Sunday, December 22, 2024
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शादी का झाँसा दे नाबालिग से किया रेप, हाई कोर्ट ने दी जमानत: कहा- 3 महीने में पीड़िता से विवाह करो, बच्चे के नाम पर ₹2 लाख का FD करो

हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सहमति और शोषण के बीच अंतर करना चुनौतीपूर्ण होता है, और न्याय के लिए सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि "जमानत एक सामान्य स्थिति है, और जेल अपवाद।"

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेप के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए आरोपित को जमानत दे दी है, लेकिन इसके साथ कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं। जस्टिस कृष्ण पहल की सिंगल बेंच ने सहारनपुर निवासी आरोपित अभिषेक की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए उसे पीड़िता से शादी करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि आरोपित नवजात शिशु के नाम पर 2 लाख रुपए की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) जमा करेगा, जो कि बच्चे के वयस्क होने तक उसके नाम पर सुरक्षित रहेगी।

ये मामला सहारनपुर जिले के थाना चिलकाना का है, जहाँ अभिषेक के खिलाफ पॉक्सो और दुष्कर्म के आरोप में एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया गया था। शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपित ने उसकी 15 वर्षीय बेटी से शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, जिससे वह गर्भवती हो गई। बाद में आरोपित ने शादी से इंकार कर दिया। शिकायतकर्ता ने अपनी बेटी की उम्र 15 वर्ष बताई, जबकि आरोपित के वकील ने कोर्ट में कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता की उम्र 18 वर्ष है। इसी आधार पर आरोपित ने अपनी जमानत की अर्जी दाखिल की थी।

हाई कोर्ट ने आरोपित को जमानत देते हुए यह शर्त लगाई कि उसे जेल से रिहा होने के तीन महीने के भीतर पीड़िता से विवाह करना होगा। इसके अलावा नवजात शिशु के भविष्य की सुरक्षा के लिए आरोपित को जेल से रिहाई की तिथि से छह महीने के अंदर बच्चे के नाम पर 2 लाख रुपए की एफडी करानी होगी। यह राशि पीड़िता के बच्चे के वयस्क होने तक उसके नाम पर सुरक्षित रहेगी। हाई कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आरोपित को पीड़िता और उसके बच्चे की देखभाल करनी होगी।

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा, “असली शोषण के मामलों और आपसी सहमति से बने रिश्तों के बीच फर्क करना चुनौतीपूर्ण है। ऐसे मामलों में न्याय करने के लिए सूझ-बूझ और सावधानीपूर्वक न्यायिक विचार की जरूरत होती है, ताकि न्याय सही तरीके से हो सके।” कोर्ट ने यह भी कहा, “जब तक किसी का अपराध साबित नहीं हो जाता, उसे निर्दोष माना जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को केवल आरोपों के आधार पर नहीं छीना जा सकता, जब तक उसका अपराध संदेह से परे साबित न हो जाए।”

कोर्ट ने यह भी जोर दिया, “न्यायिक प्रक्रिया में यह सिद्धांत प्रमुख है कि ‘जमानत सामान्य स्थिति है, और जेल भेजना अपवाद है’।” इस संदर्भ में कोर्ट ने आरोपित को जमानत देने का फैसला किया क्योंकि ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं था जिससे यह सिद्ध हो कि वह जमानत पर रिहा होने के बाद भागने या न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश करेगा।

आरोपित के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान में कहा कि उसके साथ कोई बल प्रयोग नहीं किया गया। इसके अलावा, आरोपित ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह पीड़िता से शादी करने और नवजात शिशु की देखभाल करने के लिए तैयार है। वकील ने यह भी कहा कि आरोपित कई महीनों से जेल में है और अगर उसे जमानत मिलती है, तो वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगा।

राज्य सरकार की ओर से जमानत का विरोध किया गया, लेकिन कोर्ट ने पाया कि ऐसा कोई ठोस आधार नहीं है जिससे यह साबित हो कि आरोपित जमानत मिलने के बाद न्याय से भागने की कोशिश करेगा या गवाहों को धमकाने का प्रयास करेगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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