हजारों सालों से मानव अपने अपनी सामाजिक संरचनाओं और सभ्यतागत विकास को लेकर सतत गतिशील है। कभी ईसाइयों में भी धर्मगुरुओं और चर्च की आलोचना करने पर मृत्युदंड का प्रावधान था, लेकिन समय के साथ बदलाव हुआ और समालोचना को समाज में विस्तृत स्थान दिया गया। सनातन धर्म का आधार ही शास्रार्थ रहा है। अर्थात किसी भी विषय को लेकर तर्क और वितर्क भारतीय परंपरा का सार रहा है। इसलिए भारत का संविधान भी उन तत्वों से उत्प्रेरित है।
हालाँकि, मानव सभ्यता के विकास और उसकी गतिशीलता से अलग इस्लाम आज भी आलोचना को जगह नहीं देता। इस्लाम दूसरे की आलोचना करने के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात तो करता है, लेकिन इस्लाम, कुरान और उसके पैगंबर पर किसी पर प्रतिक्रिया को बर्दाश्त नहीं करता है। यह मानव के विकासशील प्रवृत्ति के ठीक विपरीत है।
कुरान, इस्लाम या उसके पैगंबर मुहम्मद पर किसी तरह की टिप्पणी को वह ईशनिंदा मानता है, लेकिन दूसरे समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा बोलना अपना मजहब सम्मत व्यवहार मानता है। इसके पीछे भी इस्लाम की कुछ मजहबी पुस्तकें हैं।
विद्वानों का मानना है कि नसाई और सुनन अबू दाउद के हदीसों में ईशनिंदा के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। उसमें कहा गया है कि पैगंबर के खिलाफ बार-बार ईशनिंदा करने वाले व्यवहार के लिए एक यहूदी महिला गुलाम को उसके मालिक ने मार डाला था। कहानी के अनुसार, जब इस बात को पैगंबर के सामने लाया गया तो उन्होंने मालिक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
इस्लामी मजहबी किताबों में ईशनिंदा के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। मुस्लिम देशों में ईशनिंदा करने वाले लोगों को पत्थर से मार-मार कर हत्या, गर्दन को धड़ से अलग करके या फिर जिंदा जलाकर मारने सहित कई तरह से वीभत्स मौत की सजा दी जाती है। वहीं, भारतीय इस्लामी कट्टरपंथी भी इसका समर्थन करते हैं।
भारत में भी इस्लामी कट्टरपंथ अक्सर ‘गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही साजा, सर तन से जुदा… सर तन से जुदा’ के नारे लगाते हैं। ये कट्टरपंथी सिर्फ नारे ही नहीं लगाते, बल्कि हत्याओं को अंजाम भी देते हैं। आज हम ऐसी दस हत्याओं की चर्चा इस लेख में करेंगे, जिसने भारत और दुनिया को हिलाकर रख दिया।
कमलेश तिवारी की हत्या
हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी को ईशनिंदा के कथित आरोप में इस्लामी कट्टरपंथियों ने 18 अक्टूबर 2019 को चाकू मारकर बेरहमी से हत्या कर दी थी। हत्यारों ने चाकू मारने के बाद उन्हें गोली भी मारी थी। दरअसल, तिवारी ने साल 2015 में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद को लेकर एक बयान दिया था, जिसको लेकर कट्टरपंथियों ने इसे ईशनिंदा बताते हुए बवाल मचाया था।
इसके बाद तिवारी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। वह 9 महीने जेल में रहे। जब वह बाहर आए तो हिंदू कार्यकर्ता के वेश में कट्टरपंथियों ने उनसे मुलाकात के बहाने हत्या को अंजाम दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि उन पर चाकू के 15 वार किए गए थे। उसके बाद उनके चेहरे पर गोली मार दी गई थी।
इस मामले में पुलिस ने SIT की चार्जशीट में 13 आरोपियों को हत्या, आपराधिक साजिश रचने और आर्म्स एक्ट के तहत नामजद किया गया है। इस मामले में बरेली के मौलवी सैय्यद कैफी अली को SIT ने हत्यारों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। मोहम्मद नावेद सिद्दीकी नाम के दिल्ली के एक वकील ने अन्य सहायता उपलब्ध कराई थी।
