बिहार के अधिकतर इलाके भयंकर बाढ़ की चपेट में हैं। कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा समेत राज्य की सभी बड़ी नदियां उफान मार रही हैं। सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, मोतिहारी, अररिया समेत कई जिलों में जगह-जगह तटबंध टूटने के कारण स्थिति बेहद भयावह है। खासकर, ग्रामीण इलाकों की। मधुबनी, सीतामढ़ी और दरभंगा में तो दर्जनों गांव ऐसे हैं जो टापू बन चुके हैं। इन गांवों के चारों तरफ बाढ़ का पानी है और सड़क संपर्क समाप्त हो गया है।
इस तरह के विकट हालात में भी राहत और बचाव का कार्य कुछ व्यक्तियों और सामाजिक संस्थानों के भरोसे ही चल रहा है। हालाँकि आपदा के 72 घंटे बाद राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए 196 राहत केंद्र और 644 सामुदायिक रसोई खोलने का दावा किया है। इनमें 148 केंद्र सीतामढ़ी जिले में खोले गए हैं और मधुबनी में केवल तीन। जबकि, मधुबनी और सीतामढ़ी दोनों जिलों के 15-15 प्रखंड बाढ़ प्रभावित हैं। सरकार की तरफ से बताया गया है कि एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की 26 टुकड़ियां लोगों को बचाने में जुटी है।
लेकिन, प्रभावित इलाकों से आ रही ख़बरें कुछ अलग ही तस्वीर पेश करते हैं। बचाव के काम में जुटी मानव कल्याण केंद्र संस्था के पंकज झा ने ऑपइंडिया को बताया कि अभी भी पीड़ित सरकारी मदद के इंतजार में हैं।
उन्होंने बताया कि उनकी टीम को झंझारपुर के नरुआर गाँव में एक बूढ़ी महिला के घर में फँसे होने की सूचना मिली। महिला का मोबाइल फोन भी स्विच ऑफ था। जानकारी होने के बावज़ूद एनडीआरएफ की टीम गाँव नहीं पहुँची। आखिर में स्थानीय लोगों ने खुद जोखिम उठा महिला को बचाया।
पंकज झा और उनके साथी मुख्यतः झंझारपुर इलाक़े में बचाव-कार्य में लगे हुए हैं। यहाँ का नरुआर गाँव बाढ़ से ज्यादा प्रभावित है। इस गाँव के कई लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं।
पंकज झा ने बताया कि समय बीतने के साथ-साथ अन्य प्रबुद्ध जन भी राहत कार्य के लिए सामने आए हैं। इनमें कई वरिष्ठ नागरिक भी हैं, जिनके अनुभवों का लाभ बचाव-कार्य में जुटे लोगों को मिल रहा है।
स्थानीय प्रशासन के सहयोग के बारे में पूछने पर पंकज झा ने बताया कि उनके साथ बचाव-कार्य कर रहे लोग स्थानीय प्रशासन पर ही निर्भर नहीं हैं। हालाँकि, उन्होंने इतना ज़रूर कहा कि मेडिकल कैम्प के डॉक्टरों व एनडीआरएफ टीम का अब पूरा सहयोग मिल रहा है। उन्हें अभी तक स्थानीय प्रशासन की मदद की ज़रूरत नहीं पड़ी है। उन्होंने इस बात पर ख़ुशी जताई कि उनके पास इस बचाव कार्य के लिए मानव संसाधन की कमी नहीं है।
पंकज झा ने कहा कि चूँकि वे लोग आधिकारिक भूमिका में नहीं हैं, स्थानीय प्रशासन द्वारा बाढ़ से पहले क्या तैयारियाँ की गई थीं- इस बारे में उन्हें कोई ख़ास जानकारी नहीं है।