इलाहबाद हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में भारत को श्रवण कुमार की भूमि बताया है। अदालत ने आशा जताई है कि आजकल के बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करेंगे और उनका ध्यान रखेंगे। अदालत ने यह टिप्पणी 85 वर्षीय छविनाथ की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इस याचिका में छविनाथ ने अपने बच्चों पर दुर्व्यवहार के साथ गैर-कानूनी ढंग से सम्पत्ति से बेदखल करने का आरोप लगाया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने टिप्पणी की है कि भारत सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिकता की धरती रही है। बुजुर्गों की देखभाल को उच्च न्यायालय ने इसी संस्कृति का एक हिस्सा बताया। बताया गया कि बुढ़ापे में बच्चों द्वारा माता-पिता की सेवा को पितृ ऋण के तौर पर माना जाता है।
अदालत ने यह भी बताया कि माता-पिता की सेवा सिर्फ नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर ही आधारित नहीं है, बल्कि इसके लिए कानूनी बाध्यता भी है। अदालत ने संसद में पारित सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 का उल्लेख किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में भावनात्मक पहलुओं का भी जिक्र किया।
टिप्पणी में कहा गया कि बुढ़ापे में परिजन न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक चुनौतियों से भी जूझते हैं। साथ ही अदालत ने यह भी माना कि अक्सर ये देखा जाता है कि सम्पत्ति पा जाने के बाद अक्सर संतानें अपने माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं। इसे एक गलत परिपाटी बताते हुए कोर्ट ने इतिहास में माता-पिता के प्रति समर्पण सीखने के लिए श्रवण कुमार की याद दिलाई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रयागराज के 85 वर्षीय छविनाथ ने इलाहबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल करके बताया था कि उनके बेटे उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। साथ ही छविनाथ ने बताया था कि उनकी संतानों ने गैर-कानूनी ढंग से उन्हें सम्पत्ति से बेदखल कर दिया है। छविनाथ ने खुद को वृद्ध और कमजोर बताते हुए सम्पत्ति से गैर-कानूनी बेदखली की शिकायत की थी।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस महेशचंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार की बेंच में हुई थी। इस केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने हंडिया क्षेत्र के SDM को 6 हफ्तों अंदर सभी पक्षों से बात करके मामले का समाधान निकलने का आदेश दिया।