गवर्नर सलमान तासीर
पाकिस्तान के नेता और पंजाब के पूर्व राज्यपाल सलमान तासीर को साल 2011 में इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने ईशनिंदा की एक आरोपित ईसाई महिला आसिया बीबी का समर्थन किया था। आसिया बीबी को कथित ईशनिंदा के लिए फाँसी की सजा सुनाई गई थी।
सलमान तासीर ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से महिला की सजा को माफ करने की अपील करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि आधुनिक दुनिया में इस तरह के कानूनों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह मानवता के खिलाफ है।
तासीर के इस बयान के बाद उनके ही अंगरक्षक मुमताज कादरी ने जनवरी 2011 में गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद कादरी को पाकिस्तान में एक नायक के रूप में प्रदर्शित किया गया है और हर तरफ उसकी तारीफ की गई। आज कादरी के नाम पर एक मस्जिद भी है।
दरअसल, आसिया के मुस्लिम पड़ोसी ने किसी बात को लेकर उन से झगड़ा किया और फिर उन पर ईशनिंदा का आरोप लगा दिया। इसके बाद आसिया के खिलाफ पूरे पाकिस्तान में मौत की सजा माँग की जाने लगी। हालाँकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान आसिया बीबी को फाँसी नहीं दे सका और आज वह परिवार सहित कनाडा में हैं।
सैमुएल पैटी
फ्रांस में एक स्कूल टीचर सैमुएल पैटी ने नवंबर 2020 में पढ़ाने के दौरान आतंकी गतिविधियों को लेकर छात्रों को पैगंबर मुहम्मद का एक कार्टून दिखाया था। इसके बाद उसी कक्षा का एक मुस्लिम छात्र इसे ईशनिंदा मानकर अल्लाह-हू-अकबर चिल्लाते हुए चाकू से पैटी का गला रेत दिया था।
47 वर्षीय पैटी इतिहास-भूगोल के शिक्षक थे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर एक कक्षा में छात्रों को शार्ली एब्दो द्वारा पैगंबर पर बनाए कार्टून को दिखाया था। इस पर कई अभिभावकों ने शिकायत की थी और उनमें से एक ने शिक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
तब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस घटना को ‘इस्लामी आतंकी हमला’ करार दिया था और देश से एकजुट होने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि पीड़िता की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह एक शिक्षक था और उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की शिक्षा दी थी। इसके बाद फ्रांस ने इस्लामी संगठनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की थी।
महाशय राजपाल
अविभाजित भारत में साल 1920 में मुस्लिमों ने दो आपत्तिजनक किताबें- ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’ और ‘उन्नीसवीं सदी का महर्षि’। पहली पुस्तक में भगवान कृष्ण के लिए अपमानजनक और अश्लील शब्दों का प्रयोग किया था। वहीं दूसरी पुस्तक में इस्लाम की तर्कपूर्ण व्याख्या करने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती को लेकर आपत्तिजनक बात कही गई थीं। ये दोनों किताबें एक अहमदी मुस्लिम ने लिखी थीं।
इसके विरोध में पंडित चामुपति लाल ने मुस्लिमों के पैगंबर मोहम्मद की जीवनी पर एक छोटी सी पुस्तक ‘रंगीला रसूल’ लिखा। पंजाब के महाशय राजपाल ने अपने प्रकाशन गृह ‘राजपाल एंड संस’ से इसे प्रकाशित किया था।
