साल 2018 में जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले के एक गाँव में एक बच्ची रहस्यमय हालात में गायब हो गई। कुछ दिन बाद कुछ दरिंदों ने बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया, देश भर में खूब हंगामा हुआ। देश-विदेश के कुछ मीडिया व मानवाधिकारों के कथित कार्यकर्ताओं ने भी इस मुद्दे को खूब उछाला था। पीड़िता के न्याय को लेकर काफी सियासत हुई, राजनीतिक गलियारों से लेकर बॉलीवुड जगत की तमाम हस्तियों ने खूब सक्रियता दिखाई और पीड़िता को न्याय दिलाने में किसी तरह की दिक्कत न आए इसके लिए देश-विदेश से लाखों रुपए का चंदा भी इकट्ठा किया गया।
चंदे के लिए पीड़िता के पिता व परिवार के नाम पर संयुक्त रूप से जम्मू कश्मीर बैंक में खाता खुलवाया गया था। मगर जिस तरह से बीते एक साल के दौरान पीड़िता को न्याय के नाम पर सियासत करने वाले धीरे-धीरे लापता हुए, उसी तरह से उसके पिता के खाते से पैसे भी अज्ञात लोग गायब करते गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रेप पीड़िता को न्याय दिलाने के नाम पर जिन लोगों ने पैसे इकट्ठे किए थे, उसमें से किसी अज्ञात शख्स ने ₹10 लाख निकाल लिए हैं। ये प्रक्रिया जनवरी 2019 से ही चल रही है। अगर पीड़िता के पिता 10 अप्रैल को बैंक न जाते, तो उन्हें इसके बारे में पता भी नहीं चलता कि उनके बैंक अकाउंट से कोई पैसे गायब कर रहा है।
पीड़िता के पिता ने कहा कि किसी ने उनके ज्वॉइंट अकाउंट से ₹10 लाख से अधिक की राशि निकाल ली है जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। बैंक स्टेटमेंट में लगातार निकासी दिखाई दे रही है और अब उनके खाते में केवल ₹35,000 बचे हैं। उन्होंंने कहा कि हमें बताया गया था कि दुनिया भर से ₹1 करोड़ का दान दिया गया था, लेकिन पता वो पैसे नहीं कहाँ गए। पीड़िता के पिता ने पासबुक दिखाते हुए आरोप लगाया है कि असलम खान नामक किसी आदमी ने इसी साल 11, 14, 15 व 18 जनवरी को चेक के जरिए दो-दो लाख रुपए निकाले हैं। उन्होंने बताया कि असलम को वो जानते हैं, वो एक दो बार उनके साथ बैंक भी गया था। उन्होंने जब इस बारे में उससे बात की, तो उसने उनके साथ बुरा बर्ताव किया जिसकी वजह से उन्हें इस बात का शक है कि ये काम शायद उसी ने किया हो।
इसके अलावा 21 और 22 जनवरी को भी बैंक से ₹4 लाख निकलवाए गए और इस बार भी पैसा परिवार की तरफ से नहीं बल्कि किसी नसीम नामक व्यक्ति ने चेक के जरिए निकला है। पीड़िता के पिता का कहना है कि वो तो अनपढ़ हैं और चेक पर भी अंगूठा ही लगाते हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि पैसा कैसे और कहाँं जा रहा है। इस मामले पर संबंधित बैंक अधिकारी का कहना है कि ऐसा लगता है कि पीड़ित परिवार के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले ही किसी शख्स ने ऐसा किया है, क्योंकि ये राशि चेक के जरिए निकाली गई है और इस चेक पर तारीख के साथ-साथ अंगूठे का निशान और बाकी सारी औपचारिकताएँ पूरी की गईं थी, जिसकी वजह से उसे रोका नहीं जा सकता था और ये काम परिवार का कोई करीबी ही कर सकता है। बैंक अधिकारी ने कहा कि परिवार अगली सूचना तक चेक बुक को ब्लॉक करवा सकता है।
