साल 1999 में ओडिशा के मनोहरपुर में स्थानीय लोगों को ईसाई में धर्मान्तरण कराने के आरोप में ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस की हत्या उनकी 2 बेटों के साथ कर दी गई थी। इस मामले में दारा सिंह का नाम चर्चा में आया था। साल 2000 में ओडिशा की तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने दारा सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद से दारा सिंह को एक दिन का भी परोल नहीं मिला है।
दारा सिंह की गिरफ्तारी के 24 साल गुजर गए हैं। इन 24 वर्षों में दारा सिंह के परिवार में कई बदलाव हुए है। परिवार कई बार ख़ुशी और गम के मौकों से गुजरा है। इन सभी अवसरों पर तमाम प्रयासों के बावजूद दारा सिंह को परोल नहीं मिला। ऑपइंडिया ने दारा सिंह के परिवार से मुलाकात करके इस मामले की शुरुआत से अब तक के हालातों की जानकारी जुटाई है।
ऐसे दारा सिंह बने रवींद्र पाल
दारा सिंह का मूल नाम रवींद्र कुमार पाल है। रवींद्र पाल के भाई अरविन्द पाल ने ऑपइंडिया को बताया कि उनका परिवार खानदानी तौर पर हिन्दू धर्म को समर्पित है। रवींद्र के पिता भी पूजा-पाठ करके ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते थे। इंटरमीडियट की पढ़ाई के बाद रवींद्र पाल ने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए नोएडा में नौकरी शुरू कर दी।
रवींद्र कुमार पाल भी जो काम करते थे, उसको सही समय से अपने अंजाम तक पहुँचाते थे। कर्मठता और लगन को देखते हुए कम्पनी के स्टाफ और अधिकारी रवींद्र कुमार पाल को दारा सिंह नाम से बुलाने लगे थे। उस समय देश में दारा सिंह नाम के एक पहलवान हुआ करते थे। उनकी चर्चा देश-विदेश में थी। इस तरह रवींद्र पाल का नाम दारा सिंह पड़ गया।
नोएडा से शिफ्ट हुए ओडिशा
अरविन्द कुमार पाल हमें आगे बताते हैं कि नोएडा में नौकरी करने के ही दौरान उन्हें ओडिशा का एक साथी मिला। उस साथी से दारा सिंह से इतनी अच्छी दोस्ती हो गई कि दोनों एक-दूसरे के घर आने-जाने लगे। दारा सिंह को ओडिशा पसंद आने लगा और वो कुछ दिनों बाद अपने साथी के साथ नोएडा की नौकरी छोड़ कर ओडिशा में बस गए।
ओडिशा में दारा सिंह ने क्योंझर जिले में प्राइवेट तौर पर बच्चों को पढ़ाने की नौकरी कर ली। वे बच्चों को हिंदी भाषा पढ़ाते थे और साथ ही उन्हें हिन्दू धर्म की अच्छाइयाँ बताते थे। यहाँ बताना जरूरी है कि रवींद्र कुमार पाल उर्फ दारा सिंह मूलत: उत्तर प्रदेश के औरैया के रहने वाले थे। हालाँकि, अब वे ओडिशा को अपनी कर्मभूमि बना लिया था।
ऐसे जुड़े बजरंग दल से
दारा सिंह के परिजनों ने बताया कि उनके द्वारा स्कूल में की जाने वाली धर्म-चर्चा आसपास के गाँवों में फ़ैल गई। इस चर्चा से प्रभावित होकर कई अभिभावक भी दारा सिंह से हिन्दू धर्म के बारे में बातचीत करने लगे। थोड़े ही दिनों में दारा सिंह की ख्याति पूरे क्योंझर और मयूरभंज आदि जिलों में फ़ैल गई।
