गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के इतिहास में 26 जुलाई 2008 कभी न भूल पाने वाली दुर्भाग्यपूर्ण तारीख है। इस दिन महज 70 मिनट के अंदर हुए 21 सीरियल ब्लास्ट ने शहर की शांति को छिन्न-भिन्न कर डाला था। इस आतंकी हमले में 56 लोगों की जान चली गई थी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
इससे एक दिन पहले बेंगलुरु में भी सीरियल विस्फोट हुए थे, जिनमें 7 अलग-अलग स्थानों को निशाना बनाया गया था। तब वहाँ से 1500 किलोमीटर दूर गुजरात के लोगों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि आतंकियों का अगला निशाना वो खुद हैं। इस विनाशकारी घटना को 15 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह घाव लोगों के जेहन में आज भी ताजा है।
26 जुलाई 2008 (शनिवार) के दिन अहमदाबाद के लोग अपनी सामान्य दिनचर्या में व्यस्त थे। शाम को लगभग 6:45 पर पहला धमाका हुआ। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही महज 70 मिनट के अंदर अलग-अलग जगहों पर एक के बाद एक 21 विस्फोट हुए। इन घटनाओं से अहमदाबाद के लोग सन्न रह गए।
इन विस्फोटों को पूरी साजिश के साथ भीड़-भाड़ वाले इलाकों में अंजाम दिया गया था। खड़िया, बापूनगर, रामोल, अमराईवाड़ी, वटवा, दानिलिम्दा, इसानपुर, ओधव, कालूपुर, नरोदा, ठक्करनगर, सरखेज, निकोल, अहमदाबाद सिविल अस्पताल और एलजी अस्पताल सहित अहमदाबाद के कुछ अन्य क्षेत्र इन धमाकों से प्रभावित हुए।
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अस्पताल को भी बनाया गया निशाना
इन धमाकों को अंजाम देने वाले आतंकियों ने अस्पतालों को भी नहीं छोड़ा था। अहमदाबाद के सिविल ट्रॉमा सेंटर और एलजी अस्पताल में भी बम विस्फोट किए गए। ऐसा करने के पीछे अन्य विस्फोटों में घायल उन लोगों को भी मार डालने की साजिश थी, जो इलाज के लिए अस्पताल आए थे।
विस्फोटों के जरिए यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की गई थी कि दूसरी जगह हुए धमाकों में घायल हुए लोगों को आवश्यक चिकित्सा सुविधा ना मिल पाए। अस्पताल में हुए विस्फोटों की वजह से न सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर, बल्कि घायलों के कई रिश्तेदार भी चपेट में आ गए थे।
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पुलिस ने सुलझाया था 19 दिनों में केस
सीरियल ब्लास्ट का दिन पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती वाला था। इस दिन अधिकारियों के फोन सहित थानों की लैंडलाइन लगातार बज रहीं थी। हर कोई अपने परिजनों की कुशलता जानने के लिए पुलिस से सम्पर्क कर रहा था। शहर में एक तरह से अफरा-तफरी के साथ-साथ भय का माहौल था।
इन धमाकों की जाँच का जिम्मा IPS आशीष भाटिया और क्राइम ब्रान्च के DCP अभय चुड़ासामा को दिया गया। यह टीम आतंकियों को पकड़ने के प्रयास में जुट गई। पुलिस ने धमाकों को देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने का प्रयास माना और उसको देखते हुए पूरी गंभीरता से कार्रवाई शुरू की।
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तब देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। देश के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह तब गुजरात के गृहमंत्री हुआ करते थे। आखिरकार बेहद सधे हुए अंदाज में काम करते हुए अहमदाबाद पुलिस ने महज 19 दिनों में पूरे केस का खुलासा कर दिया।
पुलिस ने इन धमाकों में शामिल रहे 30 संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया। आतंकियों की धर-पकड़ में गुजरात पुलिस की मदद मध्य प्रदेश, दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक, केरल और राजस्थान की पुलिस टीमों ने भी की। अलग-अलग हिस्सों से पकड़े गए संदिग्धों को गुजरात पुलिस के हवाले कर दिया गया था।
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इंडियन मुजाहिदीन ने ली जिम्मेदारी, यासीन भटकल मास्टरमाइंड
अहमदाबाद के सीरियल विस्फोट की ज़िम्मेदारी इस्लामी आतंकवादी संगठन- इंडियन मुजाहिदीन और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी ने सामूहिक तौर पर ली थी। आतंकियों ने इसे गोधरा दंगों का बदला बताया था। जाँच कर रहे पुलिस दल ने इस मामले में कुल 99 आतंकियों की पहचान की गई थी।
