कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। बात शिक्षा से हटकर मजहब पर इस कद्र आ गई है कि विपक्षी नेता अपनी राजनीति साधने के लिए भी शैक्षणिक संस्थानों में बुर्के का समर्थन कर रहे हैं। वैसे ये पहली बार नहीं है जब शिक्षा के नाम पर कहीं मजहब को प्रमोट किया गया हो और कहीं इसका विरोध हुआ हो। बीते समय में भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जहाँ बुर्के को शैक्षणिक संस्थान पर हावी करने की कोशिश की गई और ये बात मीडिया सुर्खियों में आईं।
महिला टीचर्स पर बनाया गया बुर्का पहनने का दबाव
साल 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता के आलिया यूनिवर्सिटी में 8 टीचरों पर बुर्का पहनने के लिए दबाव बनाया गया था। इनमें 7 महिला टीचरें थीं जिन्होंने नौकरी के लिए ये शर्त मान ली थी, लेकिन इनमें एक ने इसका विरोध किया था। उसका कहना था कि अगर बुर्का पहनना होगा तो वो मर्जी से पहनेगी जबरदस्ती से नहीं। लेकिन कट्टरपंथी दबाव के चलते इस 1 महिला टीचर को उस कॉलेज परिसर से ही बाहर कर दिया गया।
रिपोर्ट बताती है कि ये घटना उस समय की है जब कोलकाता की आलिया यूनिवर्सिटी में शिरिन निद्या नाम की टीचर ने बंगाली लिटरेचर पढ़ाना शुरू किया था और स्टूडेंट यूनियन इस जिद्द पर अड़ गया कि हर महिला प्रोफेसर को बुर्का पहनना होगा। शिरिन ने अपने साथ घटित घटना पर बताया था, “अप्रैल के मध्य, छात्र संघ ने हम 8 टीचरों को बुलाया और बुर्का पहनने को कहा। छात्र संघ ने कहा कि इस मामले पर प्रशासन के साथ हमने डिस्कस कर लिया है। बस तुम्हें बुर्का पहनना है और अगर ऐसा नहीं किया तो जॉब छोड़ दो।” शिरिन ने इस मामले पर बाद में सरकार से गुहाई लगाई। जिसके बाद सरकार ने कहा था कि ये मामला गंभीर हैं और अगर मामले में कोई दोषी पाया गया तो उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
मुस्लिम सोसायटी ने किया था बुर्का प्रतिबंधित
इसी तरह साल 2019 में एक घटना एक खबर आई थी जब केरल की मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष पी फजल गफूर ने एक नोटिस जारी किया था। इसके अंतर्गत सभी कॉलेज और स्कूलों में बुर्के पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह नोटिस सभी संबंधित संस्था प्रमुख और अधिकारियों को जारी किया गया था। उन्होंने इस निर्णय को शैक्षणिक वर्ष 2019-20 से इस आदेश से लागू करने के निर्देश दिए थे। अपने निर्णय के दौरान उन्होंने कहा था कि विद्यार्थियों, अध्यापकों और कर्मचारियों को भी इस आदेश का पालन करना अनिवार्य था। उन्होंने कहा था कि इस्लाम का अनुसरण करना गलत नहीं है, लेकिन मध्यकाल की इस्लाम पद्धतियों का अनुसरण सही नहीं है। पी फजल के फैसले के बाद कट्टरपंथी इतना बिदके कि उन्होंने केरल में मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ पीए फजल गफूर को अज्ञात व्यक्ति ने फोन पर जान से मारने की धमकी दी। उन्होंने जानकारी दी थी कि आरोपितों ने उन्हें जुमे वाले दिन अंतरराष्ट्री नंबर से फोन पर गालियाँ देते हुए जान से मारने की धमकी थी।