Monday, December 23, 2024
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7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779 का उत्तर क्या होगा? वो महिला, जिन्होंने मात्र 28 सेकेंड्स में बता दिया था…

उन्होंने 95,443,993 (उत्तर- 457), 204,336,469 (उत्तर- 589) और 2,373,927,704 (उत्तर- 1334) के क्यूब रूट्स क्रमशः 2, 5 और 10 सेकेंड्स में कैलकुलेट कर लिया। इसके बाद उन्होंने...

आपने हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘शकुंतला देवी’ का नाम सुना होगा, जो जुलाई 31, 2020 को ‘अमेज़न प्राइम वीडियो’ पर स्ट्रीम हुई थी। इसमें मशहूर अभिनेत्री विद्या बालन ने ‘ह्यूमन कम्प्यूटर’ कही जाने वाली शकुंतला देवी का किरदार निभाया था। शकुंतला देवी (1929-2013) के पास औपचारिक शिक्षा में बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ नहीं थीं, परीक्षाओं में वो असाधारण परिणाम नहीं लाती थीं, लेकिन गणित की गणनाओं में उनका कोई सानी न था।

वो बड़े से बड़े कैलकुलेशंस भी इतने कम समय में कर दिया करती थीं कि कैलकुलेटर को भी शर्म आ जाए। यहाँ हम आपको बताएँगे कि आखिर क्यों वो लोकप्रिय हुईं और वो कौन सी उपलब्धियाँ थीं, जिन्होंने उन्हें महान बनाया। सबसे पहले तो आते हैं क्यूब रूट्स पर। 1930 के दशक में जब वो बच्ची थीं, तभी वो बड़े-बड़े क्यूब रूट्स तेज़ी से निकाल दिया करती थीं। अब बात करते हैं इसके 58 साल बाद 1988 की एक घटना की।

स्थान था बर्केले का ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया’, जिसके बारे में कोई परिचय देने की ज़रूरत ही नहीं है। मनोवैज्ञानिक आर्थर जेन्सेन ने शकुंतला देवी की क्षमताओं का परीक्षण किया। पूरी दुनिया की नजरें इस पर थीं। वहाँ पर उन्होंने 95,443,993 (उत्तर- 457), 204,336,469 (उत्तर- 589) और 2,373,927,704 (उत्तर- 1334) के क्यूब रूट्स क्रमशः मात्र 2, 5 और 10 सेकेंड्स में कैलकुलेट कर लिया।

ये सब उन्होंने मन ही मन किया, बिना कागज-कलम का इस्तेमाल किए। स्क्वायर रूट्स और क्यूब रूट्स तो दूर की बात है, उन्होंने मात्र 40 सेकेंड्स में 455,762,531,836,562,695,930,666,032,734,375 जैसी विशाल संख्या का 7वाँ रूट निकाल लिया था। इसका उत्तर 46,295 होगा। इसका अर्थ ये हुआ कि अगर आप इस संख्या को 7 बार इसी संख्या से ही गुणा करेंगे, तो इसका उत्तर वो 27 डिजिट्स वाली विशाल संख्या होगी।

ये भी उसी टेस्ट में हुआ और इसे औपचारिक रूप से रिकॉर्ड में भी रखा गया। अब आ जाते हैं बड़े-बड़े गुणा पर। ये एक ऐसी कला थी, जिसके कारण उन्हें 1982 में ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में स्थान मिला। जून 18, 1980 में शकुंतला देवी को 13 अंकों की दो संख्याएँ दी गईं और उन्हें गुणा कर के परिणाम बताने को कहा गया। उन्होंने मात्र 28 सेकेंड्स में उसका उत्तर निकाल लिया। ये गुणा और इसका जवाब कुछ इस प्रकार था:

7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779 = 18,947,668,177,995,426,462,773,730

