Sunday, December 22, 2024
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास चला बुलडोजर: अतिक्रमण कर लोगों ने बनाए थे घर, नोटिस भेजने पर भी नहीं किया खाली

जिस बस्ती में चला बुलडोजर, वहाँ रहने वाले याचिकाकर्ता 66 साल के याकूब ने तर्क दिया कि रेलवे के पास चल रही कानूनी कार्यवाही के कारण रेलवे ट्रैक के किनारे लगभग 200 घरों को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

उत्तर प्रदेश के मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के पास रेलवे की जमीन पर किए गए अतिक्रमण को बुलडोजर से ढहाया गया। दरअसल रेलवे प्रशासन ने जून में ही नई बस्ती में रहने वालों को जगह खाली करने के लिए नोटिस भेजा था, लेकिन इसके बाद भी वहाँ लोगों ने जमीन खाली नहीं की। इस वजह से वहाँ ये कार्रवाई की गई। बुधवार (8 अगस्त) को पुलिस टीम के साथ पहुँचे जीआरपी और आरपीएफ के जवानों की मौजूदगी में ये एक्शन लिया गया।

श्री कृष्ण जन्मभूमि और अतिक्रमण

“इस जगह को खाली कर दें, यहाँ बने घरों को ढहाया जाएगा” की आवाज जैसे ही श्री कृष्ण जन्मभूमि के पीछे बसी नई बस्ती के बाशिंदों ने सुनी तो वो हैरान रह गए। इसके साथ ही लोगों ने वहाँ प्रशासनिक अमले के साथ बड़े बुलडोजर को खड़े पाया। वैसे सबको पता था कि ये कार्रवाई होगी, फिर भी लोगों ने समय रहते इंतजाम नहीं किया।

दरअसल यहाँ रहने वाले लोगों को रेलवे की तरफ से जमीन खाली करने को लेकर बीती 7 जून को नोटिस भेजा गया था और इस जगह को एक महीने के अंदर खाली करने को कहा था, लेकिन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

मजबूरन रेलवे को बुलडोजर लाकर इस अवैध अतिक्रमण को ढहाने का एक्शन लेना पड़ा। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) ने कहा कि रेलवे की जमीन पर घरों के तौर पर किए इस अतिक्रमणों को मौजूदा मीटर गेज रेलवे ट्रैक को ब्रॉड गेज ट्रैक में बदलने की पहल के हिस्से के तौर पर हटा दिया गया था, जिससे मथुरा और वृंदावन के बीच कनेक्शन की सुविधा मिल सके।

नई बस्ती में बुलडोजर से घरों को धराशायी करने के दौरान जीआरपी, आरपीएफ सहित भारी संख्या में सिविल पुलिस मौजूद रही। साथ ही सिटी मजिस्ट्रेट, एसडीएम और रेलवे अधिकारी भी मौजूद रहे।

लोगों ने कहा – ‘सालों से यहाँ रह रहे’

वहीं प्रशासन का दावा है कि अतिक्रमण हटाने में कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। नई बस्ती के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र के कुछ लोगों का आरोप है कि यह कार्रवाई “दहशत और खौफ” पैदा करने की एक कोशिश है। इस मामले में इस बस्ती में रहने वाले याचिकाकर्ता 66 साल के याकूब ने तर्क दिया कि रेलवे के पास चल रही कानूनी कार्यवाही के कारण रेलवे ट्रैक के किनारे लगभग 200 घरों को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

उन्होंने बताया, “हमारे पूर्वजों ने 1888 में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान रेलवे को इस शर्त के साथ जमीन दी थी कि यदि इसका इस्तेमाल नहीं किया गया तो इसे वापस कर दिया जाएगा। हैरानी की बात यह है कि रेलवे ने जिस जमीन पर अपना दावा किया है, उसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी है।”

इस दौरान वहाँ के लोग जमीन के मालिकाना हक की बात भी कहते रहे। एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, नई बस्ती में रहने वाले लोगों का कहना है कि वो सालों से यहाँ रह रहे हैं। उनके पास जमीन के दस्तावेज भी हैं। लोगों ने रेलवे के नोटिस पर यह जगह खाली न करने को लेकर कहा है कि उन्होंने ये जमीन खरीदी है। उनका कहना है कि जमीन खाली कराने के लिए रेलवे को उन्हें मुआवजे की पेशकश करनी चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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