एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हार्ई कोर्ट ने कहा है कि मथुरा के मंदिरों के प्रबंधन एवं उसके नियंत्रण से अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन को बाहर रखना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों का प्रबंधन एवं उसका संचालन धार्मिक बिरादरी के व्यक्तियों द्वारा न करके बाहरी लोगों द्वारा किया जाएगा तो लोगों की आस्था खत्म हो जाएगी।
देवेंद्र कुमार शर्मा और अन्य बनाम रुचि तिवारी एसीजे मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि मंदिरों से जुड़े विवादों से जुड़े मुकदमों का जल्द से जल्द निपटारा करने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मथुरा के मंदिरों एवं ट्रस्टों के प्रबंधन में रिसीवर बनने को लेकर वकीलों में होड़ मची हुई है।
पीठ ने कहा कि मंदिरों को ‘मथुरा न्यायालय के अधिवक्ताओं के चंगुल’ से मुक्त करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि न्यायालयों को एक रिसीवर नियुक्त करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, जो मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा हो और जिसका देवता के प्रति धार्मिक झुकाव हो। इसके साथ ही उसे वेदों और शास्त्रों का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
दरअसल, न्यायालय के संज्ञान में आया कि मथुरा की अदालतों में मंदिरों से संबंधित कुल 197 दीवानी मुकदमे लंबित हैं। इस पर न्यायालय ने कहा कि 197 मंदिरों में से वृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना और मठ में स्थित मंदिरों से संबंधित मुकदमे 1923 से 2024 तक के हैं।
कोर्ट ने कहा, “वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना के प्रसिद्ध मंदिरों में मथुरा न्यायालय के अधिवक्ताओं को रिसीवर नियुक्त किया गया है। रिसीवर का हित मुकदमे को लंबित रखने में निहित है। सिविल कार्यवाही को समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है, क्योंकि मंदिर प्रशासन का पूरा नियंत्रण रिसीवर के हाथों में होता है। अधिकांश मुकदमे मंदिरों के प्रबंधन और रिसीवर की नियुक्ति के संबंध में हैं।”
अदालत ने कहा कि मथुरा में ‘रिसीवरशिप’ एक नया मानदंड बन गया है, क्योंकि अधिकांश प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर कानूनी लड़ाई की चपेट में हैं। इसके कारण अदालतों ने मंदिर ट्रस्ट, उसके शेबैत और समिति को उनके मामलों का प्रबंधन करने से रोक दिया है। उन्होंने कहा कि एक प्रैक्टिसिंग वकील मंदिरों को पर्याप्त समय नहीं दे सकता।
हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा कि मंदिर प्रबंधन में कौशल के साथ-साथ पूर्ण समर्पण और समर्पण की आवश्यकता होती है। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा, “मुकदमे को लंबा खींचने से मंदिरों में विवाद और बढ़ रहे हैं। इससे मंदिरों में अधिवक्ताओं एवं जिला प्रशासन की अप्रत्यक्ष भागीदारी हो रही है, जो हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के हित में नहीं है।”