न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, फ्रांस ने जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर की सभी फ्रांसीसी सम्पत्तियों को ज़ब्त करने का फैसला किया है। यह आदेश फ्रांस के आंतरिक, विदेशी और वित्त मंत्रालयों द्वारा जारी की गई। फ्रांस ने आगे कहा है कि वह यूरोपीय संघ में मसूद अज़हर को आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों की सूची में शामिल करने पर ज़ोर देगा।
#NewsAlert | France says it has decided to freeze the French assets of Jaish-e-Mohammed leader Masood Azhar
— Hindustan Times (@htTweets) March 15, 2019
(News agency Reuters)
फ्रांस ने हमेशा से ही भारत का साथ निभाने वादा किया था। फ्रांस ने पुलवामा में आत्मघाती हमले की ज़िम्मेदारी लेने का दावा करने के बाद आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। बता दें कि 14 फरवरी को जैश द्वारा किए गए इस हमले में CRPF के 40 भारतीय जवानों को वीरगति मिली थी। जिस आतंकवादी आदिल अहमद उर्फ़ वकास कमांडो ने इस भयावह हमले को अंजाम दिया था उसे आतंकी समूह जैश द्वारा ही प्रशिक्षित किया गया था।
France has always been and always will be by India’s side in the fight against terrorism.
— Alexandre Ziegler (@FranceinIndia) March 15, 2019
France has decided to sanction Masood Azhar at the national level by freezing his assets in application of the Monetary and Financial Code. (3/5)
ध्यान देने योग्य बात यह है कि फ्रांस उन देशों में से एक है जिसने मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करने का प्रस्ताव रखा था। पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNNC) द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में चीन ने चौथी बार अड़ंगा लगा दिया था। मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर फ़ैसले से कुछ मिनट पहले चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी। 2017 में भी चीन ने ऐसा ही किया था। बीते 10 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र में अज़हर को वैश्विक आंतकी घोषित करने का यह चौथा प्रस्ताव था।
पुलवामा हमले के बाद से ही फ्रांस जैश-ए-मोहम्मद और उसके प्रमुख मसूद अज़हर को नज़रबंद करने का मुद्दा उठाता रहा है। अमेरिका ने हाल ही में कहा था कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित नहीं करना क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के ख़िलाफ़ है।