गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बने केबल ब्रिज हादसे से पूरा देश स्तब्ध है। 143 साल से भी ज्यादा पुराने इस पुल को 19वीं शताब्दी में वहाँ के शासक वाघजी ठाकोर ने बनवाया था। तब यूरोपीय तकनीक से बने इस पुल को ‘इंजीनियरिंग का चमत्कार’ माना जाता था। ‘झूलता पुल’ के नाम से मशहूर इस पुल की लंबाई लगभग 765 फीट है। बकौल न्यूज 18, इसकी नींव 20 फरवरी 1879 को मुंबई के तत्कालीन गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने रखी थी। पुल को बनाने में करीब 3.5 लाख रुपए खर्च हुए थे। उस समय के हिसाब से यह एक बड़ी रकम थी।
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हादसे में 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है और कई लोग लोगों को बाहर निकाला जा रहा है। ये ब्रिज पिछले कई महीनों से बंद चल रहा था, जिसे रेनोवेशन कर 26 अक्टूबर 2022 को खोला गया था। छह महीने तक चले रेनोवेशन कार्य पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। बताया जा रहा है कि ब्रिज पर क्षमता से अधिक लोगों के जुटने के कारण यह हादसा हुआ।
हादसे के पीछे पुल का रखरखाव करने वाली कंपनी और मोरबी नगरपालिका के बीच तालमेल की कमी भी सामने आई है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला ने पुल के रखरखाव और संचालन के लिए जिम्मेदार ओरेवा कंपनी (अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड) पर बिना सूचित किए पुल को लोगों के लिए खोलने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि पुल मोरबी नगरपालिका की एक संपत्ति है, लेकिन हमने इसे कुछ महीने पहले 15 साल की अवधि के लिए रखरखाव और संचालन के लिए ओरेवा समूह को सौंप दिया था।
अधिकारी का कहना है कि इस ब्रिज पर असल में एक बैच में सिर्फ 20 से 25 लोगों को जाने की अनुमति रहती है। हमेशा से ही ऐसा होता आ रहा है। लेकिन रविवार को हुए हादसे की एक बड़ी वजह लापरवाही रही। अधिकारी बताते हैं कि एक साथ 400-500 लोगों को ब्रिज पर भेज दिया गया। इसी वजह से पुल टूटा। संदीप सिंह ने कहा कि उन्हें रिनोवेशन पूरा होने की भी जानकारी नहीं दी गई थी।
वहीं इस हादसे से पहले पुल से वापस आए एक परिवार ने दावा किया कि कुछ युवकों ने पुल को जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया और वे दुर्घटना की आशंका से पुल से वापस आ गए। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक अहमदाबाद निवासी जय गोस्वामी और उनके परिवार के सदस्य आधे रास्ते से वापस आ गए। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने पुल के कर्मचारियों को इसकी सूचना दी थी, लेकिन वे ‘कोई दिलचस्पी नहीं’ दिखा रहे थे। रिनोवेशन के लिए सात महीने तक बंद रहने के बाद अंग्रेजों के पुल को जनता के लिए महज चार दिन पहले (26 अक्टूबर ) को फिर से खोल दिया गया था।