केरल की कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSAT) से मान्यता प्राप्त कोचीन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (कुट्टनाड) के कैंपस में छात्रों द्वारा सरस्वती पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यूनिवर्सिटी के कुलपति की ओर से बाकायदा आधिकारिक नोटिस जारी कर कहा था कि CUSAT एक ‘सेक्युलर’ संस्थान है इसलिए वहाँ किसी रिलिजन विशेष का समारोह आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
विश्वविद्यालय द्वारा जारी आधिकारिक पत्र में CUSAT में पढ़ने वाले ‘उत्तर भारतीय’ छात्रों के सरस्वती पूजा करने के अनुरोध को ठुकरा दिया गया था। पत्र में यह लिखा गया था कि ‘उत्तर भारतीय’ छात्रों को सरस्वती पूजा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
हालाँकि यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में इस प्रतिबंध को हटा लिया गया और कुछ शर्तों के साथ सरस्वती पूजा करने की अनुमति दे दी गई है लेकिन जिस प्रकार की भाषा CUSAT प्रशासन द्वारा प्रयोग की गई उससे यही पता चलता है कि कुलपति द्वारा उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय छात्रों में भेदभाव करने का प्रयास किया गया। यह शुद्ध रूप से क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने और नॉर्थ वर्सेज़ साउथ के झगड़े वाली मानसिकता को बढ़ावा देने जैसा है।
ध्यातव्य है कि दक्षिण भारत में वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा करने की परंपरा नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि तमिल, तेलुगु या मलयालम संस्कृति में देवी सरस्वती की पूजा ही नहीं होती। देवी का स्वरूप वही है बस पूजन के दिन का अंतर है।
ऐसे में विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा पूर्व में जारी किए गए पत्र में यह दलील देना कि CUSAT में उत्तर भारतीय छात्र सरस्वती पूजा नहीं कर सकते, निहायत ही हास्यास्पद है। दक्षिण भारत में वसन्त पंचमी को सरस्वती पूजन नहीं होता लेकिन शारदीय नवरात्र में अष्टमी से दशमी तक पूजन होता है।
तेलंगाना में गोदावरी नदी के तट पर बासर नामक स्थान पर ज्ञान सरस्वती देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जहां शिशुओं को अक्षरपूजा हेतु ले जाया जाता है। दक्षिण भारत में नवरात्र में सप्तमी के दिन देवी सरस्वती का आह्वान और दशमी को विसर्जन होता है।
तमिल और अन्य भाषाओं में देवी सरस्वती को कलैमगल, कलैवाणी, शारदा, भारती, वरदनायकी इत्यादि नामों से जाना जाता है। कश्मीर में स्थित शारदा पीठ से लेकर दक्षिण में कांची और शृंगेरी की शारदा माँ भी सरस्वती का ही रूप हैं।
CUSAT के कुलपति द्वारा पूर्व में जारी किए गए निर्देश के अनुसार ‘सेक्युलर’ कैंपस में सरस्वती पूजा नहीं हो सकती। शायद कुलपति महोदय को ज्ञान नहीं था कि केरल में विजयादशमी के दिन ज्ञान और कला की देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। इसे विद्यारम्भं परंपरा कहा जाता है और यह केरल के हिन्दुओं तक ही सीमित नहीं है। केरल के ग़ैर हिन्दू ईसाई भी विजयादशमी के दिन ही बच्चों की अक्षरपूजा करवाते हैं।
देवी सरस्वती किसी क्षेत्र विशेष अथवा पंथ से बंधी नहीं हैं। ईरान के पारसी समुदाय के लोग देवी सरस्वती को ‘अनाहिता’ के नाम से पूजते हैं। म्यांमार की बौद्ध संस्कृति में यही सरस्वती ‘थुराथडी’ के नाम से जानी जाती हैं। बच्चे परीक्षा देने जाने से पहले इन्हीं देवी की आराधना करते हैं। जापान में देवी को बेंज़ाईतेन कहा जाता है। कंबोडिया के प्राचीन ख्मेर साहित्य में देवी को भारती और वागीश्वरी कहा गया है। इसी प्रकार थाई, इंडोनेशियाई और तिब्बती संस्कृति में भी सरस्वती को विभिन्न नामों से पूजा जाता है। इसलिए यह कहना कि CUSAT एक सेक्युलर कैंपस है इसलिए वहाँ सरस्वती पूजा नहीं हो सकती, एक निराधार तर्क था।
वैसे यह पहली बार नहीं है जब CUSAT ने हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले छात्रों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। पहले भी एक बार छात्रों को बीफ वाला कटलेट खिलाने पर बवाल हुआ था।