बहराइच के महाराजगंज में 13 अक्टूबर 2024 को दुर्गा विसर्जन जुलूस पर हमला हुआ था। इसमें राम गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कई अन्य हिंदू भी घायल हुए थे। इन पीड़ित हिंदुओं का दावा है कि मस्जिद से उकसाए जाने के बाद मुस्लिम भीड़ ने हमला किया था। लेकिन बहराइच पुलिस सोशल मीडिया पर इन दावों को ‘भ्रामक’ बता चुकी है। जब इस निष्कर्ष का आधार जानने के लिए हमने बहराइच पुलिस से संपर्क किया तो वे इसका ठोस उत्तर नहीं दे पाए।
70 साल के विनोद मिश्रा इस हमले में घायल हुए हिंदुओं में से एक हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों से बातचीत में मस्जिद से उकसाए जाने का दावा किया है। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया था, “पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो हिंदू तितर-बितर हो गए। तब, मस्जिद से अल्लाह-हू-अकबर बोला गया और उसके बाद आवाज आई कि जो जहाँ मिले उसे मार दो काट दो।”
विनोद मिश्रा के इस बयान का ऑपइंडिया ने वीडियो भी जारी किया था। इसमें आप साफ तौर पर सुन सकते हैं कि इस दावे को लेकर हमारे रिपोर्टर राहुल पाण्डेय ने उनसे पूछा- क्या आपने ये खुद सुना? जवाब में भी विनोद मिश्रा कहते हैं, “हाँ, बिल्कुल सुना।”
#Watch: "There were announcements from two mosques, 'Jo jahan mile, use wahin maar do, kaat do.' 200-300 Muslims came with weapons and attacked Hindus. I thought they knew me, so they wouldn't attack me, but they did. They cut the tyres of bikes and burnt the vehicles of Hindus."… pic.twitter.com/iaitlWvHDj
— OpIndia.com (@OpIndia_com) October 19, 2024
ऑपइंडिया की X पोस्ट पर जवाब देते हुए बहराइच पुलिस ने लिखा, “ऐसे भ्रामक तथ्य जिनके सम्बन्ध में अभी कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ है, उन्हें बिना जानकारी के प्रसारित न करें। इससे जनपद की कानून व्यवस्था बिगड़ने की प्रबल सम्भावना है जिस पर विधिक कार्यवाही अमल पर लायी जाएगी।”
ऐसे भ्रामक तथ्य जिनके सम्बन्ध में अभी कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ है, उन्हें बिना जानकारी के प्रसारित न करें । इससे जनपद की कानून व्यवस्था बिगड़ने की प्रबल सम्भावना है जिस पर विधिक कार्यवाही अमल पर लायी जाएगी ।
— BAHRAICH POLICE (@bahraichpolice) October 19, 2024
विनोद मिश्रा के बाद कुछ अन्य हिंदू पीड़ितों ने भी मस्जिद से उकसाए जाने का दावा किया है। इनमें दिव्यांग सत्यवान मिश्रा ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा कि उस दिन मस्जिद से ऐलान हुआ था, “जो हिन्दू जहाँ मिले, उसको काट दो।” उन्होंने बताया है कि इसी ऐलान के बाद मुस्लिमों की भीड़ ने अब्दुल हमीद के घर के आगे मौजूद हिंदू श्रद्धालुओं पर हमला किया था। कट्टरपंथी भीड़ कह रही थी, “ऐ हिन्दुओं, यहाँ से भाग जाओ वरना गोलियों से भून दूँगा।”
इतना ही नहीं, पद्माकर दीक्षित नाम के एक अन्य पीड़ित ने भी इसी तरह का दावा किया है। ऑपइंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि वे लोग मूर्ति के साथ आगे बढ़ रहे थे, तभी एक पत्थर आकर लगा। इससे माँ दुर्गा की प्रतिमा का हाथ टूट गया। इस बीच मस्जिद से ऐलान हुआ, “अल्लाह हु अकबर। जो मिले उनको काट दो।” पद्माकर के अनुसार, मुस्लिम भीड़ कह रही थी कि जितना हिंदू मारेंगे, उतना सवाब मिलेगा।
विनोद मिश्रा के जिस दावे को बहराइच पुलिस ने भ्रामक और तथ्यहीन बता रही, उसे कई मीडिया संस्थानों ने छापा है। दैनिक जागरण की इस खबर पर बहराइच पुलिस ने कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दी।
ऑपइंडिया ने पूछे 3 सवाल, बहराइच पुलिस का गोलमोल जवाब
हिंदू पीड़ितों के दावों को भ्रामक बताने की वजह जानने के लिए ऑपइंडिया ने बहराइच पुलिस से संपर्क किया। उनसे क्या सवाल किए और उन्होंने किस तरह गोलमोल जवाब दिए यह आप नीचे पढ़ सकते हैं;
प्रश्न 1. क्या विनोद मिश्रा हिंसा के पीड़ित, चश्मदीद हैं? क्या पुलिस ने उनका बयान दर्ज किया है?
