भारतीय जनता पार्टी के नेता और तिनसुकिया ज़िले के अध्यक्ष लखेश्वर मोरन पर नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे लोगों द्वारा हमला किया गया। यह घटना कथित तौर पर तिनसुकिया में घटित हुई है, जहाँ नेता लोक जागरण मंच की बैठक में भाग लेने के लिए पहुँचे थे। इसका आयोजन विवादास्पद बिल के बारे में ग़लत जानकारी से निपटने के लिए किया गया था।
#WATCH Tinsukia, Assam: BJP Dist Pres Lakheswar Moran attacked in a clash b/w RSS and All Assam Students’ Union&Asom Jatiyatabadi Yuba Chatra Parishad. RSS had organised a meeting in Tinsukia near the venue where a protest against Citizenship (Amendment) Bill was underway.(30.01) pic.twitter.com/8iEXAV1Pao
— ANI (@ANI) January 31, 2019
नॉर्थ ईस्ट नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, मोरन को प्रदर्शनकारियों द्वारा दिखाए गए काले झंडे के साथ स्वागत किया गया। इसके बाद, कुछ प्रदर्शनकारियों ने नेता का पीछा करना शुरू कर दिया। वीडियो में लोगों को बीजेपी नेता मोरन के ऊपर टायर और पत्थर फेंकते हुए देखा जा सकता है। इसके मद्देनज़र, पुलिस ने हस्तक्षेप किया और आगे की हिंसा से बचाते हुए मोरन को सुरक्षित बाहर निकाला।
बीजेपी नेता ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने उन पर लाठियाँ और लातें बरसाईं लेकिन पुलिस ने हस्तक्षेप नहीं किया। भीड़ के उपद्रव से बचने के लिए जब उन्होंने भागने का प्रयास किया तो प्रदर्शनकारियों द्वारा उनका पीछा किए जाने की वजह से वो गिर गए। उसके बाद मोरन फिर से भागने की कोशिश करने लगे लेकिन साइकिल से टकराने के बाद एक बार फिर से नीचे गिर गए।
घटना के बाद, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने इस घटना की निंदा की और यह भी कहा कि प्रदर्शनकारियों को ‘लक्ष्मण रेखा’ को पार नहीं करना चाहिए। उन्होंने राज्य सरकार से अपराधियों को बयाना देने की भी अपील की है। उन्होंने कहा कि बीजेपी प्रशासन को दबाने के लिए गुरुवार को अपने नेताओं को तिनसुकिया ज़िले में भी भेजेगी और हमलावरों को पकड़ने के लिए आग्रह करेगी।
नागरिकता संसोधन विधेयक एक नज़र में
राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद से समझौता हुआ था कि 1971 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को निकाला जाएगा। 1985 के असम समझौते (ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ‘आसू’ और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता) में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। यानी नए बिल के तहत 1971 के आधार वर्ष को बढ़ाकर 2014 कर दिया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर नागरिकता मिल जाएगी।
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य के अनुसार इस विधेयक से असम के स्थानीय समुदायों के अस्तित्व पर ख़तरा हो गया है। वे अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बन गए हैं। कैबिनेट द्वारा नागरकिता संशोधन बिल को मंजूरी देने से नाराज़ असम गण परिषद ने राज्य की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान किया है।
यह संशोधन विधेयक 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ये विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा। इसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कुछ भी हो।
नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। बीजेपी ने 2014 के चुनावों में इसका वादा किया था। कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉन्ग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियाँ लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है।
बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना और जेडीयू ने भी ऐलान किया था कि वह संसद में विधेयक का विरोध करेंगे। बिल का विरोध कर रहे बहुत से लोगों का कहना है कि यह धार्मिक स्तर पर लोगों को नागरिकता देगा। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी के अनुसार केंद्र के इस फ़ैसले से क़रीब 30 लाख लोग प्रभावित होंगे।
विरोध कर रही पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावनाओं के खिलाफ है। जबकि भाजपा नागरिकता बिल को पारित करके असम व दूसरे राज्यों में रहने वाले बाहरी लोगों को देश से बाहर निकालना चाहती ताकि नॉर्थ ईस्ट के मूल नागरिकों को किसी तरह से कोई समस्या न हो।