भारत के ‘चंद्रयान 3’ (Chandrayaan 3) ने चाँद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की है, ये तो बड़ी खबर है ही लेकिन इससे भी बड़ी खबर ये है कि ये लैंडिंग चाँद (Moon) के दक्षिणी ध्रुव (South Pole) पर हुई है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि आज तक दुनिया का कोई भी देश चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने में सफल नहीं हो पाया था। ये पहली बार है जब भारत ने, ISRO ने ये कारनामा कर दिखाया है। आपके मन में ये सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि आखिर चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना इतना कठिन क्यों है? आइए, जानते हैं ये एक बड़ी उपलब्धि क्यों हैं।
चाँद के सतह के अधिकतर हिस्सों में सूर्य का प्रकाश नियमित रूप से आता-जाता रहता है और अँधेरा भी इसी हिसाब से आता-जाता रहता है। लेकिन, बात जब चाँद के दक्षिणी ध्रुव की आती है तो यहाँ सूर्य का प्रकाश एक अलग एंगल से पहुँचता है। इससे चाँद पर जो गड्ढे बने हुए हैं, जिन्हें हम Lunar Craters कहते हैं, उनकी लंबी-लंबी छाया बनती है। इनमें से कुछ गड्ढे तो ऐसे हैं, जो हमेशा अँधेरे में ही रहते हैं। इसका कारण है – उनके भीतर सूर्य का प्रकाश पहुँच ही नहीं पाता है।
सूर्य का प्रकाश गड्ढों की पेंदी तक नहीं पहुँच पाता है और इस कारण चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर ये बड़े-बड़े गड्ढे हमेशा अँधेरे में ही रहते हैं। ये भी पता चला है कि उनके भीतर जमे हुए बर्फ के टुकड़े भी हो सकते हैं, जो करोड़ों वर्षों से उसके भीतर ही कैद हों। ‘चंद्रयान 1’ और ‘चंद्रयान 2’ के माध्यम से पता चला था कि चाँद की सतह पर हाइड्रोक्सिल (OH) मौजूद है। साथ ही वहाँ पानी के निशान भी मिले थे। अंतरिक्ष में पानी खोजना सोना खोजने से भी ज़्यादा कीमती माना जाता है। ये हर अंतरिक्ष खोज के विषय में रहता ही रहता है।
सीधे शब्दों में चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कठिन है। सॉफ्ट लैंडिंग का अर्थ है, गति को नियंत्रण में रखते हुए एकदम धीमे से लैंडिंग कराना, जिससे स्पेसक्राफ्ट को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुँचे। पूरे चाँद पर इसे सफल बनाना कठिन है। NASA का ‘अपोलो’ और सोवियत रूस का ‘सर्वेयर’ चाँद के इक्वेटर के पास लैंड हुआ था। वहाँ सतह सामान्यतः सपाट है। जबकि चाँद का दक्षिणी ध्रुव ऊबर-खाबड़ है। इसीलिए भी वहाँ लैंडिंग कठिन है।
चाँद का दक्षिणी ध्रुव कठोर है, ऊबड़-खाबड़ है, वहाँ गड्ढे हैं, जमीन में कई जगह खाई बनी हुई है, सूर्य का प्रकाश सही से नहीं आता है। साथ ही वहाँ तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक भी गिर जाता है। रूस का ‘लूना 25’ भी यहाँ लैंड करने में विफल रहा था। आपके मन में ये सवाल भी उठ सकता है कि क्यों न चाँद के आसान से हिस्से पर लैंड किया जाए और वहाँ से रोवर को चल कर दक्षिणी ध्रुव तक भेजा जाए? नहीं। ये फ़िलहाल संभव नहीं है। इसका कारण है – रोवर की इतनी ज़्यादा सेल्फ-लाइफ नहीं है।
HISTORY HAS BEEN MADE#Chandrayaan3's successful landing means that India is now the 4th country to soft-land a spacecraft on the Moon, and we are now the ONLY country to land successfully near the south pole of the Moon! 🇮🇳🌖 #ISRO pic.twitter.com/1D8Bdo4r8F
— ISRO Spaceflight (@ISROSpaceflight) August 23, 2023
दूसरा कारण – चाँद की सतह भी ऐसी है कि उस पर चलना ठीक नहीं है। उस सतह पर गाड़ी चलाना कठिन है, तो समझ लीजिए कि रोवर भला कैसे चलेगा। एक और कारण – दोनों ध्रुवों के बीच दूरी बहुत ही ज़्यादा है। चाँद के साउथ पोल पर प्राचीन काल में करोड़ों वर्ष पहले क्या समुद्र हुआ करते थे? या फिर वहाँ कोई ज्वालामुखी भी रही होगी। वहाँ बर्फ के मॉलिक्यूल ‘चंद्रयान’ को मिले थे। ऐसे में अब ‘चंद्रयान 3’ कई और बड़े खोज कर सकता है, जिससे दुनिया भर में भारत का डंका बजेगा।