बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक महिला डॉक्टर का MBBS एडमिशन रद्द करने से इनकार कर दिया। उस पर आरोप था कि उसने झूठी सूचनाएँ लेकर OBC नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट प्राप्त किया था। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का एडमिशन रद्द करने का अर्थ होगा देश को एक डॉक्टर का नुकसान होना, क्योंकि उक्त महिला अब एक डॉक्टर बन चुकी है। बता दें कि उसने MBBS का कोर्स पूरा कर लिया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में उसकी डिग्री छीन लेना उचित नहीं होगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे देश में पहले से ही जनसंख्या के हिसाब से डॉक्टरों का अनुपात काफी कम है। इसीलिए, बॉम्बे हाईकोर्ट का मानना है कि एक डॉक्टर की डिग्री छीनना राष्ट्रीय हानि होगी, क्योंकि देश के नागरिक एक एक डॉक्टर को खो देंगे। हालाँकि, जस्टिस AS चांदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की एक खंडपीठ ने OBC नॉन-क्रीमी लेयर वाला सर्टिफिकेट रद्द करते हुए याचिकाकर्ता का एडमिशन ओपन कैटेगरी से हुए में बदल दिया। इसके अलावा अब उसे अपनी फी भी इसी हिसाब से चुकानी पड़ेगी।
साथ ही उस पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि उसे भान है कि मेडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए कितनी प्रतियोगिता है, साथ ही उसे ये भी पता है कि ओपन कैटेगरी में इसके लिए भारी फी चुकानी पड़ती है। जजों ने कहा कि इसका ये अर्थ नहीं है कि छात्र और अभिभावक अनुचित माध्यमों का इस्तेमाल कर के मेडिकल कोर्स में दाखिला ले लें। अवैध NCL सर्टिफिकेट मामले में एडमिशन रद्द होने से रोकने के लिए उक्त डॉक्टर हाईकोर्ट पहुँची थी।
The Bombay High Court decided not to revoke the admission of a student who obtained entry to an MBBS course in a Mumbai college under the OBC category with false information.
— The Times Of India (@timesofindia) May 12, 2024
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याचिकाकर्ता लुबना शौकत मुजावर ने मुंबई के सिओन स्थित लोकमान्य तिलक म्युनिसिपल मेडिकल कॉलेज एन्ड जनरल हॉस्पिटल से डिग्री प्राप्त कर रखी है। उसने 2012-13 में एडमिशन लिया था। याचिकाकर्ता के पिता ने इन्क्वारी कमिटी के सामने झूठ कहा था कि उनकी पत्नी बेरोजगार है। तलाक के बावजूद उनका कहना था कि बच्चों के लिए दोनों साथ रह रहे हैं, साथ ही पत्नी कॉर्पोरेशन में कार्यरत थी। अक्टूबर 2013 में उसका एडमिशन रद्द कर दिया था था, लेकिन फरवरी 2014 में हाईकोर्ट ने उसे राहत देते हुए कोर्स जारी रखने का आदेश दिया।
उक्त महिला ने ऑब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी में MBBS कोर्स, डिप्लोमा और इंटर्नशिप पूरी की थी। उसका कहना था कि तलाक के बाद पत्नी की आय से कुछ लेना-देना नहीं है, ये उसके पिता की सोच थी इसीलिए उन्होंने पत्नी की इनकम नहीं गिनाई। उसका कहना था कि उसके पिता की आय सर्टिफिकेट के लिए ज़रूरी लिमिट से कम है, ऐसे में उन्होंने सही जानकारी दी। हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी भी की कि मेडिकल कोर्स का आधार अगर झूठी सूचनाएँ हैं तो ये इस प्रोफेशन के लिए एक कलंक होगा, किसी छात्र को ऐसा नहीं करना चाहिए।