बिहार का शिक्षा विभाग शिक्षकों के लिए नित नए फरमान जारी करता रहता है। जाति सर्वे की जिम्मेदारी के बाद अब बोरे यानी गनी बैग बेचने का काम भी उनके सिर लाद दिया गया है। विभाग ने शिक्षकों को मिड-डे मील के बोरे 10 की जगह 20 रुपए में बेचने का निर्देश दिया है। विभाग ने इसके पीछे तर्क दिया है कि मिड-डे मील के बोरे महंगे हो गए हैं। इस वजह से ये फैसला लिया गया है।
इस संबंध में विभाग के निदेशक (मिड-डे मील योजना) मिथिलेश मिश्रा ने सोमवार (14 अगस्त) को सभी जिला के अधिकारियों को पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने राज्य सरकार के संचालित विद्यालय के छात्रों के लिए मिड-डे मील के अनाज वाले खाली बोरों को बेचने का निर्देश दिया गया है।
इतना ही नहीं, सरकारी स्कूलों के हेडमास्टर को मिड-डे मिल चावल और दाल के खाली हुए इन बोरों को कम से कम 20 रुपए में बेचने के बाद इससे मिले पैसे को सरकारी खाते में जमा भी कराना है। शिक्षा विभाग के इस आदेश की खासी चर्चा हो रही है। साथ ही इसको लेकर बिहार सरकार की किरकिरी भी हो रही है।
क्या लिखा है मिड-डे मील के निदेशक ने पत्र में?
आजतक के मुताबिक, बिहार मिड-डे मील योजना के निदेशक मिथिलेश मिश्रा ने योजना के जिला कार्यक्रम अधिकारियों को भेजे पत्र में लिखा है कि साल 2016 में मिड-डे मील के अनाज के खाली बोरों को 10 रुपए प्रति बोरा बेचने का फैसला लिया गया था, लेकिन बीते 7 साल में बोरों की कीमतों में इजाफा हुआ है।
पत्र में सभी जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों को कहा गया है वे खाली बोरों की बिक्री के लिए अपने स्तर से सभी संबंधित लोगों को निदेश देना सुनिश्चित करें।
अब इन खाली बोरों को कम से कम 20 रुपए में बेचने का फैसला लिया गया है। इन्हें बेचने के बाद हेडमास्टर इनकी ब्रिक्री से मिले पैसों को जिले में योजना मद के खाते में जमा करेंगे। इसके बाद जिला कार्यालय इस पैसे को इकट्ठा कर चेक के जरिए पूरी राशि को कोषागार चालान के जरिए जमा करेंगे। ये सब करने के बाद निदेशालय को भी इसकी जानकारी देंगे।
‘शिक्षक संघ ने कहा ये शिक्षकों का अपमान है’
बिहार शिक्षा विभाग के इस फरमान को लेकर विरोध की आवाजें उठने लगी हैं। माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने आरोप लगाया है कि विभाग उन्हें शैक्षणिक कामों से हटाकर कारोबारी बनाने पर तुला है।
उनका कहना था कि इस तरह के फरमानों से शिक्षकों की लगातार बेइज्जती की जा रही है। उन्होंने ये भी कहा कि जब पहले बोरे के दाम 10 रुपए थे तो कोई नहीं खरीदता था। अब इन्हें 20 रुपए में बिक्री करने का प्रेशर बनाया जा रहा है।
बताते चलें कि साल 2018 में बिहार सरकार ने टीचरों को शौचालय सर्वे का भी काम सौंपा था। इसमें टीचरों को घर-घर जाकर शौचालय का सर्वे करना था और उसकी रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजना था। उस समय भी इसका विरोध किया गया था।