शकुंतला देवी की एक खासियत ये थी कि वो किसी भी तारीख को देख कर ही बता देती थीं कि उस डेट को कौन सा दिन रहा होगा। अगर आपसे हम पूछें कि जुलाई 31, 1920 को कौन सा दिन था, तो आप गूगल कैलेंडर पर ढूँढने लगेंगे। लेकिन, शकुंतला देवी ने तुरंत बता दिया था कि उस दिन शनिवार था। अगर आप उन्हें इसे महीना-तारीख-वर्ष के हिसाब से बताते, (जैसे जुलाई 13, 1920) तो वो मात्र एक सेकेण्ड में इसका उत्तर दे देती थीं।

वहीं अगर उन्हें वर्ष-महीना-तारीख के फॉर्मेट में बताया जाता था तो वो इतने कम समय में उत्तर बता देती थीं कि उत्तर बताने के समय की गणना के लिए आपको स्टॉपवॉच चालू करना पड़ता, ऐसा विशेषज्ञों ने पाया था। ये सब उन्होंने खुद ही सीखा था। उन्हें किसी स्कूल-कॉलेज में ये सब नहीं सिखाया गया। उनके पिता सर्कस में काम करते थे और इसीलिए उन्हें बचपन से ही माता-पिता के साथ घूमना पड़ता था।

वो कार्ड ट्रिक्स से खेलते-खेलते गणनाएँ सीख गईं और कब उनके दिमाग ने कम्प्यूटर की तरह काम करना शुरू कर दिया, पता ही नहीं चला। जब उन्होंने बड़े-बड़े क्यूब रूट्स के कैलक्युलेशन्स सीखे तो वो इस पर परफॉरमेंस भी देने लगीं। अपनी युवावस्था के पहले ही वो दुनिया भर में कई कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में घूम-घूम कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी थीं। एक तरह से उन्होंने खुद की प्रतिभा को खुद ही निखारा।

उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें से गणित के पजल्स और कई ट्रिक्स के बारे में सिखाया। उन्होंने बच्चों को गणित की शिक्षा देने के लिए भी किताबें लिखीं। इन किताबों से पता चलता है कि उन्हें गणित के बारे में वो सब पता था, जो छात्रों को औपचारिक रूप से पढ़ाया जाता है। उन्होंने ये सारे गुर खुद ही बड़ी-बड़ी किताबों को पढ़ कर सीखा था। उनकी मानसिक क्षमताओं पर रिसर्च हुए थे, जर्नल्स भी प्रकाशित हुए थे।

लेकिन, बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक भी ये नहीं खोज पाए कि आखिर उनकी ऐसी क्षमताओं के पीछे क्या कारण थे और वो कैसे इतने बड़े-बड़े कैलकुलेशंस कर लिया करती थीं। पाया गया कि ये सब उन्होंने बचपन में ही सीख लिया और फिर बाद में सब कुछ ऑटोमैटिक हो गया। ऐसी थी उनकी प्रतिभा! कहा जाता था कि उन्हें बड़े-बड़े अंकों की संख्याएँ अपने सामने उसी तरह से दिखती थीं, जैसे हमें एक-दो अंकों की संख्याएँ दिखती हैं।

उनके बारे में एक और बात जानने लायक ये है कि वो समलैंगिक विषय (Homosexuality) पर एक पुस्तक भी लिख चुकी हैं। समलैंगिकों के लिए उनके मन में एक सॉफ्ट कॉर्नर था। उनका कहना था कि हर व्यक्ति की सेक्सुअल टेन्डेन्सीज अलग-अलग होती हैं और अलग-अलग समय पर अलग ओरिएंटेशन हो सकते हैं। इन सबके अलावा वो एस्ट्रोलॉजी और कुकिंग पर भी पुस्तक लिख चुकी हैं। उन्होंने ‘ह्यूमन कम्प्यूटर’ टाइटल को अपने लिए पसंद नहीं किया, क्योंकि वो मानती थीं कि मनुष्य का दिमाग कम्प्यूटर से कहीं ज्यादा तेज़ है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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