एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण को लेकर अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने सोमवार (1 जुलाई 2024) को कहा कि यदि धर्मांतरण वाले धार्मिक आयोजनों को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी। इस दौरान उच्च न्यायालय धर्मांतरण से संबंधित धारा के आरोपित की जमानत याचिका खारिज कर दी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश रोहित रंजन अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के तहत एक आरोपित कैलाश की जमानत याचिका खारिज कर दी। कैलाश हमीरपुर जिले के मौदाहा थाने का रहने वाला है। उस पर IPC की धारा 365 के तहत भी मामला दर्ज है।
सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, “यदि इस प्रक्रिया को जारी रहने दिया गया तो इस देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जाएगी। ऐसे धार्मिक आयोजनों को तुरंत रोका जाना चाहिए, जहाँ धर्मांतरण हो रहा हो और भारत के नागरिकों का धर्म परिवर्तन हो रहा हो।”
दरअसल, आरोपित कैलाश ने हमीरपुर की रहने वाली रामकली प्रजापति के भाई रामफल को अपने साथ लेकर दिल्ली गया। यहाँ उसे ईसाई मजहब द्वारा आयोजित ‘कल्याण सभा’ में भाग लेने के लिए ले जाया गया था। इतना ही नहीं, रामफल के अलावा उस गाँव के सैकड़ों लोगों को ईसाई में धर्मांतरण के लिए ले जाया गया था।
इस दौरान आरोपित कैलाश ने महिला से कहा था कि मानसिक बीमारी से जूझ रहे उसके भाई का इलाज करके एक सप्ताह बाद उसे उसके गाँव भेज दिया जाएगा। जब एक सप्ताह बाद भी जब महिला का भाई वापस नहीं लौटा तो महिला ने आरोपित कैलाश से इस बारे में पूछा। हालाँकि, कैलाश ने जो जवाब दिया उससे महिला संतुष्ट नहीं हुई।
याचिकाकर्ता कैलाश के वकील साकेत जायसवाल ने कोर्ट को बताया कि रामफल ईसाई नहीं बना था, न ही वह ईसाई है। वह कई अन्य व्यक्तियों के साथ ईसाई धर्म और कल्याण के लिए आयोजित सभा में शामिल हुआ था। इसमें कैलाश कोई भूमिका नहीं है। सोनू पास्टर ही ऐसी सभा आयोजित कर रहा था और उसे जमानत मिल चुकी है।
राज्य सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल पीके गिरि ने दलील दी कि इस तरह की सभा आयोजित करके बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई बनाया जा रहा है। इसके लिए उन्हें मोटी रकम दी जा रही है। इसके अलावा, कैलाश गाँव से लोगों को ईसाई बनाने के लिए ले जा रहा था। और इस काम के लिए उसे मोटी रकम दी जा रही थी।
इसके बाद कोर्ट ने कहा कि यदि इस प्रक्रिया को जारी रहने दिया गया तो एक दिन इस देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी। ऐसे धार्मिक समागमों पर तत्काल रोक लगनी चाहिए, जहाँ धर्मांतरण करने का काम होता है। कोर्ट ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 के संवैधानिक आदेश के विरुद्ध है। यह धर्मांतरण की नहीं, बल्कि धर्म के अभ्यास और प्रचार-प्रसार की अनुमति देता है।
न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से गरीब व्यक्तियों सहित अन्य जातियों के लोगों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण करने की अवैध गतिविधि बड़े पैमाने पर की जा रही है। इस न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया है कि आवेदक जमानत का हकदार नहीं है। इसलिए, उपरोक्त मामले में शामिल आवेदक की जमानत याचिका खारिज की जाती है।