केरल-बंगाल के बाद UP में आतंकी मॉड्यूल: पाँव जमाने को बेचैन ISIS और अलकायदा, रेलवे-धार्मिक स्थल निशाना

केरल और पश्चिम बंगाल के बाद यूपी के कुछ संवेदनशील इलाके बने आतंकियों के गढ़ (प्रतीकात्मक फोटो)

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से दो अलकायदा आतंकियों की गिरफ़्तारी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नई चुनौती की तरह है, क्योंकि यूपीए काल में हैदराबाद और मुंबई से लेकर दिल्ली और पुणे तक में बम विस्फोट करने वाले आतंकी अब फिर से सक्रिय हो गए हैं और अपने नेटवर्क को मजबूत करने में लगे हुए हैं। चिंता वाली बात ये है कि अबकी सिर्फ पाकिस्तानी संगठन ही नहीं, बल्कि ISIS और अलकायदा भी मैदान में है।

इससे पहले केरल में इसी तरह के आतंकी मॉड्यूल का खुलासा हुआ था। सितंबर 2020 में आतंकवाद पर आई संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट में चेताया गया था कि भारतीय राज्य केरल और कर्नाटक में अच्छी-खासी संख्या में खूँखार वैश्विक आतंकी संगठन ISIS के आतंकवादी मौजूद हैं। साथ ही खुलासा किया गया था कि ISIL की भारतीय यूनिट ‘हिन्दू विलायाह’ के भी कम से कम 180 से लेकर 200 तक आतंकी सक्रिय हैं। बता दें कि इस आतंकी संगठन के गठन की घोषणा मई 2019 में हुई थी।

अगस्त-सितंबर 2020 में ही राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने केरल के एर्नाकुलम जिले और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से 10 आतंकियों को गिरफ्तार किया था। यह सारे आतंकवादी पाकिस्तान से लगातार संपर्क में थे। इसके अलावा गिरफ्तार किए गए आतंकवादी नई दिल्ली समेत देश के कई सरकारी संस्थानों को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे थे। आतंकवादियों पास भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए थे। इसमें विस्फोटक बनाने की सामग्री, स्वदेशी आग्नेयास्त्र, शरीर कवच, जिहादी साहित्य और हथियार शामिल थे।

अगर इस घटना को लखनऊ से आतंकियों की गिरफ़्तारी से जोड़ कर देखें तो इस मामले में भी आतंकियों को विस्फोटक सामग्रियों के साथ गिरफ्तार किया गया है। ये सभी व्हाट्सएप्प और टेलीग्राम के जरिए अपने आकाओं से जुड़े हुए थे। उत्तर प्रदेश के कानपुर में भी इनका नेटवर्क मजबूत है, जहाँ से इनके कुछ साथियों की गिरफ़्तारी हो सकती है। ये भी जानने वाली बात है कि आतंकियों को अब भारतीय रेलवे सबसे सुरक्षित निशाना लग रहा है।

हाल ही में दरभंगा में हुए पार्सल ब्लास्ट को ही देख लीजिए। अगर आतंकियों के मंसूबे सफल हो गए होते तो बहुत बड़ी तबाही मचने की आशंका थी। दरभंगा वाले मामले में पाकिस्तान में बैठे शामली स्थित कैराना के इकबाल काना का नाम सामने आया था। जाली नोटों का किंगपिन बन चुके इक़बाल काना से मुस्लिम बहुल कैराना में आज भी कई लोग संपर्क में हैं। कैराना के लोग अक्सर पाकिस्तान जाते-आते रहते हैं।

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ब्लास्ट भले ही दरभंगा में हुआ, लेकिन आतंकियों की गिरफ़्तारी तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद और उत्तर प्रदेश के शामली में स्थित कैराना से हुई है। अब तक इसमें सलीम, कफील नासिर, इमरान और इक़बाल काना जैसे आतंकियों के नाम सामने आए। ये सभी आतंकी शामली के ही निवासी हैं। धमाके के लिए रखे नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक एसिड में आतंकियों के सोचे समय पर रिएक्शन नहीं हुआ, जिससे एक बड़ी तबाही टल गई।

आतंकियों की साजिश थी कि 15-16 जून की मध्य रात्रि में विस्फोट किया जाए। इसके लिए जगह के रूप में सिकंदराबाद स्टेशन से 132 KM दूर काजीपेट जंक्शन को चुना गया था। ऐसा होता तो जानमाल की बड़ी क्षति हो सकती थी। इसके लिए जगह के रूप में सिकंदराबाद स्टेशन से 132 KM दूर काजीपेट जंक्शन को चुना गया था। ट्रेन में अगर उसके चलने के 1:54 घंटे बाद विस्फोट होता तो नजारा भयावह हो सकता था।

ऐसे गिरोह का पूर्णरूपेण सफाया इस्लामी कट्टरवाद पर प्रहार कर के ही हो सकता है। कैराना, मुर्शिदाबाद और एर्नाकुलम जैसे कई जगह देश में हो सकते हैं, जहाँ की मुस्लिम जनसंख्या के ब्रेनवॉश की कोशिश में पाकिस्तानी आतंकी सरगना लगे होंगे। दरभंगा में फल-फूल रहा आतंकी स्लीपर सेल इसका उदाहरण है। दरभंगा ब्लास्ट के तार हैदराबाद तक जुड़े। उधर पंजाब में ‘किसान आंदोलन’ के बहाने खालिस्तानी सक्रिय हो गए हैं।

पिछले ही महीने पंजाब में एक तस्कर को गिरफ्तार किया गया था, जो पाकिस्तान, अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन स्थित आतंकी संगठनों और खालिस्तान समर्थक तत्वों से जुड़ा था। जब लखनऊ में आतंकी गिरोह का पर्दाफाश हो रहा है, ठीक उसी समय जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में तैनात रहे 19 राष्ट्रीय राइफल्स से जुड़े एक जवान और करगिल में क्‍लर्क के रूप में कार्यरत 18 सिख लाइट इन्फेंट्री के एक क्लर्क को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

मतलब साफ़ है, आतंकी अब भारतीय रेलवे को निशान बनाना चाहते हैं क्योंकि अधिकतर गरीब-मजदूर आजकल रेल से ही सफर करने में लगे हुए हैं और आतंकियों को लगता है कि उनकी एक साजिश भी सफल हो गई तो शायद बड़ी तबाही मचेगी। साथ ही राम मंदिर, काशी और मथुरा का नक्शा जब्त होना बताता है कि आतंकियों के निशाने पर भारत के हिन्दू धार्मिक स्थल भी लगातार बने हुए हैं।

सरकारों को ज़रूरत है कि वो ऐसे संवेदनशील इलाकों में नजर रखे, पुलिस की गश्ती बढ़ाए और जागरूकता अभियान चलाए, जहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा युवाओं को बरगलाने का खेल खेला जा रहा हो। रेलवे, हाइवे और धार्मिक स्थलों पर विशेष ध्यान रखने के अलावा स्लीपर सेल्स और आतंकियों के मददगार सफेदपोशों की पहचान करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि आतंकियों की नजर अब सिर्फ कश्मीर नहीं, फिर से पूरे देश पर है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया