भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी रहे प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुम्बडे की अग्रिम ज़मानत याचिका पर विरोध दर्ज करते हुए, पुणे पुलिस ने दावा किया है कि ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों (रोकथाम) के अपराधों के लिए उनकी विशिष्ट भूमिका का पता लगाने के लिए, तेलतुम्बडे को (अधिनियम) एक्ट के तहत हिरासत में रखने की ज़रूरत है।
पुलिस ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि सबूत जुटाने के लिए जाँच एजेंसी को पर्याप्त अवसर देने की ज़रूरत है। अभियोजन पक्ष ने मंगलवार को अदालत के सामने दावा किया कि उनके पास प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के माध्यम से सरकार को अस्थिर करने के लिए विद्रोही गतिविधियों में तेलतुम्बडे की भागीदारी को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, जिसका वो सदस्य था।
इस मामले में पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वला पंवार ने आरोप लगाया है कि तेलतुम्बडे, गोवा प्रबंधन संस्थान के एक प्रोफ़ेसर, अन्य सह-अभियुक्त एक आपराधिक साज़िश में शामिल थे। साज़िश के सिलसिले में सीपीआई के लिए ग़ैरक़नूनी गतिविधियों को अंजाम दिया था।
अभियोजन पक्ष द्वारा अदालत के समक्ष लिखित स्वरूप में बहस को प्रस्तुत किया गया। इसके मुताबिक ‘यह साज़िश शर्मिंदगी और दुश्मनी की भावना को बढ़ावा देने के इरादे से की गई थी। यह भारत या भारत सरकार के प्रति विद्रोह पैदा करने के लिए विभिन्न धर्मों, भाषाओं या धार्मिक समूहों, जाति या समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए घृणा या द्वेषपूर्ण व्यवहार था। इसके अलावा दंगों, हिंसक कार्य और आतंकवादी गतिविधियों जैसी ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने से भी संबंधित था’।
प्रोफ़ेसर ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की थी कि अदालत ने उनके ख़िलाफ़ पुणे पुलिस द्वारा दायर प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था। इसे अदालत ने 14 जनवरी को ख़ारिज कर दिया था। लेकिन उन्हें ग़िरफ़्तारी से पहले अदालत ने सुरक्षा और ट्रायल कोर्ट के समक्ष ज़मानत के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी। इसके बाद उन्होंने 18 जनवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन किया था।
महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल कई कथित शहरी नक्सलियों पर छापा मारा था और आरोप लगाया था कि एल्गर परिषद ने भीमा कोरेगाँव हिंसा का नेतृत्व किया था।