बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मोतिहारी में स्थित महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB) के कुलपति पद के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के पास जो आवेदन सामने आए थे, उनमें से एक नाम प्रोफेसर शील सिंधु पांडेय का भी है। उनका इंटरव्यू भी लिया जा चुका है और माना जा रहा है कि इस पद पर उनकी बहाली हो सकती है। लेकिन, उनके साथ इतने विवाद जुड़े हैं कि छात्र सशंकित नज़र आ रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता आलोक राज ने इस बाबत केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र में लिखा था, “प्रोफेसर शील सिंधु पांडे विक्रम विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश में कुलपति रह चुके हैं जहाँ पर वे किताब खरीदने तथा अवैध नियुक्ति करने के मामले में हुए घोटाले के मुख्य आरोपित हैं। मध्य प्रदेश उच्च-न्यायालय में उन पर मुकदमा भी हुआ था। इस बाबत हाईकोर्ट ने उनसे जवाब भी माँगा था, लेकिन तब वो पकड़े जाने के कारण पहले ही इस्तीफा देकर निकल गए थे। वो अक्खड़, शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले और घोटालेबाज किस्म के व्यक्ति हैं।”
यहाँ तक कि इस मामले में मध्य प्रदेश राजभवन से भी उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया गया था। उन्होंने इसका जवाब भी भेजा था, लेकिन किसी कार्रवाई से पहले ही उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। तब राजभवन ने कहा था कि अगर वो त्यागपत्र नहीं देते तो विश्वविद्यालय के नियमों के हिसाब से उन पर कार्रवाई होती। राज्यपाल ने पाया था कि उन्होंने चयन प्रक्रिया में भी नियमों का पालन नहीं किया है।
राजभवन द्वारा जारी आदेश के अनुसार, उन्होंने तीन दिन में ही विदेशी प्रकाशन की पुस्तकें मँगा कर उनका सत्यापन कर दिया था और राशि के भुगतान की अनुशंसा भी कर डाली थी – जो संदेहास्पद था। राजभवन ने माना था कि पुस्तकें क्रय करने का अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद निगोशिएशन प्रणाली अपना कर सादे कागज़ पर अनुबंध करना शासन के वित्त विभाग के नियमों के विरुद्ध था।
नियमानुसार उन्हें इस प्रक्रिया के लिए निविदा आमंत्रित करना था और एक ही अनुबंध को बार-बार आगे नहीं बढ़ाना था। नए अनुबंध किए जाने थे, जो नहीं हुआ। राजभवन ने पाया था कि 68.60 लाख रुपए का भुगतान तो किया गया, लेकिन उसका सत्यापन नहीं हुआ, पुस्तकालय में उसकी प्रविष्टि दर्ज नहीं की गई और बिलों में इसका उल्लेख नहीं हुआ। वहीं चयन प्रक्रिया में भी उन पर अनियमितता के आरोप लगे थे।
इस सम्बन्ध में भरत कुमार ने राज्यपाल को शिकायत भेजी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुलपति SS पांडेय और अन्य अधिकारियों द्वारा नियमों का उल्लंघन कर अपने स्वार्थ की पूर्ति की जा रही है और वित्तीय लाभ कमाया जा रहा है। उन्होंने लिखा था कि विक्रम विश्वविद्यालय में 3 वर्षों से प्रशासनिक अनियमितता के कारण शैक्षिक वातावरण प्रभावित हो रहा है। उन्होंने आर्थिक भ्रष्टाचार के साथ-साथ UGC के नियमों के उल्लंघन के आरोप लगाए थे।
इस पत्र में लिखा था, “विश्वविद्यालय में आर्थिक अनियमितता का माहौल है। कुलपति SS पांडेय अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। शासन के नियमों का पालन नहीं हो रहा है। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों का भविष्य विवि की हठधर्मिता ही जिम्मेदार है। सारे टेंडर नियमों का उल्लंघन कर जारी किए जा रहे हैं। निगोसिएशन प्रणाली को अपना कर मध्य प्रदेश वित्त विभाग के आदेश का भी उल्लंघन किया गया है।”
