बिहार सामान्य प्रशासन विभाग ने निचली अदालतों के तीन न्यायाधीशों को बर्खास्त करने को मँजूरी दे दी है। सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई है। इन तीनों न्यायाधीशों का नाम 2013 के नेपाल सेक्स स्कैंडल में सामने आया था।
दैनिक जागरण ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक इनकी बर्खास्तगी 12 फरवरी, 2014 से ही प्रभावी होगी। बर्खास्त किए गए तीनों न्यायाधीश समस्त लाभों से वंचित रहेंगे। इन तीनों जजों को अब रिटायरमेंट के बाद का कोई लाभ नहीं मिलेगा।
बिहार सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार समस्तीपुर परिवार न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश हरिनिवास गुप्ता, तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश (अररिया) जितेंद्र नाथ सिंह और अररिया के अवर न्यायाधीश सह मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोमल राम को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2015 की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और बिहार सरकार को न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की अनुमति दी थी।
बता दें कि जिन तीन न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त किया गया, उन्हें पुलिस छापेमारी में नेपाल के एक होटल में लड़कियों के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा गया था। घटना 26 जनवरी 2013 की है। न्यायिक अधिकारी होने के कारण नेपाल की पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया था। ये सभी विराटनगर स्थित मैट्रो गेस्ट हाउस के अलग-अलग कमरों में ठहरे थे।
विराटनगर से प्रकाशित नेपाली भाषा के अखबार ‘उदघोष’ के 29 जनवरी 2013 के अंक में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इस मामले की जाँच पूर्णिया के जिला जज ने की और अपनी सिफारिश पटना हाई कोर्ट को भेजी थी। बिहार राज्य बार काउंसिल की ओर से घटना के एक सप्ताह के बाद मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर इस घटना की जानकारी दी गई थी। हालाँकि, जाँच के दौरान पता चला कि मैट्रो गेस्ट हाउस के रजिस्टर के पन्ने को भी फाड़ दिया गया था, जिसमें इन तीनों की एंट्री थी।
मामला सामने आने के बाद पटना हाईकोर्ट ने पूर्णिया के तत्कालीन जिला जज संजय कुमार से मामले की जाँच कराई। जाँच रिपाेर्ट में मामला सत्य पाए जाने के बाद हाई कोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी ने तीनों को बर्खास्त करने की सिफारिश की थी। इस मामले में गृह मंत्रालय के उप सचिव एसएम कंडवाल ने पटना उच्च न्यायालय के तत्कालीन रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर मामले की जाँच करने के लिए कहा।
पटना उच्च न्यायालय ने पूर्णिया जिले और सत्र न्यायाधीश को मामले की जाँच करने का निर्देश दिया। रिपोर्ट में लिखा गया कि तीनों न्यायाधीशों ने कहा कि जिस समय घटना हुई, उस समय वे नेपाल में नहीं बल्कि भारत में थे। पूर्णिया जिला और सत्र न्यायाधीश, संजय कुमार ने अपनी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया कि नेपाली दैनिक ‘उद्घोष’ ने गलत स्टोरी प्रकाशित करने के लिए माफी माँगी थी।
हालाँकि, संजय कुमार द्वारा की गई जाँच से असंतुष्ट पटना उच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय को हस्तक्षेप करने के लिए कहा। गृह मंत्रालय की एक एजेंसी ने आरोपित जजों के मोबाइल फोन के हिस्ट्री को ट्रैक किया और पाया कि उनके फोन 26-27 जनवरी, 2013 को एक साथ ऑफ कर दिए गए थे और जब यह फिर से एक्टिव हुआ तो नेपाल के फोर्ब्सगंज शहर के पास कहीं ट्रेस किया गया था। यह दर्शाता है कि तीनों जज नेपाल में थे, न कि भारत में, जैसा कि उनके द्वारा दावा किया गया था।
गृह मंत्रालय द्वारा दायर रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है आरोपित जजों ने होटल के बिल भी पेश किए थे, ताकि यह साबित किया जा सके कि घटना के दिन वे बिहार के पूर्णिया में थे, नेपाल में नहीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि होटल के बिल तैयार किए गए थे और एक आरोपित न्यायाधीश ने खुद हस्ताक्षर किए थे। निष्कर्षों के आधार पर, तीनों जजों की बर्खास्तगी को मँजूरी देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
इस बीच फरवरी 2014 में, तीनों आरोपित न्यायाधीशों ने बर्खास्तगी के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इसके बाद न्यायिक अधिकारियों यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट गए कि अनुशासनात्मक जाँच के बिना उन्हें बर्खास्त नहीं किया जा सकता है।
इस बीच, पटना HC की पूर्ण अदालत ने HC के आदेश के अनुपालन में उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश के आदेश पारित किए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राज्य सरकार को सिफारिश पर कार्रवाई करने से रोकते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
हालाँकि, 2019 में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और संजीव खन्ना की पीठ ने आरोपित न्यायिक अधिकारियों की याचिका को खारिज कर दिया और उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। इसने राज्य सरकार को उनकी बर्खास्तगी पर हाई कोर्ट की सिफारिश पर निर्णय लेने की अनुमति दी। इसमें कहा गया है कि न्यायाधीश राज्य सरकार द्वारा पारित किए गए बर्खास्तगी आदेशों को चुनौती दे सकते हैं।