उत्तर: बहराइच (महसी) के डिप्टी एसपी रवि खोखर ने बताया कि विनोद मिश्रा ने अभी तक पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई है। जब वो शिकायत दर्ज करवाएँगे, उसके बाद उस पर जाँच होगी।
प्रश्न 2. क्या मस्जिद से उकसाने को लेकर उन्होंने जो दावे किए हैं, उसकी पुलिस ने जाँच की है? यदि की है तो उसका निष्कर्ष क्या निकला है? नहीं की है तो क्या उनके दावों को जाँच में शामिल किया है?
उत्तर: बहराइच की एसपी वृंदा शुक्ला के आधिकारिक फोन नंबर पर ऑपइंडिया ने कॉल किया तो फोन उठाने वाले PRO ने कहा कि मस्जिद से हमले वाली बात गलत है। यह आरोप भ्रमित करने वाला है।
प्रश्न 3. मस्जिद से हमले वाली मीडिया रिपोर्ट्स को बहराइच पुलिस सोशल मीडिया पर भ्रामक बता रही है, इसका आधार क्या है?
उत्तर: बहराइच की एसपी वृंदा शुक्ला के आधिकारिक नंबर पर की गई कॉल को उठाने वाले PRO ने कहा कि इस मामले को लेकर उनका स्टैंड पहले जैसा है।
चश्मदीद के बयान को लेकर क्या कहता है कानून
किसी घटना के पीड़ित/चश्मदीद के बयान पर मीडिया रिपोर्टिंग की जा सकती है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रीना एन सिंह का कहना है कि मीडिया किसी भी पीड़ित या चश्मदीद का बयान ले सकती है जब तक कि कानूनी या प्रशासनिक रूप से किसी आदेश के अंतर्गत ऐसे बयान या मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक ना लगी हो।
चश्मदीद को लेकर भारत में कानून भी है। इसको लेकर हमारा कानून क्या कहता है, इस पर रीना सिंह कहती हैं कि मीडिया में दिए गए बयान की कानूनी अहमियत सीमित होती है और अदालत में दिए गए शपथ-पत्रीय बयान को ही मुख्य साक्ष्य माना जाता है। गवाहों की सुरक्षा के लिए गवाह संरक्षण योजना और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश भी गवाहों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।
रीना सिंह कहती हैं कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसका मतलब ये है कि किसी आरोपित के ख़िलाफ़ गवाह बनने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता, जो उसे दोषी ठहरा सके। भारतीय कानूनों में चश्मदीद गवाह का बयान बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन उसकी वैधता और विश्वसनीयता अदालत में दी गई गवाही और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं से जुड़ी होती है।
इस अधिनियम के अनुसार, गवाह का बयान महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है। यदि गवाह का बयान सुसंगत और विश्वसनीय है तो उसे निर्णायक साक्ष्य माना जा सकता है। अदालत गवाह से उसकी गवाही लेने के लिए उसे समन भेज सकती है। गवाह के बयान को दोनों पक्षों द्वारा जाँचा और परखा जाता है। यह प्रक्रिया गवाह की विश्वसनीयता की पुष्टि करती है और यदि बयान में विरोधाभास है तो उसका खुलासा करती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 186 (गवाहों के बयान) के अनुसार, पुलिस जाँच के दौरान गवाहों का बयान दर्ज कर सकती है। पुलिस गवाह को उसके निवास स्थान पर जाकर भी बयान दर्ज कर सकती है और ये जरूरी नहीं है कि गवाह थाने आकर ही बयान दे। दरअसल, BNSS (भारतीय न्याय संहिता) में गवाहों की सुरक्षा, गवाही देने की प्रक्रिया हैं।
वहीं, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 179 (गवाह को समन) में कहा गया है कि पुलिस गवाह को नोटिस या समन देकर थाने बुला सकती है। हालाँकि, महिला गवाहों के लिए विशेष प्रावधान है कि उन्हें उनके निवास स्थान पर ही बयान देने की अनुमति होती है और उन्हें थाने आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
इसी तरह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 183 (न्यायिक बयान) के अनुसार, मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान को न्यायिक बयान के रूप में दर्ज किया जाता है। यह बयान बाद में जाँच के दौरान और अदालती कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह विशेषकर तब आवश्यक होता है जब बयान के बाद गवाह की जान को खतरा हो या गवाह पर दबाव हो।
