नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पिछले 18 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। बीच में कुछ समय के लिए उनके शिष्य जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) मुख्यमंत्री बने, लेकिन शासन उन्हीं के नाम पर चला। चुनावी जीत न मिलने पर भी सत्ता हासिल करने में नीतीश कुमार को महारत हासिल है।
नीतीश कुमार ने साल 2017 में एक सपना देखा था कि वो बिहार में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की तर्ज पर पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स बनाएँगे। देश-दुनिया से छात्र आएँगे, अर्थशास्त्र की पढ़ाई करेंगे और नए-नए ज्ञान दुनिया को सिखाएँगे। ये संस्थान खुल भी गया और अब 6 साल के बाद बंद भी हो गया है।
पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पर क्यों लगा ताला?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश कुमार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ पर ताला लग गया है। ये वही संस्थान है, जिसकी घोषणा साल 2018 में खुद नीतीश कुमार ने अपने वैचारिक एवं राजनीतिक गुरु लोकनायक जयप्रकाश की जयंती के अवसर पर की थी।
इस दौरान नीतीश कुमार ने कहा था कि इस संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के सिलेबल की तरह का सिलेबस मिलेगा। जो यहाँ से पढ़ेगा, वो दुनिया को ज्ञान सिखाएगा। हालाँकि, अब पता चल रहा है कि नीतीश कुमार तो मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनका वैश्विक संस्थान का सपना पटरी से उतर चुका है।
पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की टाइमलाइन
पाँचवें राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर अप्रैल-2017 में स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापना
वैश्विक संस्थान खोलने का सपना, लेकिन एक भी विशेषज्ञ की नियुक्ति नहीं
साल 2020 में डायरेक्टर प्रो. एस.के. भौमिक की नियुक्ति, लेकिन बाकी के पद स्वीकृत नहीं
साल 2021 में स्वायत्त संस्थान का दर्जा समाप्त, आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में विलय
मई 2023 में शिक्षकों एवं कर्मचारियों के पदों की स्वीकृति, लेकिन अब तक नियुक्ति नहीं
5 अगस्त 2023 को डायरेक्टर के रूप में प्रो. एस. के. भौमिक का कार्यकाल समाप्त
मौजूदा समय में पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में तीन चपरासी तैनात
कंप्यूटर कक्ष एवं अन्य कमरों पर जड़ दिए गए ताले, चाबियाँ ‘सेंटर फॉर रिवर स्टडीज’ के प्रभारी को सौंपी गईं
संस्थान अस्थाई रूप से बंद!
भास्कर से बातचीत में आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के प्रभारी वीसी सुरेंद्र प्रताप सिंह की प्रतिक्रिया छपी है। चूँकि ये संस्थान अब उन्हीं के विश्वविद्यालय में समाहित कर दिया गया है। भले ही उस विश्वविद्यालय में तीन साल से स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई है। वो कहते हैं कि संस्थान पर स्थाई रूप से ताला नहीं लगाया गया है। ये व्यवस्था अस्थाई तौर पर की गई है।
वैसे, पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की ऊपर बताई गई टाइमलाइन को देखेंगे तो पता चलेगा के चार महीने पहले मई में शिक्षकों और कर्मचारियों की वैकेंसी निकाली गई है। बाकी ये सीटें कब भरेगी, कब इस संस्थान के डायरेक्टर की नियुक्ति होगी, कब सिलेबस बनेगा, कब एडमिशन शुरू होगा, ये सब भविष्य के गर्भ में छिपा है।