वहीं, पीड़िता के दादाजी का कहना है कि जो लोग न्याय की गुहार लगाने की दौड़ में सबसे होने का दावा करते थे अब वो उनका फोन कॉल भी नहीं उठाते हैं। यहाँ पर यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरफ से पीड़िता के परिवार को मदद या न्याय दिलाने का ढोंग रचा जा रहा था। कुछ लोग पीड़िता के न्याय के नाम पर अपनी जेब गर्म करना चाहते थे। पिछले दिनों एक ऑडियो क्लिप जारी हुआ था, जिसमें दो लोगों को बात करते हुए सुना गया था कि उन दोनों ने पीड़िता के नाम पर बड़ी रकम जमा कर ली है, जो कि कभी उस परिवार के पास नहीं जाएगी। इस ऑडियो में साफ हो गया था कि कुछ लोगों ने अपने हित को साधने के लिए ये पैंतरा आजमाया था।
पीड़िता के लिए न्याय के नाम पर धनराशि इकट्ठा करने वालों में से एक हैं जेएनयू की फ्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद। उन्होंने दावा किया था कि उनके द्वारा ₹40 लाख से अधिक की धनराशि जमा की गई थी और फिर बाद में उन्होंने यह भी कहा था कि वकील पैसे नहीं ले रहे हैं, तो इसलिए बलात्कार पीड़िता के परिवार को ₹10 लाख की राशि सौंपी जाएगी। मगर सच्चाई तो यही है कि पीड़िता के परिवार के हाथ में अब तक एक भी पैसा गया ही नहीं। शेहला इस बात को इंकार करते हुए कहती है कि उनके पास पैसे पहुँचने में देर इसलिए हुई क्योंकि पीड़ित परिवार के पास ज्वॉइंट अकाउंट और पैन कार्ड नहीं था।
इस अभियान के मुख्य कार्यकर्ताओं में से एक है तालिब हुसैन, जिसे बाद में बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। और फिर वो महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी में शामिल हो गया। शेहला रशीद ने भी कश्मीर के पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फ़ैसल के साथ राजनीति में शामिल होने का संकल्प लिया है, जिसने भारत को ‘रेपिस्तान’ कहा था।
बीते साल हुआ कठुआ गैंगरेप काफी चर्चा में आया था तो ऐसा लगा था कि नेताओं ने रेप पड़िता के परिवार के लिए आर्थिक मदद का पिटारा ही खोल दिया। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो इनके लिए पैसे इकट्ठा करने की भी बात कही। और कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने ऐसा किया भी। मगर अब जो खबर सामने आ रही है, उससे यह सवाल उठना तो तय है कि आखिर बैंक अकाउंट से पैसे गए कहाँ? इस अभियान में मुख्य रूप से शेहला राशिद और तालिब हुसैन शामिल थे। इनमें से एक बलात्कारी है, तो दूसरी ऐसे लोगों के संपर्क में है, जिसने भारत को रेपिस्तान कहा था।
ये लोग समाजसेवा की मूरत बनकर लोगों के सामने आए थे। यहाँ पर एक बात खटकती है कि जो इंसान खुद बलात्कारी हो वो भला क्या किसी और बलात्कार पीड़िता के दर्द को समझेगा और उसके न्याय के लिए पैसे जुटाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि इन लोगों ने सबकी नज़रों में आने के लिए पीड़िता के नाम पर पैसे तो जुटाए, लेकिन पीड़िता के परिवार के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए। इसलिए तो पैसे जमा भी हुए अकाउंट में और गायब भी हो गए। इससे साफ जाहिर होता है कि इनके ही करीबियों ने इस घोखाधड़ी को अंजाम दिया है।
इनके लिए ये अभियान चलाना तो महज एक दिखावा था, इन्हें तो पीड़िता की आड़ में अपने लिए लोगों से पैसे लूटने थे। 23 दिसंबर 2018 तक बैंक अकाउंट में लगभग ₹23 लाख थे। जिसके बाद जनवरी से मार्च 2019 के बीच बिना पीड़िता के परिवार की जानकारी के बैंक से पैसे की निकासी की प्रक्रिया शुरू हुई और अब उसमें सिर्फ ₹35,000 हैं। एक पिता अपनी बच्ची को इंसाफ दिलाना चाहता है। ऐसे में इन लोगों ने जिस तरह का घटिया खेल खेला है, पीड़ित परिवार को बेहद तगड़ा झटका लगा है। वहीं जिन नेताओं ने परिवार से मदद की उम्मीद जताई थी, वो नेता भी अब सामने आते नहीं दिखाई दे रहे हैं।