दिल्ली की साकेत कोर्ट ने कुतुब मीनार परिसर में पूजा के अधिकार को लेकर हिंदू व जैन पक्षों की याचिका पर फैसला 24 अगस्त तक के लिए टाल दिया है। दरअसल, गुरुवार (9 जून 2022) को सुनवाई के दौरान इस मामले में दिलचस्प मोड़ देखने को मिला। इस मामले में पक्षकार बनाने को लेकर एक नई याचिका दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता ने आगरा से गुरुग्राम तक गंगा और यमुना के बीच के पूरे इलाके पर अधिकार का दावा किया है। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार ने इस अर्जी पर विचार की बात कही है।
अदालत में एडवोकेट एमएल शर्मा के माध्यम से कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह की ओर से यह याचिका दायर की गई है। उन्होंने याचिका में आगरा संयुक्त प्रांत (United province of Agra) का उत्तराधिकारी होने का दावा करते हुए इस मामले में खुद को पक्षकार बनाए जाने की माँग की है। याचिका के अध्ययन के लिए हिंदू पक्ष ने कुछ समय माँगा है। नई याचिका पर सभी पक्षों की सुनवाई 24 अगस्त को होगी।
इस अर्जी पर विचार करने के बाद ही कोर्ट पूजा के अधिकार से संबंधित अपना फैसला सुनाएगा। एडवोकेट एमएल शर्मा ने बताया कि दक्षिणी दिल्ली का पूरा इलाका कुंवर महेंद्र ध्वज की रियासत के अंदर आता है, इसलिए उन्हें इस मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के साथ-साथ याचिकार्ताओं ने आवेदन का विरोध किया, लेकिन न्यायाधीश दिनेश कुमार ने उन्हें अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा।
सिंह के आवेदन में कहा गया है कि कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदुओं और जैनियों के लिए पूजा के अधिकार से संबंधित मामले को उनके बिना पूरा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जिस जमीन पर मीनार बनी हुई है वह मुगल काल से उनके परिवार की है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि न केवल कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम, बल्कि आगरा से गुरुग्राम तक गंगा और यमुना नदियों के बीच का पूरा इलाका उनका है। उन्होंने आगे कहा कि दक्षिणी दिल्ली का पूरा इलाका कुंवर महेंद्र ध्वज की रियासत के अंदर आता है और उनकी रियासत में ये मामला होने के नाते उन्हें इसमें पक्षकार बनाया जाना चाहिए।
इसके अलावा महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने कहा कि वह बेसवान परिवार से आते हैं और राजा रोहिणी रमन धवज प्रसाद सिंह के उत्तराधिकारी हैं, जिनकी मृत्यु वर्ष 1950 में हुई थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार यह परिवार मूल रूप से जाट राजा नंद राम का वंशज है जिनकी मृत्यु 1695 में हुई थी।
गौरतलब है कि पिछले महीने ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)’ ने कहा था कि यहाँ किसी भी धर्म के पूजा-पाठ या नमाज की अनुमति नहीं है। हिन्दू पक्ष ने यहाँ पूजा-पाठ के लिए याचिका दायर की थी, जिसका ASI ने अदालत में विरोध किया था। संस्था ने कहा था कि इसकी पहचान को बदला नहीं जा सकता है।