दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार (18 अक्टूबर, 2022) को दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के मामले में जेएनयू (JNU) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत याचिका खारिज कर दी। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने फरवरी 2020 में हुए दंगों को लेकर यह फैसला सुनाया है। उमर खालिद के खिलाफ इस घटना को लेकर बड़ी साजिश रचने का आरोप है। इसके साथ ही उस पर IPC के साथ-साथ UAPA के तहत भी मामला चल रहा है।
अदालत ने कहा, “हमें जमानत याचिका में कुछ ऐसा खास नहीं दिखता, जिसके दम पर जमानत दी जाए। इसलिए, इस याचिका को खारिज किया जाता है।”
J Mridul: We dont find any merit in bail appeal, appeal is dismissed.#DelhiHighCourt #UmarKhalid #DelhiRiots #UAPA
— Bar & Bench (@barandbench) October 18, 2022
दिल्ली हिंदू विरोधी दंगे के मामले में पुलिस ने खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था। बताया जा रहा है कि उसने फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों की व्यापक साजिश से जुड़े यूएपीए मामले में जमानत की माँग की थी। सुनवाई के दौरान खालिद की ओर से कोर्ट में यह दलील दी गई कि इस हिंसा में उनकी कोई आपराधिक भूमिका नहीं थी और न ही इस मामले के किसी भी आरोपित के साथ उसका कोई आपराधिक संबंध है।
कोर्ट ने 9 सितंबर 2022 को वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पैस और स्पेशल प्रॉसिक्यूटर अमित प्रसाद की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। खालिद की ओर से त्रिदीप पैस और दिल्ली पुलिस की ओर से अमित प्रसाद पेश हुए थे। हाई कोर्ट में दलीलें 20 दिनों से अधिक समय तक चलीं। मार्च 2022 में दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत के जमानत देने से इनकार करने पर JNU के पूर्व छात्र नेता ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तब से वह जेल में ही है।
इसके बाद अप्रैल 2022 में खालिद की जमानत पर बहस शुरू हुई थी। उमर खालिद की अमरावती में दी गई स्पीच को दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने भड़काऊ और आपत्तिजनक माना था। साल 2020 के दिल्ली दंगों के मुख्य साजिशकर्ता की जमानत याचिका को न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल व न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने खारिज कर दिया था। उन्होंने सवाल किया था कि जब खालिद ‘इंकलाब’ और ‘क्रांतिकारी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा था, तब उसके लिए इसका क्या मतलब था।
अदालत ने कहा था, “क्या ये कहना कि जब आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, गलत नहीं है? अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर ऐसे भड़काऊ बयान नहीं दिए जा सकते। लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं है।” पीठ ने पूछा था, “क्या आपको नहीं लगता कि इस्तेमाल किए गए ये भाव लोगों भड़काने वाला है? यह पहली बार नहीं है जब आपने अपने भाषण में ऐसा कहा है। आपने यह कम से कम पाँच बार कहा। यह लगभग ऐसा है जैसे कि भारत की आजादी की लड़ाई केवल एक समुदाय ने लड़ी थी।”
पीठ ने सवाल उठाया कि क्या गाँधी जी या शहीद भगत सिंह जी ने कभी इस भाषा का इस्तेमाल किया था?