रीना सिंह कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में गवाहों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया है। कोर्ट ने गवाहों को धमकाने या प्रभावित करने के मामलों में सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है, ताकि गवाह बिना किसी डर के न्यायालय में बयान दे सकें। भारतीय कानून गवाहों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा पर जोर देता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम और बीएनएसएस जैसे कानूनों के तहत गवाहों के कुछ अधिकार हैं।
गोपनीयता का अधिकार: गवाह को धमकी मिलने पर उसकी पहचान को गुप्त रखा जा सकता है।
सुरक्षा का अधिकार: अगर गवाह को बयान देने के बाद खतरा हो तो उसे पुलिस या राज्य द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
स्वतंत्र बयान देने का अधिकार: गवाह को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से बयान देने का अधिकार है और उसे किसी भी प्रकार के दबाव या धमकी से बचाने का प्रावधान है।
अब जबकि, बहराइच पुलिस ने ऑपइंडिया की खबर को भ्रामक बता दिया तो हमने रीना सिंह से चश्मदीद के मीडिया में दिए गए बयान के बारे में भी उनसे जानना चाहा। उन्होंने कहा कि चश्मदीद का पुलिस के समक्ष दिया गया बयान जाँच का विषय है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 398 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से राज्य के लिए एक गवाह संरक्षण योजना/डब्ल्यूपीएस तैयार और अधिसूचित करेगी। कानून की नजर में चश्मदीद (Eyewitness) के मीडिया में दिए गए बयान की बहुत सीमित और अक्सर अप्रत्यक्ष अहमियत होती है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) के अनुसार, मीडिया में दिया गया बयान कुछ स्थितियों में संदर्भ या संकेत के रूप में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह न्यायालय के लिए स्वीकार्य साक्ष्य (admissible evidence) नहीं माना जाता। यह न्यायालय में मान्य साक्ष्य के रूप में तब तक स्वीकार्य नहीं होता, जब तक कि उसे पुलिस द्वारा या अदालत के समक्ष विधिवत दर्ज नहीं किया जाता।
रीना सिंह कहती हैं कि मीडिया में दिया गया बयान बाहरी प्रभाव में हो सकता है, इसलिए उसे न्यायालय की निष्पक्ष प्रक्रिया का हिस्सा नहीं माना जाता। गवाह पर दबाव, डर या पक्षपात के चलते ऐसे बयान दिए जा सकते हैं। मीडिया में दिया गया बयान संकेतक (indicator) या प्राथमिक जानकारी के रूप में पुलिस या अदालत के ध्यान में लाया जा सकता है।
बकौल रीना सिंह, “अगर यह बयान मामले की जाँच या अदालत में महत्वपूर्ण हो सकता है तो पुलिस या अदालत उस गवाह को समन भेजकर उसका बयान दर्ज कर सकती है। अदालत में दिए गए बयान के दौरान गवाह के बयान को प्रतिपरीक्षण के माध्यम से सत्यापित किया जा सकता है। मीडिया में दिए गए बयानों को प्रतिपरीक्षण का मौका नहीं मिलता, इसलिए इसे पूर्ण रूप से सत्य नहीं माना जा सकता।”
मीडिया में दिए गए बयान को अक्सर गैर-स्वीकृत साक्ष्य (hearsay evidence) के रूप में माना जाता है, क्योंकि यह अदालत में दिए गए साक्ष्य से प्रमाणित नहीं होता है। न्यायालय में मान्य गवाही वही होती है जो अदालत के सामने, शपथ के तहत दी गई हो और जिसका प्रतिपरीक्षण (cross-examination) किया जा सके।
अगर कोई पीड़ित या चश्मदीद मीडिया में इस तरह का बयान देता है तो पुलिस को खुद उस तक पहुँचना चाहिए या फिर उसके थाने आने का इंतजार करना चाहिए? इस सवाल पर रीना सिंह कहती हैं, “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 181 के तहत पुलिस गवाहों का बयान दर्ज कर सकती है। इस प्रक्रिया में पुलिस गवाह से मिलने उसके निवास स्थान पर जा सकती है और वहीं पर उसका बयान दर्ज कर सकती है।”
रीना सिंह कहती हैं कि गवाह को थाने आने की आवश्यकता नहीं होती है, जब तक कि पुलिस द्वारा उसे समन या नोटिस न भेजा गया हो। पुलिस गवाह को जाँच में सहयोग देने के लिए थाने आने का नोटिस या समन भेज सकती है। यह केवल तब किया जाता है जब पुलिस को उसकी मौजूदगी आवश्यक लगे। वर्तमान में भारतीय कानून के तहत पुलिस का यह उत्तरदायित्व है कि वह गवाह तक पहुँचे और उसका बयान ले, न कि थाने आने का इंतजार करे।