भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को एक महिला जज ने पत्र लिखकर अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के बारे में बताया है। दो पन्ने के पत्र में महिला जज ने इच्छामृत्यु की इजाजत माँगते हुए कहा है कि उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। सीजेआई को लिखा गया ये पत्र सोशल मीडिया में वायरल है।
बताया जा रहा है कि इस चिट्ठी के वायरल होने के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस पर संज्ञान लिया है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट से मामले की रिपोर्ट माँगी है। सूत्रों के हवाले से दी गई खबर में बताया गया कि सेकेट्री जनरल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर महिला जज द्वारा दी गई सारी शिकायतों की जानकारी माँगी। इसके साथ ही शिकायत से निपटने वाली आतंरिक समिति से कार्यवाही की स्थिति के बारे में भी पूछा।
वायरल चिट्ठी में महिला जज ने बता रखा है कि एक पोस्टिंग के दौरान ज़िला जज और उनके करीबियों ने उनके साथ मानसिक और शरीरिक शोषण किया। दावा ये भी है कि जिला जज ने उनसे रात में मिलने का दबाव बनाया।
बांदा में तैनात महिला जज ने सीजेआई को लिखे अपने पत्र में कहा, “मेरे छोटे से कार्यकाल में मुझे प्रताड़ित होने का दुर्लभ सम्मान मिला। मेरे साथ हद पार यौन उत्पीड़न हुआ है। मेरे साथ कचरे जैसा बर्ताव किया गया। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं कोई कीड़ा हूँ। मुझे दूसरों को न्याय दिलाने की उम्मीद थी। मैं कितनी भोली थी।”
उन्होंने कार्यस्थलों पर महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठाते हुए कहा, “मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूँ कि यौन उत्पीड़न के साथ जीन सीख लो। यह हमारे जीवन का सच है। पोश एक्ट हमसे कहा गया सबसे बड़ा झूठ है। कोई हमारी नहीं सुनता किसी को नहीं पड़ी। अगर तुम शिकायत दोगी तो तुम्हें प्रताड़ित किया जाएगा। और जब मैं कहती हूँ कि कोई नहीं सुनता इसमें सुप्रीम कोर्ट भी आता है। आपको 8 सेकेंड के लिए सुना जाएगा इसके बदले आपको धमकियाँ और जलालत मिलेगा। आप आत्महत्या करने को मजबूर हो जाओगे। अगर आप लकी रहीं तो पहले हीं प्रयास में सफल हो जाएँगी।”
उन्होंने कहा, “अगर कोई महिला सोचती है कि सिस्टम से लड़ेगी तो बता दूँ कि मैं नहीं लड़ पा रही। मैं जज हूँ। मेरे मामले में एक निष्पक्ष जाँच भी नहीं हो रही। मैं महिलाओं को सुझाव देती हूँ कि या तो खिलौना बन जाओ या निर्जीव वस्तु।”
उन्होंने लिखा, “मैं दूसरों को क्या न्याय दिलाऊँगी, जब मुझे ही कोई उम्मीद नहीं है। मुझे लगा था कि शीर्ष न्यायालय मेरी प्रार्थना सुनेगा। लेकिन रिट याचिका 8 सेकेंड में ही बगैर मेरी प्रार्थना सुने और विचार खारिज हो गई। मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी मेरा सम्मान और मेरी आत्मा को खारिज कर दिया गया है। यह निजी अपमान की तरह लग रहा है।” पत्र में ये भी कहा, “मेरी और जीने की इच्छा नहीं है। बीते डेढ़ सालों में मुझे चलती फिरती लाश बना दिया गया है। बगैर आत्मा और बेजान शरीर को लेकर घूमने का कोई मतलब नहीं है।”
बता दें कि बाराबंकी में पदस्थ रहने के दौरान जज ने रीतेश मिश्रा और मोहन सिंह नाम के दो वकीलों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उनके आरोप थे कि वकीलों ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। जुलाई में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की जाँच के लिए सीसीटीवी फुटेज खँगालने के आदेश दिए थे।