Friday, April 26, 2024
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कुतुब मीनार की खुदाई नहीं होगी, पूजा-पाठ भी नहीं कर सकते: ASI ने कोर्ट को बताया- बिना इजाजत नमाज पढ़ रहे थे मुस्लिम

ASI द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त इतिहास का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने बताया कि मुहम्मद गोरी की सेना के कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को ध्वस्त कर के इसी परिसर में 'कुव्वत-उल-इस्लाम' के ढाँचे को खड़ा किया।

दिल्ली स्थित कुतुब मीनार के सम्बन्ध में ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)’ ने बताया है कि यहाँ किसी भी धर्म के पूजा-पाठ या नमाज की अनुमति नहीं है। हिन्दू पक्ष ने यहाँ पूजा-पाठ के लिए याचिका दायर की थी, जिसका ASI ने अदालत में विरोध किया है। संस्था ने कहा कि इसकी पहचान को बदली नहीं जा सकती। दिल्ली के साकेत कोर्ट में दायर याचिका में यहाँ जैन और हिन्दू समाज को पूजा-पाठ की अनुमति की माँग की गई थी।

ASI से इस सम्बन्ध में न्यायपालिका ने जवाब माँगा था, जिसे अब दायर कर दिया गया है। संस्था ने कहा कि कुतुब मीनार सन् 1914 से ही ‘संरक्षित स्मारकों’ की सूची में आता है और इसके बाद से इसमें कभी पूजा हुई ही नहीं, इसीलिए अब न तो इसकी पहचान बदली जा सकती है और न ही इसमें पूजा-पाठ की अनुमति दी जा सकती है। संस्था ने हिन्दू पक्ष की याचिका को कानूनी तौर पर वैध नहीं बताया। साथ ही कहा कि प्राचीन मंदिरों को तोड़ कर कुतुब मीनार के निर्माण की बातें ऐतिहासिक तथ्यों का मामला है।

ASI ने इसे पुरातात्विक महत्व का स्मारक बताते हुए कहा कि इसके 1958 में आए अधिनियम में कहा गया है कि यहाँ सिर्फ पर्यटन की अनुमति है, पूजा-पाठ की नहीं। ASI ने कहा कि किसी भी धर्म/मजहब के मतावलंबी यहाँ पूजा-पाठ नहीं कर रहे थे। याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने बताया कि कैसे 27 मंदिरों के अवशेष कुतुब मीनार परिसर में बिखरे पड़े हैं और इसे लेकर इतने साक्ष्य हैं कि कोई नकार नहीं सकता। उन्होंने बताया कि ये साक्ष्य ASI के दस्तावेजों और पुस्तकों से ही लिए गए हैं।

ASI द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त इतिहास का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने बताया कि मुहम्मद गोरी की सेना के कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को ध्वस्त कर के इसी परिसर में ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ के ढाँचे को खड़ा किया। साथ ही बताया कि इसमें भगवान गणेश, विष्णु और यक्ष समेत कई देवी-देवताओं की चित्र एवं प्रतिमाओं सहित कुओं के साथ कमल के फूल, और कलश जैसी आकृतियाँ हैं, जो इसके सनातनी होने के सबूत हैं।

वहीं क़ुतुब मीनार में नमाज की भी अनुमति नहीं मिलेगी। ASI ने कहा है कि ये एक निर्जीव स्मारक (Non Living Monument) है, इसीलिए ऐसे अन्य स्थलों की तरह यहाँ भी पूजा-पाठ, नमाज या किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधियों की मनाही है। बता दें कि यहाँ मुस्लिमों ने आकर नमाज पढ़नी शुरू कर दी थी और बिना अनुमति कई वर्षों से ऐसा चल रहा था। नमाजियों से जब अनुमति सम्बंधित दस्तावेज दिखाने को कहा गया तो वो कुछ नहीं दिखा पाए, जिसके बाद उन्हें वापस भेज दिया गया।

इसी तरह फोर्ज्शाह कोटला स्मारक में नमाज पढ़ी जाने लगी थी, जिसके बाद सख्ती बरतते हुए ASI को इस पर रोक लगानी पड़ी थी। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने भी साफ़ किया है कि कुतुब मीनार की खुदाई की फ़िलहाल कोई योजना नहीं है। 2005-06 में 4 मुस्लिमों ने यहाँ नमाज पढ़नी शुरू की थी, जो संख्या 2010 तक 40 पहुँच गई। ASI ने कहा कि नमाज की अनुमति ही नहीं थी, तो बंद कराए जाने की बात कहाँ से आ गई।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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