29 अगस्त को कई मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि जम्मू कश्मीर में मुहर्रम के जुलूस के दौरान पुलिस ने लोगों पर पैलट गन चलाई और आँसूगैस के गोले छोड़े। लेकिन इसी बीच अलजजीरा ने अपनी रिपोर्ट में घटना का उल्लेख करते हुए आधा सच बताया और बस यही लिखा कि सुरक्षाबल व ताजिया ले जाते शिया मुस्लिमों की झड़प में कई नागरिक घायल हो गए। जबकि सच ये है कि इस हमले में कई पुलिसकर्मी भी गंभीर रूप से घायल हुए, जिनका जिक्र भी अलजजीरा ने करना जरूरी नहीं समझा।
अलजजीरा की रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि पुलिस बल और जुलूस में शामिल संप्रदाय विशेष के लोगों के बीच झड़प क्यों हुई। लेकिन, रिपोर्ट में यह जरूर लिखा गया कि यह जुलूस न केवल ‘शांतिपूर्ण’ था बल्कि हेल्थ प्रोटोकॉल को भी फॉलो कर रहा था। इसके बाद सोशल मीडिया पर हर जगह एक ही बात चलने लगी कि पुलिस ने संप्रदाय विशेष के लोगों पर हमला किया।
हालाँकि, दावे के उलट सच यह था कि जुलूस पुलिस के आदेशों के विरुद्ध निकाला जा रहा था और जब पुलिस अपनी ड्यूटी पर थी तब इन्हीं ‘शांतिपूर्ण’ जुलूसों में शामिल लोगों ने उन पर हमला भी किया, जिसकी वजह से कई पुलिसकर्मी इस घटना में घायल हुए। इसके बाद ही पुलिस ने पैलेट गन और आँसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया।
घटना के बाद कुछ पुलिसकर्मियों की खून से लथपथ तस्वीरें भी सामने आई हैं। इन तस्वीरों में देखा जा सकता है कि उन पर पत्थरों से हमले हुए हैं। इसके अलावा पत्रकार आदित्य राज कौल ने इस संबंध में कुछ ट्वीट करके घटना की जानकारी दी है। उनका कहना है कि श्रीनगर के जदिपाल में शिया समुदाय द्वारा जुलूस निकाले जाने के दौरान यह हमला हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हुए।
इस घटना के संबंध में एक वीडियो भी पत्रकार ने अपने ट्वीट में शेयर की है। वीडियो में हम देख सकते हैं कि सुरक्षाबल को पहले जुलूस में शामिल कुछ महिलाएँ और कुछ युवक उकसाते हैं। उन पर पीछे से आकर हमला भी बोलते हैं। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में पुलिस अपनी लाठी उठाती है।
Horrific visuals of J&K Police personnel who were attacked with stones by criminal hooligan in Zadibal, Srinagar, Kashmir during Shia mourning procession. Has this been reported & condemned by Kashmiri journalists? Why is the International media silent? Or waiting to twist facts? pic.twitter.com/twDXcIJoIc
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) August 30, 2020
आदित्य राज कौल लिखते हैं, “श्रीनगर के जदिपाल में शिया शोक जुलूस के दौरान पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से बुरी तरह हमला हुआ है। क्या इसे किसी ने रिपोर्ट किया या किसी कश्मीरी पत्रकार ने इस हमले की निंदा की? आखिर इस पर क्यों अंतरराष्ट्रीय मीडिया शांत है? या फिर तथ्यों को मोड़ने का इंतजार कर रही है।”
Look at this video from Zadibal, Srinagar in Kashmir very closely. Some hooligan comes and kicks/punches/pushes cops on law & order duty. There is no provocation by either J&K Police or the CRPF as visible. Do you expect cops to garland and shower flowers if you turn violent? pic.twitter.com/ZZqlQJEzjU
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) August 30, 2020
वह वीडियो शेयर करते हुए लिखते हैं, “यह वीडियो श्रीनगर के जदिबाल की है। कुछ गुंडों ने आकर ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को घूँसों, मुक्कों से वार किया। जबकि हम साफ देख सकते हैं कि पुलिसकर्मियों या फिर सीआरपीएफ ने उन्हें किसी तरह से नहीं उकसाया था। क्या आप ऐसी हिंसा के बदले फूल बरसाए जाने की उम्मीद करते हैं?”
I have always felt that security forces should maintain maximum restraint and not get provoked by violent mob of hooligans in Kashmir. But, beyond a point, if cops are kicked, punched and stones thrown on them, they can’t wait to be lynched to death and have to react immediately.
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) August 30, 2020
अपने अगले ट्वीट में वह कहते हैं, “मैंने हमेशा ऐसा महसूस किया है कि सुरक्षाबलों को अपने आप पर संयम रखना चाहिए और ऐसी हिंसक भीड़ के उकसाने पर उत्तेजित नहीं होना चाहिए। मगर, इस बिंदु से परे, अगर पुलिस को लात मारी जाती है, उन्हें घूँसे मारे जाते हैं, तो वह भीड़ का शिकार हो कर मरने का इंतजार नहीं कर सकते है और इसलिए उन्हें ऐसी प्रतिक्रिया देनी होती है।”
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोरोना वायरस के कारण हर जगह मुहर्रम जुलूस निकाले जाने पर प्रतिबंध लगा था। इसलिए जम्मू कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में भी जुलूस न निकालने के लिए कड़ी पाबंदी लगाई और केवल कुछ ही लोगों को जुलूस की अनुमिति दी। मगर, बेमिना चौक पर जिस जुलूस के समय झड़प हुई, उसे प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं मिली थी। इसलिए पुलिस इन जुलूस निकालने वाले लोगों को मनाकर वापस भेजना चाहती थी, लेकिन पुलिस की सुनने की बजाय वह उन पर पत्थर से हमला करने लगे और मीडिया ने भी बिना सच्चाई को जाने भारतीय सुरक्षाबल को अपनी रिपोर्ट में एक खलनायक की तरह प्रस्तुत कर दिया।