘प्रति सब्सक्राइबर से औसत आय’ बढ़ाने के प्लान को कारण बताया है, वहीं एयरटेल ने बढ़ोतरी के पीछे ‘आर्थिक तौर पर एक स्वस्थ बिज़नेस मॉडल के विकास के लिए कैपिटल पर यथोचित रिटर्न सुनिश्चित करना’ बताया है। रिलायंस जिओ ने बढ़ोतरी के पीछे उसके ‘एक चिरस्थायी टेलीकॉम उद्योग को मजबूत करने की प्रतिबद्धता’ को कारण बताया है।
टेलीकॉम कंपनियों द्वारा डेटा की दरों की बढ़ोतरी के पीछे बताए गए कारण चाहे जो हों पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश में इतने बड़े स्तर पर डेटा इस्तेमाल के बावजूद यदि टेलीकॉम कम्पनियाँ एक बार में डेटा दरों में 20% से 25% बढ़ोतरी करती हैं तो यह इतने बड़े टेलीकॉम सब्सक्राइबर बेस के लिए न तो तार्किक है और न ही देश में लगातार बढ़ रहे डिजिटल स्पेस/रेवोलुशन के हित में है। पिछले चार वर्षों में जिस तरह से डिजिटल स्पेस का विकास हुआ है, उसे जारी रखने के लिए कीमतों का आम सब्सक्राइबर की पहुँच से बाहर न जाना तय करना टेलीकॉम कंपनियों की जिम्मेदारी है क्योंकि लगातार बढ़ रहे डिजिटल स्पेस की वजह से नई-नई सेवाएँ इस दायरे में आ रही हैं। जैसे-जैसे भारत के देहात इससे जुड़ते जाएँगे वैसे-वैसे सेवाओं को आम आदमी की पहुँच में बरकारार रखने की जिम्मेदारी भी बढ़ती जाएगी।