इस किताब को लेकर खतरे को देखते हुए लेखक पंडित चामुपति ने महाशय राजपाल से वादा ले लिया कि वे कभी भी लेखक का नाम प्रकट नहीं करेंगे। इसके बाद इस किताब को गुमनाम रूप से ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ नाम से प्रकाशित किया गया था।
हालाँकि, यह किताब हदीसों के उचित शोध के बाद लिखा गया था, फिर भी इसको लेकर मुस्लिमों ने बवाल मचा दिया। यह विरोध खिलाफतवादियों और अहमदियों द्वारा संचालित था। अहमदियों ने अपने पैगंबर के कथित अपमान के लिए हिंदुओं का आर्थिक बहिष्कार करने का आग्रह करते हुए कई शहरों में पोस्टर छपवाए।
जबकि पहला संस्करण जल्दी से बिक गया था, ब्रिटिश सरकार ने दूसरे संस्करण के छपने से पहले जून 1924 में इसे प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बाद मुसलमानों ने महाशय राजपाल के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया था।
मुकदमे के दौरान उन्हें रंगीला रसूल के असली लेखक का नाम बताने पर छोड़ने की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। करीब तीन साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद मई 1927 में महाशय राजपाल को आरोपों से बरी कर दिया गया।
इस फैसले के खिलाफ मुस्लिमों ने बड़े पैमाने पर दंगे किए। मुस्लिम समूहों ने महाशय राजपाल की हत्या का ऐलान किया और कहा कि शरीयत के हिसाब से यह जायज है। इसके बाद महाशय राजपाल की हत्या के कई प्रयास किए गए और अंत में 6 अप्रैल 1929 को इल्म उद दीन नाम के एक 19 वर्षीय बढ़ई ने उनकी छाती में आठ बार चाकू घोंपकर हत्या कर दी।
डेबोरा सैमुअल
हाल ही में नाइजीरिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र सोकोटो में डेबोरा सैमुअल नाम के एक ईसाई छात्र को को ईशनिंदा के आरोप में इस्लामिक भीड़ ने उसके कॉलेज में ही उसे पीट-पीट कर मार डाला। इस हिंसक भीड़ में उसके साथी भी शामिल थे।
सोकोतो राज्य के शेहू शगरी कॉलेज ऑफ एजुकेशन में पढ़ने वाली पीड़िता ने कॉलेज के व्हाट्सएप ग्रुप में किसी व्यक्ति द्वारा इस्लामिक पोस्ट साझा करने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि कॉलेज के ग्रुप में धार्मिक सामग्री साझा नहीं की जानी चाहिए। इसके बाद उन पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर उनकी हत्या कर दी गई।
इस्लामिक भीड़ ने न सिर्फ डेबोरा को बुरी तरह मारा, बल्कि डेबोरा के शरीर को पत्थर से बुरी तरह कुचल डाला। उसके बाद उन्हें आग लगा दी। इस हिंसक कांड में शामिल अधिकांश मुस्लिम लड़के उनके सहपाठी थे। मुस्लिमों ने इसे ईशनिंदा का बदला बताया।
सफूरा बीबी
पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान में जामिया इस्लामिया फलाहुल बिनात मदरसा के तीन शिक्षकों ने अपने एक सहयोगी सफूरा बीबी पर ईशनिंदा करने का आरोप लगा दिया। विवाद बढ़ने के बाद एक महिला ने सफूरा बीबी पर चाकू से वार किया और फिर उसका गला काट दिया।
तीन आरोपित महिलाओं ने पुलिस को बयान दिया कि 13 वर्षीय उनकी एक रिश्तेदार लड़की ने सपने में देखा था कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि सफूरा बीबी ने उनके खिलाफ ईशनिंदा की है। पुलिस रिपोर्ट्स के मुताबिक, मदरसा में पढ़ाने वाली तीन आरोपित महिलाओं ने सपने को साकार किया।
किशन भारवाड़
गुजरात के धंधुका में किशन भारवाड़ नाम के एक हिंदू युवक की 25 जनवरी 2022 को दो मुस्लिम बाइक सवारों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। भारवाड़ ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें पैगंबर मुहम्मद की तस्वीर दिख रही थी। इसके बाद से कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा उन्हें लगातार हत्या की धमकी दी जा रही थी।