इनमें से 82 को अलग-अलग ऑपरेशन के दौरान गिरफ्तार किया गया था। जाँच का दायरा इतना बड़ा था कि गुजरात पुलिस ने सूरत में 15 शिकायतें और अहमदाबाद में लगभग 20 केस दर्ज किए। अदालत में सुनवाई के दौरान कुल 78 आरोपितों को पेश किया गया।
૨૦૦૮ અમદાવાદ બ્લાસ્ટ કેસમાં ઐતિહાસીક ચુકાદો
— મિશન મોદી 2024 (@RWGujarat) February 18, 2022
૩૮ આરોપીઓને ફાંસી અને ૧૧ને આજીવન કેદની સજા. pic.twitter.com/BeNNemvIKK
जाँच कर रही पुलिस टीम बम धमाकों में शामिल एक आतंकी अयाज़ सैय्यद को सरकारी गवाह बनाने में सफल रही थी। सैय्यद ने अपनी सजा कम करने की अपील की थी। इसी केस में गिरफ्तार कुछ अन्य आरोपित अहमदाबाद की साबरमती जेल से सुरंग खोदकर भागने का असफल प्रयास भी किए थे।
हालाँकि, जेल प्रशासन ने सतर्कता से उनकी साजिश नाकाम कर दी थी। फिलहाल अहमदाबाद सीरियल बम धमाकों का मुख्य मास्टरमाइंड यासीन भटकल अभी दिल्ली की एक जेल में बंद है, जबकि दूसरा आरोपित अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर को कोचीन की एक जेल में रखा गया है।
38 आतंकियों को सजा ए मौत
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस की कोर्ट में सुनवाई लगभग 14 वर्षों तक चली थी। इस लम्बी न्यायिक प्रक्रिया का समापन साल 2022 में विशेष न्यायाधीश एआर पटेल की अदालत के एक ऐतिहासिक फैसले से हुआ। अपने फैसले में उन्होंने कुल 38 आतंकवादियों को मृत्युदंड दिया था। इसके अलावा, इसी केस के 11 दोषियों को उनके जीवन के आखिरी दिन तक जेल में रहने की सजा मिली। इन सभी के खिलाफ हत्या, राजद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं में कार्रवाई हुई थी।
अपनी आतंकी करतूत से 56 बेगुनाहों की जान लेने के आरोप में मौत की सजा पाने वाले दोषियों के नाम जाहिद शेख, इमरान इब्राहिम, इकबाल कासम, शमसुद्दीन शेख, गयासुद्दीन अंसारी, मोहम्मद कागजी, मोहम्मद उस्मान, कमरूद्दीन नागोरी, आमिल परवाज, करीम सिबली, सफदर नागोरी, आमिल परवाज, करीम सिबली, कयामुद्दीन कपाड़िया, मोहम्मद सैफ शेख, जीशान अहमद, जियाउर रहमान, मोहम्मद शकील रहमान, मोहम्मद अकबर, फजले रहमान, अहमद बावा बरेलवी, सरफुद्दीन सलीम, सादुली करीम, मोहम्मद तनवीर, अमीन शेख और मोहम्मद मोबिन हैं।
पापा ने कहा था कि वो घर आ रहे
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के 15 साल होने पर ऑपइंडिया ने इस घटना के पीड़ितों में से एक पांचाल परिवार से संपर्क किया। सीरियल विस्फोट में इस परिवार के परेश करसनदास (गोपी भाई) को जान से हाथ धोना पड़ा था। उनके बेटे स्वप्निल ने बताया कि घटना के समय वो क्लास 12 में पढ़ते थे।
घटना के दिन स्वप्निल के पापा ने उनकी मम्मी को फोन पर दोस्तों के साथ होने और थोड़े समय बाद घर आने की बात कही थी। कुछ ही देर में TV पर सीरियल ब्लास्ट की खबरें चलीं। भावुक होकर स्वप्निल ने आगे बताया कि उनके पिता अस्पताल पहुँचकर घायलों की मदद करने लगे। इस बीच एक ब्लास्ट अस्पताल में भी हुआ और उसकी चपेट में स्वप्निल के पिता भी आ गए।
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स्वप्निल ने बताया कि उनके पिता का शरीर तेज धार वाली चीजों से छलनी हो गया था। विस्फोट से निकले छर्रों ने स्वप्निल के पिता की आँतों और लीवर को भारी नुकसान पहुँचाया था। स्वप्निल ने बताया कि उन्होंने परिवार के साथ पूरी रात अपने पिता को खोजा और अगले दिन वो सिविल हॉस्पिटल में मृत अवस्था में मिले।
स्वप्निल ने बताया कि विस्फोट ने उनकी दुनिया ही बदल दी और कभी न भरने वाला घाव दे दिया। बचपन में अपने पिता के साथ बिताए पल अभी भी स्वप्निल को ज्यों का त्यों याद है। अब 26 साल के हो चुके स्वप्निल के दादा 85 साल के हो चुके हैं। पिता की मौत के बाद स्वप्निल के दादा ने ही अपनी बहू के साथ मिलकर उनका पालन-पोषण किया।
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दरअसल इस ब्लास्ट के बाद सरकार, पुलिस और न्यायपालिका ने सामूहिक तौर पर जिम्मेदारी उठाते हुए दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया। हालाँकि, इन कोशिशों के बावजूद जो लोग अपनों से जुदा हो गए उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। यह एक ऐसा नुकसान है जो किसी भी मुआवजे से परे है।
प्रार्थना इस बात की भी है कि दोबारा देश को कभी ऐसी हृदयविदारक घटना का सामना न करना पड़े। देश में ऐसे सुरक्षित माहौल को बनाने का प्रयास जारी रहे, जहाँ सभी नागरिक बिना डर और दुःख के अपना जीवन सम्मानपूर्वक ढंग से व्यतीत कर सकें।