मुस्लिमों के लिए काम करने वाले दिल्ली वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार द्वारा कथित तौर पर उसकी 123 संपत्तियों को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) को देने के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने बुधवार (9 मार्च 2022) को वक्फ बोर्ड को राहत देने से इनकार कर दिया। इस्लामिक बॉडी ने जिन संपत्तियों को वापस पाने के लिए कोर्ट का रुख किया था, उसमें कदीम नाम का एक कब्रिस्तान भी शामिल है।
इस कब्रिस्तान को केंद्र सरकार ने (ITBP) को दे दिया है। मामले की सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ने की। उन्होंने केंद्र सरकार के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर वक्फ बोर्ड के मंसूबों पर पानी फेर दिया। जस्टिस वर्मा ने कहा, “मैं फिलहाल स्टे देने के लिए इच्छुक नहीं हूँ। ये भी नहीं है कि ये संपत्ति निजी लोगों के पास गई है। हम भारत संघ से इसे वापस सौंपने के लिए कह सकते हैं।” बहरहाल अब कोर्ट ने केंद्र सरकार और आईटीबीपी को नोटिस जारी कर इस मामले में जबाव तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल 2022 को लिस्टेड है।
मामले की टाइमलाइन
गौरतलब है कि ये मामले 8 साल पुराना साल 2014 का है, जब केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के जरिए 123 संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया। इन प्रॉपर्टीज को वक्फ बोर्ड को दिया जाना था। हालाँकि, बाद में इंद्रप्रस्थ विश्व हिंदू परिषद सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी, जिसके बाद दिल्ली की एक अदालत ने लाभार्थियों की शिकायतों की सुनवाई करने और फैसला देने के लिए एक आदेश जारी किया।
इसके बाद 2016 में केंद्र सरकार ने इस मामले के लिए एक सदस्यी कमेटी का गठन किया। सालभर बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इसी साल 10 फरवरी 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बिना किसी विवाद के कदीम कब्रिस्तान को 2017 में आईटीबीपी को सौंप दिया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, “वक्फ बोर्ड ने पहले अदालत को बताया कि उसे 2017 में एक अलग मामले में संपत्ति के आईटीबीपी को सौंपे जाने की जानकारी मिली। इसके आवेदन ने कब्रिस्तान में किसी भी गतिविधि पर रोक लगाने की माँग की गई थी।”
इन 123 संपत्तियों का फैसला करने के लिए साल 2018 में केंद्र सरकार एक बार फिर से दो सदस्यीय कमेटी गठित की। इस पर वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार पर मनमाने ढंग से काम करने का आरोप लगाया और कहा कि एक सदस्यीय समिति की रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलील दी कि एक सदस्यीय रिपोर्ट निर्णायक नहीं होने के कारण दो सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी। लेकिन उस रिपोर्ट को वक्फ के साथ साझा करने से मना कर दिया।
इसी क्रम में पिछले साल नवंबर 2021 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने एख पब्लिक नोटिस जारी कर विवादित संपत्तियों के मामले में सार्वजनिक प्रतिनिधित्व की माँग की।
कब्रिस्तान वापस लेने की फिराक में दिल्ली वक्फ बोर्ड
जिन 123 संपत्तियों को केंद्र सरकार ने आईटीबीपी को सौंप दिया है, उस पर दिल्ली वक्फ बोर्ड अपना दावा करता है। उसका कहना है कि कथित तौर पर ये संपत्तियाँ उसकी हैं और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार वापसी के आदेश को वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।
वक्फ बोर्ड का कहना है कि वक्फ से जुड़ी किसी भी संपत्ति के विवाद को वक्फ एक्ट 1995 के तहत केवल वक्फ ट्रिब्यूनल ही तय कर सकता है। वक्फ ने निष्कर्ष निकाला, “संपत्तियों ने अपनी वक्फ की पात्रता को कभी नहीं छोड़ा और ये हमेशा से वक्फ एक्ट-1995 के प्रवाधानों के तरहत संचालित होता है, जो इसे अलग होने से रोकता है।”
दिल्ली वक्फ बोर्ड का आऱोप है, “ऐसा कुछ भी नहीं है जो हाल ही में नियुक्त दो सदस्यों की समिति वक्फ संपत्तियों के संबंध में कर सकती है। एक सदस्य समिति के समक्ष मामले को विचाराधीन रखते हुए और उसके बाद हाल ही में नियुक्त दो सदस्यों की समिति भारत सरकार ने उन 123 वक्फ संपत्तियों में से एक को स्थानांतरित कर दिया है। जिसे हस्तांतरित किया गया है वो क़ब्रिस्तान क़दीम, खसरा नंबर 484, साउथ इंद्रप्रस्थ, मथुरा रोड, दिल्ली में आईटीबीपी को दी गई है।