वो स्कूल से समय मिलने के बाद जनजातीय समुदाय की बस्तियों में घूमने लगे और उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में जागरूक करने लगे। बहुत कम समय में ही दारा सिंह को उड़िया भाषा का भी ज्ञान हो गया। उनकी इसी प्रसिद्धि से हिन्दू संगठन के सदस्यों ने उन्हें सम्पर्क किया और बाद में दारा सिंह बजरंग दल से जुड़ गए।
ओडिशा में ईसाई मिशनरियाँ थीं सक्रिय
अरविन्द कुमार पाल हमें आगे बताते हैं कि जब दारा सिंह ने बजरंग दल पदाधिकारी के तौर पर कार्यभार सँभाला तब ओडिशा ईसाई धर्मान्तरण से बुरी तरह से प्रभावित था। उनका कहना है कि गाँव के गाँव कन्वर्ट हो रहे थे। कन्वर्जन के इस रैकेट का मुखिया ग्राहम स्टेंस को माना जा रहा था। ग्राहम स्टेंस ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला एक पादरी था।
बताते हैं कि ग्राहम स्टेंस 25 साल पहले लोगों को प्रभावित करने के लिए खूब पैसे उड़ाता है। वह उस समय वैसे ही जीप में चला करता था, जिस तरह की गाड़ी में उससमय सांसद-विधायक चला करते थे। बकौल अरविन्द, उनके भाई ने धर्मान्तरण के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया। इसी वजह से वो कई साजिशकर्ताओं के निशाने पर भी आ चुके थे।
दारा नहीं मिले तो भाई को पकड़ कर ले गए
अरविन्द कुमार पाल कहना है कि साल 1999 में ग्राहम स्टेंस की हत्या के बाद जब दारा सिंह को ओडिशा पुलिस और सीबीआई की संयुक्त टीम नहीं पकड़ पाई तो उन्हें ही घर से उठा लिया गया था। तब स्थानीय पत्रकारों द्वारा खबर उड़ाई गई कि दारा सिंह का भाई गिरफ्तार कर लिया गया है।
अरविन्द कुमार का कहना है कि उस समय पुलिस और सीबीआई का व्यवहार उनके परिवार के प्रति बेहद क्रूर था। सीबीआई की टीम ने उनकी माँ, पिता और बहनों से भी दुर्व्यवहार किया था। अरविंद का कहना है कि वे बिना किसी जुर्म के लम्बे समय तक हिरासत में रखे गए थे और उन्हें ओडिशा के जंगलों में घुमाया गया था।
सरेंडर को दिखाया गया गिरफ्तारी
दारा सिंह के भाई का दावा है कि उनकी गिरफ्तारी की फैलाई गई झूठी खबर को सुनकर दारा सिंह ने ओडिशा के एक पुलिस थाने में सरेंडर कर दिया था। आरोप है कि तब सरकार ने दारा सिंह पर लाखों रुपए का इनाम रखा था, जिसे लेने के लालच में ओडिशा पुलिस के संबंधित थाने ने दारा सिंह के सरेंडर को गिरफ्तारी दिखा दिया था।
जिस थाने में दारा सिंह ने आत्म समर्पण किया था, उसके बारे में परिजनों ने बताया कि उसके पुलिसकर्मी दारा सिंह को जंगल में लेकर गए और वहाँ से सरेंडर को गिरफ्तारी का रूप देने का प्रयास किया। हालाँकि, बाद में इस साजिश की पोल खुल गई थी। इसलिए दावा है कि इनाम की राशि अब तक किसी को भी नहीं दी गई।
टॉर्चर और माँ-पिता की मौत पर परोल नहीं
अरविन्द कुमार पाल का आरोप है कि तब सीबीआई और ओडिशा पुलिस ने उनके भाई दारा सिंह को काफी टॉर्चर किया था। दारा सिंह के परिजन इसके खिलाफ आवाज उठाते थे, लेकिन उनकी कोई कहीं सुनवाई नहीं हुई। बताया जा रहा है कि तब किसी भी नेता, मीडिया या अदालत ने दारा सिंह के समर्थन में डाली गई किसी भी अर्जी पर कोई सकारात्मक रुख नहीं अपनाया।