27 वर्षीय किशन की हत्या के लिए मौलाना (इस्लामी धार्मिक नेताओं) ने मुस्लिम लड़कों को भड़काया था। मौलाना ने इसे ‘ईशनिंदा’ बताते हुए इन हमलावरों को किशन की हत्या कर जिहाद के लिए उकसाया था। इस हत्याकांड में कम से कम 6 मौलवियों को गिरफ्तार किया गया है।
हर्षा हत्याकांड
कर्नाटक के शिवमोगा में 20 फरवरी 2022 की रात को एक पेट्रोल पंप के पास बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा की चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी। पेशे से दर्जी हर्षा ने कर्नाटक बुर्का विवाद के दौरान स्कूलों और कॉलेजों के ड्रेस कोड में एकरूपता की माँग करने के लिए भगवा शॉल पहना था।
प्राथमिक जाँच में पाया गया है कि हर्षा की हत्या कॉलेज परिसरों में बुर्का पहनने के खिलाफ उनके रुख के कारण हुई थी। साल 2015 में फेसबुक पर एक इस्लामवादी पेज ‘मैंगलोर मुस्लिम’ ने भी हर्षा को पैगंबर मुहम्मद पर उनकी टिप्पणी के लिए धमकी दी थी।
पोस्ट में लिखा था, “हिंदुत्व आतंकवादी समूह के सदस्य हर्षा ने पैगंबर मोहम्मद और अल्लाह को निशाना बनाते हुए आपत्तिजनक पोस्ट डाले हैं और पवित्र काबा की मॉर्फ्ड तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा की हैं। हम शिवमोगा के लोगों से अनुरोध करते हैं कि उनके खिलाफ नजदीकी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करें और उन्हें ‘उचित उपचार’ भी दें।
इसे ईशनिंदा बताते हुए मुस्लिम कट्टरपंथियों ने हर्षा के खिलाफ कई सोशल मीडिया फतवे घोषित किए गए थे। परिणाम ये हुआ कि इन फतवों के कारण हर्षा की अंतत: हत्या कर दी गई।
प्रियंता कुमारा दियावदान
पाकिस्तान के सियालकोट में एक श्रीलंकाई व्यक्ति प्रियंता कुमारा को ईशनिंदा की अफवाहों को लेकर एक उग्र इस्लामी भीड़ ने प्रताड़ित किया और जिंदा जलाकर मार डाला। पीड़ित पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की टी20 गियर बनाने वाली कंपनी सियालकोट में राजको इंडस्ट्रीज में महाप्रबंधक थे।
अफवाह फैलाई गई क प्रियंता कुमार ने पैगंबर मुहम्मद का कार्टून फाड़कर कूड़ेदान में डाल दिया। इसके बाद संस्थान के कर्मचारियों ने अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाते हुए उनकी हत्या कर दी।
शार्ली हेब्दो
कथित ईशनिंदा को लेकर दुनिया को हिला देने वाला सबसे बड़ा हत्याकांड फ्रांस के शार्ली हेब्दो का था। शार्ली हेब्दो पत्रिका ने पैगंबर मुहम्मद का कार्टून बनाया था। इसके बाद दुनिया भर के इस्लामी कट्टरपंथी इसके खिलाफ फतवा जारी करते हुए हत्या की धमकी दी थी।
इसके बाद साल 2015 में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने शार्ली हेब्दो के कार्यालय में घुसकर उसके कर्मचारियों पर गोलियों की बौछार कर दी थी। इस हमले में कार्यालय और उसके आसपास के 12 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 11 लोग घायल हो गए थे। इसके बाद चार यहूदियों और एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी गई थी।
इन हत्याओं के बाद शार्ली हेब्दो ने उस कार्टून का प्रकाशन जारी रखा। साल 2020 में उसे प्रकाशित करने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने फिर कई हत्याएँ की। पैगंबर के कार्टून प्रकाशन को इस्लामियों ने ईशनिंदा बताया था।