बिहार के नवादा जिले से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। यहाँ 15 हिंदू परिवारों के 50 सदस्यों ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अपना लिया है। नवादा के ताराटाड टोला में अब हिदू धर्म को मानने वाले महज तीन परिवार ही बचे हैं, लेकिन उन पर भी धर्मातरण के लिए दबाव है। बताया जा रहा है कि कभी हिंदू धर्म और देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले इन परिवारों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है।
दरअसल ताराटाड टोला अभी भी नक्सलियों की गिरफ्त में है और धर्म परिवर्तन कराने वाले इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं। बता दें कि इसाई मिशनरी अब नेपाल के कई ठिकानों से भारतीय सीमा क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में मजबूती से दस्तक दे रहे हैं। इनका एकमात्र मकसद यही है कि ज्यादा से ज्यादा ईसाई धर्म को मानने वाले लोग बनें।
ईसाई मिशनरियों को काफी हद तक कामयाबी भी मिली है। कई जगहों पर चर्च बनाए गए हैं तो कई जगहों पर चर्च बनाए जाने की तैयारी चल रही है। बिहार के नेपाल सीमा से लगे क्षेत्र में फैली गरीबी, बेरोजगारी एवं शिक्षा की रोशनी से कोसों दूर रहने वाले लोगों को ये आसानी से अपने जाल में फँसा लेते हैं। अच्छा रहन-सहन खानपान और अच्छी पढ़ाई का हवाला देकर मिशनकारी गरीबों के बीच पैठ बना रहे हैं। इसी का उदाहरण है नवादा जिले के 15 परिवारों के 50 सदस्यों का ईसाई में परिवर्तित होना।
इसी पंचायत के चटकरी गाँव के रहने वाले प्रदीप ने दैनिक जागरण को बताया कि लोभ-लालच देकर भोले-भाले आदिवासियों को बहकाया जा रहा है। उन्होंने कहा, “पिछले 6 महीने में मैंने कई बार वरीय अधिकारियों को धर्मांतरण कराए जाने की जानकारी दी, लेकिन मेरी मौखिक शिकायतों पर कोई पहल नहीं हुई।” यहाँ के युवाओं का कहना है कि हिंदू लोगों के ईसाई में परिवर्तित होने की पोल सरस्वती पूजा के दौरान खुली, जब वो लोग चंदा के लिए ताराटांड टोले में गए। वहाँ के निवासियों ने खुद को ईसाई बताते हुए चंदा देने से इनकार कर दिया, जबकि पिछले साल तक वे लोग पूजा में शाामिल रहे हैं।
ताराटांड में बचे हुए तीन हिंदू परिवार खौफ में हैं। वो दबी जुबान में तो बात कर रहे हैं, लेकिन साफ तौर पर कुछ भी कहने से डरते हैं। एक ग्रामीण ने बताया कि हर शुक्रवार कुछ लोग ताराटांड आते हैं और ईसाई धर्म अपनाने के लिए लोगों का ब्रेन वॉश करते हैं। चटकरी गाँव के बगल में सेवा सदन होली फैमिली अस्पताल और ज्ञानदीप विद्यालय का संचालन हो रहा है। वहाँ बच्चों को ईसाई धर्म की किताबें पढ़ाई जाती हैं। रामायण-गीता की जगह बाइबल का पाठ किया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि कुछ महीने पहले तक ताराटांड के लोग दशहरा, दिवाली और होली पर उत्साह-उल्लास में मगन हो जाते थे। अब वे क्रिसमस और गुड फ्राइडे को ही अपना पर्व मानते हैं।