MGCUB के ‘छात्र समुदाय’ ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को इस सम्बन्ध में पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 6 वर्षों बाद भी केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थिति ठीक नहीं है और न ही यहाँ स्नातक स्तर की पढ़ाई होती है। इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि मंत्रालय की आँखों में धूल झोंक कर प्रोफेसर SS पांडेय फिर कुलपति बनने का ख्वाब देख रहे हैं। वो जबलपुर के रानी दुर्गा विवि में गणित के प्रोफेसर रहे हैं।
इस पत्र में लिखा है, “प्रोफेसर शील सिंधु पांडेय ने किताब खरीद में घोटाला किया है। उन्होंने नियुक्तियों में भी भ्रष्टाचार किया है। उच्च-न्यायालय ने उन्हें दोषी पाया था और राज्यपाल ने कार्रवाई की अनुशंसा की थी। हम अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं क्योंकि पहले से ही हमें मूलभूत सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं और हम SS पांडेय की उम्मीदवारी का विरोध करते हैं। इसीलिए, किसी योग्य कुलपति को ही यहाँ भेजा जाए।”
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता आलोक राज ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिखे गए पत्र में लिखा है, “प्रोफेसर शील सिंधु पांडेय द्वारा लिए गए अवैधानिक, नियम विरुद्ध और स्वार्थपूर्ण निर्णयों के कारण विक्रम विश्वविद्यालय का माहौल खराब हुआ था और कैम्पस में अराजकता का वातावरण था। वो एक साबित भ्रष्टाचारी हैं। उन्हें हटाने का आदेश देना पड़ा था।उनकी नियुक्ति होती है तो MGCUB ‘भ्रूण-हत्या’ का शिकार हो जाएगा।”
याद हो कि इससे पहले भी दो अन्य प्रोफेसरों को लेकर विवाद हुआ था। कहा जा रहा था कि उनमें से एक जहाँ वामपंथी विचारधारा के हैं, वहीं दूसरे ने नक्सलियों के प्रति सहानुभूति जताई है। दोनों ही प्रोफेसरों ने इन आरोपों को नकार दिया था। ऑपइंडिया से बात करते हुए उन दोनों ने आरोप लगाए थे कि एक साजिश के तहत ये दुष्प्रचार चलाया जा रहा है। अब सभी को शिक्षा मंत्रालय के अंतिम निर्णय का इंतजार है।
प्रोफेसर शील सिंधु पांडेय ने अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारा
प्रोफेसर शील सिंधु पांडेय ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है। ऑपइंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कुलपति एक कमिटी बना देता है, जो नियुक्तियाँ करता है। कुलपति उस कमिटी का अध्यक्ष नहीं होता। प्राइवेट कॉलेजों की नियुक्तियाँ स्थायी भी नहीं होती, कुछ महीनों बाद बहुतों को बाहर कर दिया जाता है। वहीं किताब खरीद घोटाला के आरोपों पर उन्होंने कहा कि विभागाध्यक्ष ही किताबों की सूची देता है।
उन्होंने बताया, “सारे HOD ये लिख कर देते हैं कि हमें कौन-कौन सी किताबें चाहिए, जिसके बाद कुलपति निर्णय लेता है। हमने भुगतान खुद से नहीं किया, कार्य परिषद में ले जाकर भुगतान किया है। 30 लोगों ने जब अनुसंशा की है, तो इसमें मेरी गलती कहाँ हुई? टेंडर तो मेरे से पहले वाले कुलपति ने ही कर दिया था। अब जहाँ से टेंडर हुआ, वहीं से खरीद होगी न? हमने 24% डिस्काउंट पर किताबें खरीदी हैं।”
प्रोफेसर एसएस पांडे ने कहा कि उनके खिलाफ लोकायुक्त और जाँच एजेंसियों ने भी कुछ नहीं पाया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार आने के बाद सारी गड़बड़ियाँ शुरू हुईं और वो कहने लगे कि ये करो, वो करो, तो मैंने त्यागपत्र देना बेहतर समझा। राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों में मुझे नियुक्तियाँ मिल रही हैं, लेकिन वहाँ जाने में मैं इसीलिए इच्छुक नहीं हूँ, क्योंकि मैं काम करना चाहता हूँ।