Sunday, December 22, 2024
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घर के बाहर खड़ी महिला की ली तस्वीर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने दी राहत: कहा – ये आपराधिक मामला नहीं

महिला ने पुलिस में आईपीसी की धारा 354सी के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

कलकत्ता हाई कोर्ट ने साल 2016 के एक मामले में उस व्यक्ति को राहत दी है, जिसपर महिला ने आरोप लगाया था कि वो उसका आते-जाते पीछा करता है और फोटो खींचता है। महिला ने आरोप लगाया था कि वो जब अपने घर के बाहर अपनी स्कूल से आने वाली बेटी का इंतजार कर रही थी, तभी उसे फ्लैश लाइट दिखाई दी। जब उसके आरोपित व्यक्ति को रोका, तो वो अपने घर में भाग गया। इस मामले में महिला ने पुलिस में आईपीसी की धारा 354सी के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की सुनवाई जस्टिस बिभास रंजन डे की कोर्ट में हुई, जहाँ उन्होंने आरोपित व्यक्ति को राहत दे दी। कोर्ट ने कहा, “किसी महिला को निजी क्रियाकलाप करते हुए देखना और उसकी तस्वीर लेना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 345सी के तहत ताक-झांक के अपराध के अंतर्गत आता है, लेकिन पीछा करने के अपराध के लिए भी मोटिव मिलना जरूरी है, जिसे अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर पाया है।”

कोर्ट ने कहा, “यह भी आरोप लगाया गया है कि जब शिकायतकर्ता ने फ्लैश देखा तो आरोपी उसकी बिल्डिंग में घुस गया। इस तरह के आरोप आईपीसी की धारा 354सी या 354डी के तहत किसी भी क्रिमिनल प्रोसीडिंग के तहत नहीं आता, जो कि धारा 345सी के तहत वर्जित है।”

अभियुक्त ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने केवल “प्रॉपर्टी डेवलपर पर प्रेशर बनाने के लिए मामला दर्ज कराया था, ताकि उसे कार की पार्किंग की जगह मिल जाए, लेकिन आरोपित व्यक्ति का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है।” हालाँकि, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि सिविल विवाद के लंबित रहने से आरोपी को आपराधिक कार्यवाही से छूट नहीं मिलेगी। राज्य ने यह भी तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 354सी के लिए 4 बिंदुओं पर ध्यान देना जरूरी होता है। कोर्ट ने कहा, “आईपीसी की धारा 354सी का उद्देश्य महिलाओं की शील और शालीनता की रक्षा करना तथा सार्वजनिक व्यवस्था को सुरक्षित रखना है। इसका उद्देश्य महिलाओं की शील भंग करने वाले कृत्यों को दंडित करके तथा उनमें भय पैदा करके सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बनाना है। प्रावधान की व्याख्या इसके उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए व्यापक रूप से की जानी चाहिए।”

इस मामले में आरोपित का पुरुष एवं पीड़ित का महिला होना सिर्फ एक शर्त है। दूसरी शर्त अवाँछित संपर्क का होता है। तीसरा- इस पीछा करने या संपर्क करने की कोशिश के दोहराव या बारम्बार का होना है, तो चौथा- महिला की ‘न’ का होना भी है। इस मामले में सिर्फ पहली शर्त पूरी होती है। कोर्ट ने कहा कि जमीन या पार्किंग का मामला सिविल कोर्ट का है, ऐसे में उस मामले का किसी बहाने से आपराधिक मामला बनाना सही नहीं है और कोर्ट ने याचिका को खारिज करने के साथ ही आरोपित व्यक्ति को बरी कर दिया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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