दो साल पहले (9 नवंबर 2019) रामजन्म भूमि का फैसला सुनाने वाले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई एक बार फिर से चर्चा में हैं। राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने रविवार (28 नवंबर 2021) को वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ”राम जन्मभूमि का फैसला उनका अपना नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि कानून के आधार पर लिया गया था।”
गोगोई ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों ने तीन-चार महीने सुनवाई के बाद 900 पृष्ठों में राम मंदिर पर फैसला सुनाया था। उस फैसले पर सभी जज एकमत थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि एक न्यायमूर्ति का कोई धर्म नहीं होता है, ना ही उसकी कोई भाषा होती है और न जाति। न्यायमूर्ति का धर्म और भाषा, संविधान है।
जस्टिस गोगोई ने यह भी कहा कि जज हजारों केस में फैसले सुनाते हैं। वह फैसला किसी के पक्ष में होता है, किसी के खिलाफ, लेकिन जज का उस फैसले से कोई मतलब नहीं होता। वह तथ्यों और कानून के आधार पर फैसला लेता है। रामजन्मभूमि के संबंध में भी यही हुआ।
बता दें कि जस्टिस गोगाई ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से कहा कि हमें और देश को आशीर्वाद दें, ताकि विकास के रास्ते पर चल सकें। मुझे काशी आने की बहुत दिनों से इच्छा थी, लेकिन कोरोना के चलते यात्रा टलती गई।