अरविन्द कुमार पाल हमें बताते हैं कि क्योंझर के साथ कटक व एक अन्य जेल में दारा सिंह की अदला-बदली की गई। कटक जेल में दारा सिंह पर विवाद की एक FIR अलग से भी दर्ज की गई थी। पिछले 24 वर्षों में उनके पिता, माँ और फिर एक बहन की अकाल मौत हो गई। ये सभी दारा सिंह के लिए हमेशा परेशान रहते थे।
इन सभी की इच्छा मौत से पहले एक बार दारा सिंह से मिलने की थी। हालाँकि, इन सभी की इच्छा अधूरी ही रह गई। दारा सिंह ने अपने पिता, माता और बहन आदि की मौत के बाद पेरोल की अर्जी डाली पर उनको जेल से बाहर नहीं निकलने दिया गया। किसी न किसी स्तर पर दारा सिंह की अर्जी पर अड़ंगा डाला गया।
गोलू अपने चाचा की मौजूदगी में ही करेगा ब्याह
माता, पिता और बहन की मौतों के अतिरिक्त पिछले साल दारा सिंह की भतीजी का ब्याह भी हुआ। इस शादी में भी तमाम कोशिशों के बावजूद दारा सिंह को शामिल होने की अनुमति नहीं मिली। अब आने वाले समय में दारा सिंह के लगभग 24 वर्षीय भतीजा और 22 वर्षीया भतीजी का ब्याह होना है। इन दोनों की इच्छा है कि उनकी शादी दारा सिंह की मौजूदगी में हो।
दारा सिंह की भतीजी बड़ी होकर पुलिस अधिकारी बनना चाहती है, जबकि घर की आर्थिक स्थिति खराब देखते हुए भतीजा गोलू पास की ही एक कम्पनी में प्राइवेट जॉब कर रहा है। गोलू का कहना है कि भले ही कितना भी इंतजार करना पड़े, लेकिन वो शादी अपने बड़े पिताजी दारा सिंह की मौजूदगी में ही करेगा।
मिट्टी में दबी अस्थियाँ 20 साल बाद प्रवाहित
दारा सिंह उर्फ़ रवींद्र कुमार पाल की अपने पिता और माता की मौत से पहले मुलाकात नहीं हो पाई। उनके माता-पिता की अस्थियाँ एक घड़े में डालकर खेतों में लंबे समय तक दबाकर रखी गईं। उनके माता-पिता की अंतिम इच्छा थी कि जेल से रिहा होने के बाद दारा सिंह ही उनकी अस्थियाँ गंगा में विसर्जित करें। उनकी यह इच्छा भी अधूरी रह गई।
लगभग 20 साल के इंतजार के बाद आखिरकार दारा सिंह के भाई ने अपने माता-पिता की अस्थियों को गंगा में विधि-विधान से प्रवाहित कर दिया। इसकी वजह बताते हुए अरविन्द कुमार पाल ने कहा कि उन्हें बड़ी बेटी की शादी करनी थी और घर-परिवार में दबी अस्थियाँ हिन्दू धर्म के नियमानुसार विवाह आदि कार्यों में शुभ नहीं मानी जाती हैं।
कुछ गिने-चुने लोगों से ही मिली मदद, बाकी सब रहे खामोश
अरविन्द कुमार पाल ने अपनी पीड़ा को दुनिया के लोगों को बताने के लिए ऑपइंडिया का धन्यवाद किया। बेहद भावुक मन से उन्होंने कहा कि पिछले 24 वर्षों में बहुत कम लोगों ने उनके परिवार की मदद की। पिछले 2 दशक में वो और उनका परिवार हर प्रकार की प्रताड़ना का शिकार हुआ है।
अरविंद कुमार का कहना है कि उनके परिवार को अभी भी उम्मीद है कि दारा सिंह अपने जीवन के अंतिम समय को अपने घर और परिवार के साथ ही बिताएँगे। फिलहाल अगस्त 2024 में दारा सिंह की रिहाई वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।