2003 की पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर सवाल उठाने के लिए मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से माफ़ी माँगी है। मुस्लिम पक्ष के मुख्य वकील ने माना कि इसमें अदालत के समय की हानि हुई है, और इस दिशा में बहस को मोड़ने का कोई अर्थ नहीं था कि ASI की रिपोर्ट के हर पेज पर हस्ताक्षर क्यों नहीं है।
मीनाक्षी अरोड़ा ने उठाया था मुद्दा
मुस्लिम पक्ष की एक दूसरी वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार (25 सितंबर) को ASI की रिपोर्ट पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि चूँकि रिपोर्ट के बाकी अध्याय (चैप्टर) पर लिखने वाले है, लेकिन अंत में साराँश को किसने लिखा, यह तय नहीं है, अतः यह इस पर सवाल खड़े करने वाला है।
वहीं आज (गुरुवार, 26 सितंबर) धवन ने कहा कि रिपोर्ट और साराँश के लेखन पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। “अगर हमने मी लॉर्ड लोगों का समय बर्बाद किया तो इसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं। इस दिशा में जाने का कोई अर्थ नहीं है।” मुख्य न्यायाधीश गोगोई के अलावा जस्टिस बोबडे, चंद्रचूड़, अशोक भूषण, और एस अब्दुल नज़ीर की पीठ के सामने धवन ने हालाँकि यह जोड़ा कि वे उस रिपोर्ट पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि यह मान ले रहे हैं कि अगर अदालत ने उसे साक्ष्य के तौर पर स्वीकार कर लिया है तो उसकी विश्वसनीयता को चुनौती नहीं दी जा सकती।
’18 अक्टूबर के बाद एक भी अतिरिक्त दिन नहीं’
मामले की रोज़ाना सुनवाई में 32वें दिन की सुनवाई शुरू करते ही बेंच ने हिन्दू-मुस्लिम पक्षों को साफ़ बता दिया कि 18 अक्टूबर के बाद सुनवाई के लिए एक दिन भी अतिरिक्त नहीं दिया जाएगा। “अगर हम चार हफ़्ते में कोई फैसला सुना पाए तो यह अपने आप में एक चमत्कार सरीखा होगा।” जस्टिस गोगोई ने कहा। इसके बाद बेंच ने मुस्लिम पक्ष को ASI रिपोर्ट पर अपने तर्क दिन भर में समाप्त कर लेने का निर्देश दिया। पीठ ने अक्टूबर में छुट्टियों का हवाला दिया, और कहा कि 4 हिन्दू पक्षों में से केवल एक ही वकील को मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब देने की अनुमति होगी।